भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आज लगभग सारे हरियाणा में किसान आंदोलन का मुद्दा छाया रहा। किसान तो सारे प्रदेश के ही सरकार से खुश नजर नहीं आ रहे परंतु आज कुरूक्षेत्र, करनाल आदि बैल्ट में किसानों के उग्र प्रदर्शन भी हुए। सरकार ने उन्हें दिल्ली जाने से रोकने के व्यापक प्रबंध किए और अगर कहें कि सरकार उसमें कामयाब भी हुई तो शायद अनुचित नहीं होगा। किसान बेरिकेट्स तोड़ आगे बढ़ते रहे, वॉटर कैनल सहते रहे और आगे बढ़ते रहे। जोश किसानों में भी नजर आ रहा था और सरकार तो सदा ही शक्तिशाली होती है, सरकार के भी व्यापक प्रबंध रहे। उन्हें दिल्ली में आने से रोकने के लिए। कल क्या होगा, वह तो कल पता लगेगा।

प्रश्न इस बात का नहीं है कि किसान दिल्ली पहुंच पाते हैं या नहीं। प्रश्न इस बात का भी नहीं है कि सरकार किसानों को किस प्रकार रोक पाती है। न प्रश्न यह इस बात का है कि किसान किसी भी रास्ते से दिल्ली पहुंचकर अपनी हाजिरी दर्ज करा पाते हैं या नहीं। सबसे बड़ी बात यह है कि किसान सडक़ों पर निकला, सरकार से नहीं डरा, सरकार के सामने डटकर खड़ा रहा और उनकी संख्या सरकार और अन्य पार्टियों के सोच से अधिक रही और साथ ही किसानों का जज्बा ऐसा दिखाई दिया कि वे किसी भी कीमत पर तीन कृषि कानूनों को हटवाकर रहें।

किसान ही इस आंदोलन में नहीं थे, आज कर्मचारी वर्ग भी सडक़ों पर दिखाई दिया, अढ़ती वर्ग तो शुरू से ही कानूनों के विरूद्ध आवाज बुलंद करता रहा है। आज जिस प्रकार की घटनाएं घटित होती रहीं, वे यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि वर्तमान में प्रदेश की अधिकांश जनता का सरकार से विश्वास उठ गया है।

इसमें सरकार की कमी भी नजर आती है। सरकार ने दिखावे के लिए तीन सांसदों की कमेटी भी बनाई, जगह-जगह प्रदेश अध्यक्ष और कृषि मंत्री मीटिंगे भी करते रहे, ट्रैक्टर यात्राएं भी निकालीं लेकिन कभी किसान नेताओं से बैठकर बातचीत नहीं की। जब हरियाणा भवन में बातचीत के लिए किसान बुलाए गए थे, तब भी माहौल खराब होने से संवाद नहीं हो सका और यह संवादहीनता की स्थिति ही सरकार को किसानों से दूर ले जाती रही, जिसका परिणाम अब दिख रहा है।

राजनीति का नियम है कि राजनेता जनता के साथ चलते हैं और आज की स्थिति देखकर जो यह कहा जा रहा था कि हरियाणा में विपक्ष तो है ही नहीं और कहा गलत भी नहीं जा रहा था। कांग्रेस भी विपक्ष की भूमिका में बिल्कुल फेल नजर आई है अब तक। इनेलो, आप आदि पार्टियों का भी जनाधार रहा नहीं, आवाज उठाई तो भी जनता की उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब नहीं हुए।

इन स्थितियों में यह तय है कि विपक्ष अब जोरों से सक्रिय हो जाएगा, क्योंकि उन्हें यह नजर आ गया है कि अब कम प्रयास से बड़े परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। अत: यह कह सकते हैं कि आने वाले समय में सरकार का यह मुगालता दूर हो जाएगा कि हरियाणा में विपक्ष नाम की चीज है ही नहीं।

बात यहीं तक नहीं रहेगी, दूर तक जाएगी। भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार है और जजपा को किसान और कमेरे वर्ग की पार्टी कहा जाता है। ताऊ देवीलाल का नाम इनके ऊपर किसानों की अत्याधिक जिम्मेदारी देता है। अत: यह माना जा सकता है कि यदि जजपा अब भी किसानों के साथ नहीं खड़ी हुई तो उसका जनाधार समाप्त हो जाएगा और राजनीतिक पार्टियों का वजूद जनाधार पर ही टिका है। उस जनाधार को बचाने के लिए किस प्रकार की घोषणाएं उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला करते हैं, देखना होगा और कितना किसान हित की बात हरियाणा सरकार से मनवा पाते हैं, यह विचारनीय है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो संभव है कि उन्हें सत्ता से दूर होना पड़े। निर्दलीय उम्मीदवार भी सरकार के साथ इन परिस्थितियों में शायद जाना नहीं चाहेंगे, क्योंकि उन्हें भी चार दिन की राजनीति नहीं करनी, जीवनभर की राजनीति करनी है। अत: कह सकते हैं कि आने वाला समय गठबंधन सरकार के लिए परीक्षा का होगा।

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