बरोदा उपचुनाव में बड़ी जीत का दम भरने वाली भाजपा के पास स्थानीय समर्थकों का अभाव है जिसकारण उसने प्रदेशभर के कार्यकर्ताओं को बुलाकर स्थानीय लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी है , पार्टी के लिए माहौल बनाने पहुंचे अनजान लोगों को अपने ग्रामीण परिवेश में दखल समझ रहे हैं लोग और ईसी चिड़-चिड़ाहट में वह भाजपा के तमाम दिग्गज नेताओं को गालियां भी देते सुनाई- दिखाई दे रहे हैं फिर चाहें मुख्यमंत्री जी हों उपमुख्यमंत्री जी हों या धनखड़ हो और चाहें दिग्विजय सिंह हों सभी को कोसने को मजबूर हो गए हैं !

चर्चाएं तो यह भी हैं कि मुख्यमंत्री जी जो बातें कह रहे हैं कि बगैर पर्ची -खर्ची के नोकरियाँ देने वाली सरकार है तो उनके इन्हीं बयानों पर लोगों ने सवाल खड़े करते हुए पूछा है कि लोकडाउन में भी अधिकतम आयु सीमा पार करने वाले बुजुर्गों को नोकरियों पर टिकाए रखना और अधिकारियों को कमाई वाली सीटों पर तबादले भी बिना खर्ची के संभव हैं क्या ?खुद पर्ची से मुख्यमंत्री बना दिए जाने वाले खट्टर साहब बताएँ कि ओपी धनखड़ जी को प्रदेशाध्यक्ष किस योग्यता पर बनाया गया क्या उनके लिए पर्ची नहीं चली ?पराजित सुभाष बराला जी को सार्वजनिक उपक्रम ब्यौरों चेयरमैन बना दिया गया बगैर पर्ची से क्या ? 

पर्ची-खर्ची के बगैर सबसे अधिक कर सँग्रह कर राजश्व को भरने वाले गुरुग्राम जिले के तीनों विधायक मुँह ताकते रह गए और उनके ही दल के विरुद्ध चुनाव लड़ जीतने वाले निर्दलीय विधायक को चेयरमैनी सौंप दी गई कैसे और क्यों ?

क्या सरकार अस्थिरता की अवस्था मे आ गई थी या बहुमत साबित करने की संभावना बन गई थी  जो निर्दलीयों को तवज्जों दी गई  ?

दरअसल मुख्यमंत्री जी अपने खिलाफ पनप रहे किसी भी उन्माद को पनपने से पहले ही उसकी काट तलाशने में लगे हैं अपनी किलेबंदी मजबूत करने में लगे हुए हैं ।

बकौल तरविंदर सैनी (माईकल )  ऐसा नहीं है तो भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र से संगठनात्मक चुनावी प्रक्रिया से चुनाव होते तदोपरान्त प्रदेशाध्यक्ष चुना जाता कार्यकारिणी बना दी गई होती  यदि पर्ची से नहीं बने होते जो ओपी धनखड़ साहब तो – वरना क्या कारण रहा कि सँगठन निर्माण अधूरा है ?

बरोदा चुनावों के मद्देनजर भी सँगठन विस्तार नहीं किया गया क्योंकी स्यिथियाँ विस्फोटक हो सकती थी भाजपा में अर्थात स्वम् को बारूद के ढेर पर बैठा देख सँगठन विस्तार की तीली जलाना उचित नहीं समझा भाजपा ने ,

सभी मान मर्यादाएं भंग करने वाली पार्टी का दावा फुस हो गया है , वह सभी रीतियाँ – नीतियाँ भूल चुकी है वरना हरियाणा दिवस को प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता रहा है परन्तु अबकी बार सरकार की तथा उनके दल की बरोदा उपचुनाव के चलते कोई रुचि नहीं दिखाई दे रही है प्रदेश में विषैली जातिगत राजनीति करने में माहिर भाजपा को अब लोगों ने अच्छे से समझ लिया है और शबक सिखाने का मन बना लिया है जिसका नतीजा दस नवंबर को सामने आ जाएगा ।

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