बरोदा उपचुनाव में इन्दु राज नरवाल उर्फ भालू की जीत ने हरियाणा के भविष्य की राजनीति तय कर दी है। बरोदा में जहां एक ओर पूरी सरकार और सरकारी मशीनरी, बीजेपी, JJP, गठबंधन के छुपे हुए सहयोगी चुनाव मैदान में थे, तो वहीं, दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा मोर्चा संभाले हुए थे।

राजनीति के नाम समझने वाले मानते हैं कि बरोदा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत उसी दिन तय हो गई थी जिस दिन दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने एलान किया था कि यहां से इन्दु राज नहीं बल्कि वह खुद उम्मीदवार हैं। अपने 15 साल पुराने कार्यकर्ता को जीत दिलवाने के लिए दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपनी साख को दांव पर रख दिया, जबकि उन्हें पता था कि वह इस लड़ाई में चारों तरफ से घिरे हुए हैं। बावजूद इसके दीपेंद्र सिंह हुड्डा का खुद को आगे रखने का फैसला इस चुनाव का निर्णायक पॉइंट था।

पूरे चुनाव प्रचार के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा अपने मुद्दों पर टिके रहे। उन्होंने किसान की बात की, हरियाणा के विकास में पिछड़ने की बात कही, खुद के कार्यकाल में हुए कामों के नाम पर वोट मांगा, जबकि दूसरी तरफ से बीजेपी और जेजेपी का सारा फोकस हुड्डा परिवार पर निजी हमले करने पर रहा।

क्योंकि बीजेपी को पता है कि सिर्फ बरोदा नहीं बल्कि हरियाणा में भविष्य की लड़ाई भी सीधी भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा से है। बरोदा तो उसका बस लिटमस टेस्ट भर है। और इस टेस्ट में बीजेपी, JJP, खट्टर, INLD और हुड्डा विरोधी सारे मोहरे पिट गए और आखिरकार जीत हुड्डा की हुई।

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