भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

किसान आंदोलन के बारे में हरियाणा सरकार आरंभ से ही यह कहती नजर आ रही थी कि किसान के हित में हैं तीनों कृषि कानून और किसानों को कांग्रेस भडक़ा रही है। परंतु आज जो घटनाक्रम घटित हुए उन्हें देखकर लगता नहीं कि यह आंदोलन कांग्रेस द्वारा प्रायोजित था। आज जिस प्रकार अंबाला, करनाल अर्थात उस बैल्ट में किसान एकत्र हुए और उनके सामने हरियाणा सरकार के प्रबंध नाकाम साबित हुए, उससे यह स्पष्ट हो गया कि वास्तव में किसान ही इन कानूनों को पसंद नहीं कर रहे। 

जबसे केंद्र सरकार ने इन कानूनों का विधेयक पास किया, तब से ही हरियाणा-पंजाब के किसान इसके विरोध में आवाज उठाते रहे। हम हरियाणा की ही बात करेंगे। हरियाणा में भी इन कानूनों का विरोध हुआ और उस विरोध को शांत करने के लिए संपूर्ण हरियाणा सरकार किसानों को समझाने में लग गई। भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ जो पहले पांच साल कृषि मंत्री का पद भी संभाल चुके हैं और उससे पहले किसान सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं, ने भी लगातार हर जिले में जाकर मीटिंगें कीं और कहा कि किसानों को समझा दिया गया है और किसान हमारी बात से सहमत हैं, जो विरोध की आवाजें उठ रही हैं वे केवल कांग्रेस समर्थित किसान ही हैं।

इसी प्रकार कृषिमंत्री जेपी दलाल भी इस कार्य में पूर्णतया: संलग्न रहे। इन दो की बात क्या करें, वास्तव में देखा जाए तो सारी हरियाणा सरकार और सारा भाजपा संगठन इसी कार्य में लगा रहा लेकिन उनका परिणाम क्या निकला, वह आज सामने आ गया। कुछ कल पता लगेगा कि क्या प्रभाव होता है।

सरकार की कार्यशैली से यह स्पष्ट नजर आ रहा है कि जो मुख्यमंत्री यह कह रहे थे कि किसान आंदोलन कोई गंभीर बात नहीं है, वही सरकार रात से ही किसान नेताओं को गिरफ्तार करने में लग गई। जगह-जगह बेरिकेट्स लगाकर किसानों को रोकने के प्रबंध किए गए। आज हाइवे पर जहां किसान सक्रिय थे, यातायात लगभग अवरूद्ध रहा। इन स्थितियों को देखते हुए यह कहना शायद अनुचित नहीं होगा कि वास्तव में सरकार जानती थी कि किसान हमारे समझाने से समझ नहीं पाए हैं और वे यह मानते हैं कि ये तीनों कृषि कानून किसानों के हितों पर कुठाराघात है, जिससे किसानों का जीवन नर्क बन जाएगा। जीवन-यापन की समस्या खड़ी हो जाएगी और इसीलिए सरकार ने पहले ही इस प्रकार कार्य करना आरंभ किया, जैसे बहुत बड़ी समस्या प्रदेश पर आन पड़ी है।

हमारे मुख्यमंत्री पहले तो 22-23 तारीख को किसानों से और कर्मचारियों से यह अपील करते देखे गए कि प्रदेश में कोरोना बहुत बढ़ रहा है। अत: उस कारण हड़ताल या प्रदर्शन करना पूरे प्रदेश के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा। कोरोना मुंहबाय खड़ा है और बड़ी तेजी से पांव फैला रहा है। ऐसी अवस्था में हमें कोरोना से बचने के सभी उपाय करने चाहिएं। सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क का प्रयोग करना चाहिए तथा कहीं भी एकत्र होने से बचना चाहिए। 

मुख्यमंत्री के पास बहुत बड़ा खुफिया तंत्र है, जो प्रदेश की स्थितियों की उन्हें सूचना प्रदान करता रहता है। और शायद उन्हें सूचना मिल गई कि उनकी इस अपील का किसानों और हड़तालियों पर प्रभाव नहीं पड़ रहा। हांलाकि भारतीय मजदूर संघ जो भाजपा का ही अंग है, ने जरूर यह घोषणा की कि वह हड़ताल में शामिल नहीं होंगे परंतु और कहीं से इस प्रकार की बात नहीं आई। इसी को देखते हुए 24 तारीख को मुख्यमंत्री ने अपील करने के तरीके को बदला और निवेदन किया किसानों तथा हड़तालियों से कि हड़ताल करने से प्रदेश की प्रगति में नुकसान होता है। अत: देश और प्रदेश हित का ध्यान रखते हुए वे इस समय हड़ताल न करें परंतु इसका कितना असर हुआ, वह कुछ तो आज सामने आया है और कुछ कल 26 को सामने आ जाएगा।

आज सोशल मीडिया पर कुछ समाचार चल रहे थे कि प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का कहना है कि किसानों के साथ संयम से व्यवहार करना चाहिए। ऐसा इससे पूर्व हम करते रहे हैं। अर्थात वह किसानों को रोकने या वॉटर कैनल इत्यादि का इस्तेमाल करने को उचित नहीं समझ रहे। वास्तविकता वही जानें। दूसरी ओर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का कोई ब्यान इस बारे में आया नहीं। शायद वह यह बात समझ रहे हैं कि इस समय में कोई ब्यान देना उनके लिए घातक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि किसान भाजपा से अधिक उनसे खफा हैं, क्योंकि वह स्व. चौ. देवीलाल के पौत्र हैं और देवीलाल किसानों के परम हितैषी थे। 

इसी प्रकार आज कृषि मंत्री या अन्य किसी भाजपाई नेता का ब्यान आया नहीं। यहां तक कि जो मुख्यमंत्री कल तक अपील कर रहे थे, उनकी ओर से भी आज कोई ब्यान नहीं आया।आज किसान आंदोलन की सफलता को देखते हुए सुबह उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का ब्यान आया कि वह किसानों के साथ हैं और इसी प्रकार का ब्यान इनेलो के प्रदेश अध्यक्ष नफे सिंह राठी का भी अया। राजनैतिक चर्चाकारों का कहना है कि राजनीति जनभावनाओं के अनुरूप की जाती है और हरियाणा में किसान बहुसंख्यक हैं तथा किसानों के परिवार के लोग ही पुलिस में भी हैं, किसानों के साथ अढ़ती अर्थात व्यापारियों का भी इस हड़ताल में सहयोग है और साथ ही कुछ कर्मचारी संगठन भी सहयोग कर रहे हैं, ऐसे में कोई राजनैतिक दल इनसे सहयोग करने में दूर रह ही नहीं सकता। अत: इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि ये दोनों दल इनके समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं। 

वर्तमान परिस्थितियों को देखकर यह तो स्पष्ट नजर आ रहा है कि सरकार घबराई हुई दिखाई दे रही है। न तो उनमें एकजुटता दिखाई दे रही है और न ही कोई स्पष्ट नीति ही दिखाई दे रही इस समस्या के समाधान की। ऐसे में संभव है कि यह हड़ताल भाजपा और उसके सहयोगी जजपा में दूरियां बढ़ा दे। यह भी संभव है कि सिर पर खड़े निगम और पंचायत चुनावों पर भी सत्ता पक्ष को इसका भारी नुकसान उठाना पड़े। खैर ये सभी संभावनाएं हैं, बाकी तो समय अपने आप सब निर्णय करता है। हम भी देखेंगे, जनता भी देखेगी।

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