आफ द रिकार्ड–यशवीर कादियान

बातें ही बातें

सरकारों की एक खूबसूरती ये होती है इसमें कहां कहां के लोग कहीं भी पहुंच जाते हैं। ऊंची जगह जम जाते हैं। उनके ऊंचे पदों पर पहुंचने में आमतौर  पर उनकी प्रतिभा का कोई कसूर नहीं होता। हालात ही ऐसे हो जाते हैं कि वो बस पहुंच ही जाते हैं और फिर मजबूती से जमा दिए जाते हैं।  हरियाणा में एक अत्यंत कमाईदार विभाग के आईएएस विभागाध्यक्ष के बारे में क्या कहा जाए? काम करने-काम की जानकारी रखने से उनका वास्ता इतना ही है जितना नोटबंदी का कालाधन वापसी और आतंकवाद के खात्मे  से है। इसके बावजूद ये साहब लगभग हर सरकार में ठीक ठाक पद पाने में सक्षम हो ही जाते हैं।

इन साहब की महिमा का एक ताजा किस्सा ये है कि मुख्यमंत्री सचिवालय के एक अधिकारी ने इन साहब को फोन करके कहा कि एक सज्जन की लोकडाउन में नौकरी चली गई है। इन दिनों ये सज्जन काफी आर्थिक और वित्तीय परेशानी में है,लिहाजा इनको अनुबंध आधार पर-इनकी योग्यता के आधार पर इनको छोटी-मोटी अस्थाई नौकरी दे दी जाए। सीएमओ के अधिकारी के फोन के बाद ये साहब पर तुरंत एक्शन मोड में आ गए। उन जरूरतमंद सज्जन को झट से अपने पंचकूला स्थित आफिस में बुला लिया और कहा कि वो जल्द ही अपने विभाग में उनके लिए नौकरी का बंदोबस्त कर देंगे। वो सज्जन भी आश्वस्त हो गया कि जब इत्ते बड़े साहब बहादुर ने बोल दियो है तो है कि तो एक-दो दिन में उसे नौकरी मिल ही जाएगी। लेकिन ऐसा हो न सका। हो ये रहा था कि कभी साहब तो कभी उनके स्टाफ के लोग उस सज्जन को अपने पास पंचकूला  स्थित आफिस में बुला लेते या फोन पर तसल्ली देने लग जाते कि उनके लिए जल्द ही नौकरी का जुगाड़ किया जा रहा है। साहब उन सज्जन को सरकारी नियम कायदे समझाने लग जाते कि बोर्ड और निगम में नियम अलग तरह के हैं और विभागों में अलग किस्म के। मैं अगर बोर्ड या निगम में तैनात होता तो एक ही दिन में आपको नौकरी की चिटठी दे देता,लेकिन बतौर विभागाध्यक्ष नियम  इसकी इजाजत नहीं देते। फिर भी देखता हंू कि किस तरह से आपकी मदद की जा सकती है। आप हौसला रखिए।

आए दिन के इस तरह के लोलीपोप से तंग आए उन सज्जन ने एक दिन उन साहब की सारी खुमारी उतार दी। उन साहब को फोन पर कह दिया कि जनाब आपकी  बहोत बहोत मेहरबानी। ये किश्तों में तसल्ली और बेइज्जती मुझे नहीं चाहिए। मुझे अब आपकी नौकरी चाहिए ही नहीं। बहराल आपको मैं बता दंू कि मेरी नौकरी का जुगाड़ हो गया है।  वो भी एक सरकारी विभाग में। आपकी जानकारी के लिए मेरी मदद करने वाले साहब भी आपकी तरह ही विभागाध्यक्ष ही हंै। वो साहब किसी बोर्ड-निगम में तैनात नहीं है। आज ही इन साहब  को कहा था और आज ही मुझे नौकरी की चिट्ठी मिल भी गई। आप और आप के स्टाफ ने मेरी मदद की जो कोशिश की उसके लिए आपका दिल की  गहराईयों से शुक्रिया और आभार। आप का कोटि कोटि अभिनंदन। इस घटनाक्रम से ऐसा लगता है कि कई लोग ऊंचे पदों पर पहुंच कर भी सारी उम्र ही विद्यार्थी रह जाते हैं, कभी भी टीचर-मास्टर-शिक्षक-अध्यापक नहीं बन पाते।  इस हालात पर  कहा जा सकता है..

.वहां की रौशनियों ने भी जुल्म ढाए बहुत, मैं उस गली में अकेला था और साए बहुत

कमीशनखोर डीसी

गुड़गामा से सटे एक जिले के डीसी ने कम समय में ही कमीशनखोर के तौर पर प्रदेश भर में अपनी पहचान स्थापित कर ली है। सरकारी कामों को मंजूरी देने में वो छह से दस परसेंट तक कमीशन वसूलते  हैं…वो भी  डंके की चोट पर। यंू तो इन नरम मिजाज साहब की कमीशनखोरी के कई किस्से हैं। एक किस्सा ये है कि ग्राम की पंचायतें 50 लाख रूपए तक की अपनी फिक्सड डिपोजिट-एफडी को खर्च करने के लिए डीसी से अनुमति लेनी होती है। एक करोड़ रूपए तक की एफडी को खर्च करने के लिए सबंधित मंडल के कमीशनर से अनुमति लेनी होती है। इन डीसी ने ये नियम बना रक्खा है कि उनको छह परसेंट दो और एफडी को खर्च करने की इजाजत पाओ। झट से एफडी तुड़वाओ। अपने साहब इतने दिलेर हैं कि मंडलआयुक्त की मंजूरी वाली एक करोड़ की एफडी भी खुद ही किश्तें बना कर खर्च की मंजूरी दे देते हैं,बशर्ते उनको बरोबर कमीशन मिले। जब मनोहर सरकार का इतना ज्यादा पारदर्शिता और सिस्टम बनाने पर जोर है तो एफडी को खर्च करने के लिए भी कुछ इस तरह की व्यवस्था बनानी चाहिए कि इस तरह की कमीशनखोरी पर अकुंश लग सके।

भाजपा विधायक

ऐसा लगता है कि भाजपा के नेता ओर कार्यकर्त्ता अपनी सरकार और खुद की छवि को चार चांद लगाने का कोई  मौका नहीं गवांते। ऐसे मौके गंवाना वो अपनी शान के खिलाफ मानते हैं। ताजा मामला अटेली से भाजपा एमएलए सीताराम यादव से जुड़ा है।  सीताराम के घर कुनबे के लोगों पर आरोप लगा है कि इन्होंने एक पुलिस वाले पर हाथ साफ किया। उनसे गाली गलौच की। पिटाई की। आरोपियों के खिलाफ अपराधिक मामला दर्ज  हो चुका है। जैसा कि आमतौर पर इस तरह के मामलों-हादसों में होता है वैसा भी इस केस में होने से इंकार नहीं किया जा सकता.. वो ये कि दोनों पक्षों में समझौता हो सकता है। इन जनसेवकों की कार्यशैली को नमन करते हुए इतना ही कहा जा सकता है.

.तेरा इश्क भी मेरे गांव के चुनाव जैसा निकला, हवा तो मेरी तरफ की थी पर रूझान किसी और का निकला

You May Have Missed

error: Content is protected !!