समय के साथ मीडिया का काम सरल लेकिन बेहद जोखिम पूर्ण. आज के परिवेश में सोशल मीडिया का है अधिक बोलबाला फतह सिंह उजाला बहुमंजिला इमारतें , शानदार कोठियां या फिर भव्य भवन का निर्माण करने वालों के अपने खुद के झोपड़े भी नहीं होते । यही हाल सही मायने में पत्रकारिता जगत से जुड़े और फील्ड में छोटे-छोटे कस्बों में काम करने वाले मीडिया कर्मियों या फिर पत्रकारों का भी है । यह कटु सत्य है, इस बात को कोई माने या नहीं माने । लेकिन जो बात सच है, इस बात को फील्ड में गांव, कस्बे स्तर पर काम करने वाले पत्रकार चाह कर भी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं । इस बात में किसी को कोई शक-सुबा नहीं होना चाहिए कि कलम की ताकत की बदौलत ही देश को आजादी मिली। क्योंकि जिस समय आजादी का संघर्ष आरंभ हुआ ,उस समय सूचनाएं एक क्रांतिकारी से दूसरे क्रांतिकारी तक पहुंचाने का एकमात्र साधन और व्यवस्था केवल मात्र कलम ही थी । समय बहुत तेजी से बदला और पत्रकारिता का काम करने का अंदाज भी उतनी ही तेजी से बदल रहा है । आज सूचनाओं का आदान प्रदान बेहद सरल हो गया है । यह सब तकनीक का चमत्कार है। हर जगह एक ही शोर , एक ही बात , एक ही नारा बोला जाता है कि मीडिया लोकतंत्र का चैथा स्तंभ है। अब कोई इस बात से सहमत हो या नहीं हो, लाख टके का सवाल यह है लोकतंत्र के चैथे स्तंभ मीडिया के आगे पीछे कितने स्तंभ मौजूद हैं ? बीते कुछ दिनों में मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी के अलावा खोजी पत्रकारिता और बेबाक रूप से सच्चाई कहने पर जो कुछ भी घटा अथवा घटना को अंजाम दिया गया । वह भी किसी से छिपा नहीं रह सका है कि अंततः लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ को देश की सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा ही सहारा मिला है । आज के दौर में प्रिंट मीडिया की भी अपनी एक अलग भूमिका और विश्वसनीयता पहले की ही तरह बरकरार है । यही कारण है कि पाठक समाचार पत्रों को पहले की ही तरह पसंद करते हैं ,पढ़ते हैं और अपनी प्रतिक्रियाएं भी व्यक्त करते हैं । अब बात करते हैं 18-20-24 पृष्ठ के किसी भी समाचार पत्र को उसकी खुराक , खबर के रूप में फील्ड में घूम कर विभिन्न प्रकार के जोखिम उठाते हुए समाचार पत्र को अपनी सूचना और खबरों के माध्यम से पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वालों की । सीधा अर्थ है की एक मजदूर की तरह किसी भवन, कोठी या महल का निर्माण में मजदूर की ही तरह अपना योगदान करते आ रहे हैं । जहां तक बात सुविधाओं की है इस पर चर्चा निश्चित रूप से बहस का मुद्दा बनने से इनकार नहीं किया जा सकता । देश में कुछ ही राज्य सरकारें हैं, जिनके द्वारा मीडिया पॉलिसी बनाई गई है । यहां विशेष रूप से हरियाणा और हरियाणा सरकार के सीएम मनोहर लाल खट्टर का नाम नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । वही कुछ राज्यों में पत्रकारों पर कथित रूप से प्रताड़ना सहित मुकदमे बाजी के मामलों को देखते हुए संबंधित राज्यों के हाई कोर्ट को भी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में काम कर रहे मीडिया कर्मियों की ढाल बनकर सामने आना पड़ा है । संविधान में सभी को एक समान अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान की गई है, फिर भी कहीं ना कहीं नैतिक सामाजिक और कानूनी लक्ष्मण रेखा भी अवश्य बनी हुई है । अब बात करते हैं क्या पूरे देश में मीडिया अथवा पत्रकारों के लिए एजुकेशन पॉलिसी की तर्ज पर मीडिया पॉलिसी क्यों नहीं बनाई जा सकती ? इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया इन तीनों की अपने-अपने काम के मुताबिक बहुत ही विशेष भूमिका और लोकतंत्र को जिंदा रखने में अहम योगदान है । अब सवाल और भी महत्वपूर्ण होने के साथ बेहद कड़वा है कि मीडिया और पत्रकारों में एकता एकजुटता का कहीं ना कहीं अभाव महसूस किया जा रहा है । अपनी-अपनी सोच और विचारधारा है तो यह बात कहने में भी कोई गुरेज नहीं की फिर चाहे राजनेता हो, राजनीतिक पार्टी हो, नेता हो या कारपोरेट घराने हो , इनकी भी मीडिया को लेकर अपनी अपनी पसंद बनी हुई है । इन सब बातों से इतर यह बात कहने में रत्ती भर भी अफसोस नहीं है की जब पत्रकारों के हक हकूक और जीवन यापन की मूलभूत जरूरतों की बात हो तो प्रबंधन कितना और किस प्रकार से साथ खड़ा होते हैं ? यह भी एक सवाल है । हालात और समय कैसा भी था, रहा है और रहेगा , पत्रकारिता को सम्मान मिलता रहा मिल रहा है और मिलता रहेगा। बात खत्म करने से पहले थोड़ा सा पीछे लौटते हुए एकजुटता के मुद्दे पर बात बिना किए बात पूरी नहीं हो सकेगी । वह यह है कि जिस प्रकार की एकता संगठनात्मक रूप से एकता देश के वकीलों में देखने को मिलती है , वह अपने आप में एक मिसाल है । किसी भी पत्रकार , मीडिया कर्मी के साथ कहीं भी किसी भी प्रकार से अत्याचार हो या फिर प्रताड़ित किया जाए तो कम से कम वकीलों की तरह ही एकता का परिचय देने की तरह गंभीरता से विचार करने की भी जरूरत है । बाकी तो जीवन है, पत्रकारिता करते हुए चल रहा है और चलता भी रहेगा । वैचारिक विरोधाभास को भी एकता और एकजुटता का रास्ता दिखाने और बनाने के लिए सशक्त माध्यम होने से इनकार नहीं किया जा सकता। Post navigation लाला लाजपत राय का बलिदान कोई भी भारतवासी कभी नही भूला सकता बिडेन, मोदी और भारत-अमेरिका संबंधों के बदलते आयाम