उमेश जोशी

बरोदा उपचुनाव में बीजेपी को पसीने आ रहे हैं। बीजेपी ने इस चुनाव में जितनी ताकत झोंक रखी है उतनी ताकत हरियाणा के लोकतांत्रिक इतिहास में किसी भी पार्टी ने किसी भी चुनाव में नहीं लगाई होगी; खुद बीजेपी ने पहले कभी किसी चुनाव में इतना ज़ोर नहीं लगाया था; नाक की लड़ाई बने जींद उपचुनाव में भी नहीं।    

बरोदा विधानसभा क्षेत्र के 54 गाँवों में बीजेपी के कार्यकर्ता डेरा जमाए हुए हैं। कार्यकर्ता सुबह सुबह हर घर में राम-राम बोलने पहुंच जाते हैं। किसी मतदाता को यह शिकायत नहीं होगी कि रामभक्त मिलने नहीं आए। कृषि कानूनों से खफा किसान ‘राम राम’ से कतई खफा नहीं हैं इसलिए प्यार से रामभक्तों की ‘राम राम’ स्वीकार भी कर रहे हैं। जब तक सीधे वोट नहीं मांगेंगे तब तक किसानों की ओर कोई सवाल भी नहीं दागेगा। बीजेपी चाहती है कि रोज़ाना सुबह सुबह हर घर में बीजेपी की हाज़िरी लग जाए ताकि मतदाता को ईवीएम का बटन दबाते समय रोज़ाना हाज़िरी लगाने का पार्टी का पुण्य याद आए। 

राम नामी मुहिम के साथ बीजेपी के बड़े नेता भी अलख जगाने के लिए हलके में पहुँच रहे हैं। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री भी जल्द पहुंचेंगे। मनोहर लाल खट्टर और दुष्यंत चौटाला दोनों लाव-लश्कर के साथ 29 से 31 अक्तूबर तक मतदाताओं के बीच जाकर उनसे मनुहार करेंगे; मतदाताओं के गिले-शिकवे दूर करने की कोशिश भी करेंगे; आचार संहिता की मजबूरी दिखा कर खुले तौर पर ‘कुछ’ ना दे पाने की लाचारी भी ज़ाहिर करेंगे; आश्वासनों की बारिश भी करेंगे। पार्टी के छोटे नेता इन संभावनाओं की धुंधली तस्वीर अभी तक दिखा चुके होंगे। साफ तस्वीर तो मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ही दिखाएंगे। अब वो घड़ी भी आ गई है। 

काँग्रेस भी पूरी ताकत से जुटी हुई है लेकिन बीजेपी के मुकाबले चुनावी अभियान में थोड़ी पीछे है। काँग्रेस के पास प्रचार के लिए प्रभावशाली नेता कम हैं। प्रचार में जुटे नेताओं में अधिकतर वो नेता हैं जिनका राजनीतिक असर ना के बराबर है।

काँग्रेस का सबसे मजबूत पक्ष यह है कि उसके साथ ताकतवर परिस्थितियाँ हैं। उन परिस्थितियों ने सत्तारूढ़ पार्टी के भी पैर उखाड़ दिए हैं और उसे ऐतिहासिक चुनाव लड़ने के लिए मजबूर कर दिया है।    

 काँग्रेस में स्टार प्रचारक की भूमिका में  राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा हैं। उनको हलके के हर गांव में ज़बरदस्त जनसमर्थन मिल रहा है। दीपेंद्र हुड्डा के कार्यक्रम, रोड शो और जनसभाएँ जीत की गारंटी साबित हो रहे हैं। हर गांव में ढोल-नगाड़ों, ट्रैक्टर रैली और जनसैलाब के साथ दीपेंद्र का स्वागत किया जा रहा है। ऐसा उत्साह और जोश बीजेपी की रैलियों में नहीं दिख रहा है। 

सांसद धर्मवीर ने भले ही विपक्ष पर जात-पांत की राजनीति करने का आरोप लगाया है लेकिन वो यह भूल गए कि बीजेपी तो जाति के साथ साथ गोत्र की राजनीति भी कर रही है। मलिक वोट बटोरने की नीयत से चार मलिक नेताओं को पार्टी में शामिल कर बीजेपी ने साबित कर दिया कि वह जात-पांत की राजनीति में काँग्रेस से एक कदम आगे है।

राजनीति में कुछ नेता ‘चले हुए पटाखे’ की तरह होते हैं। उनका खोल सही सलामत होता है लेकिन उनकी बारूद निकल चुकी होती है। ऐसे पटाखे दुबारा नहीं चलते हैं। बीजेपी में शामिल हुए पूर्व विधायक किताब सिंह मलिक ‘चले हुए पटाखे’ की तरह हैं। दस साल पहले इनकी किताब राजनीतिक अध्याय बंद हो चुका है। ऐसे नेताओं की वोट दिलाने में कोई भूमिका नहीं होती है। वे ड्राइंग रूम में सजाने वाले ‘शो पीस’ जैसे होते हैं। 

 एक और मलिक को जोड़ कर बीजेपी ने यह हवा चलाने और दिखाने की कोशिश की है कि पार्टी से कोई नाराज़ नहीं है। अभी भी नेता जुड़ कर पार्टी को मजबूत बना रहे हैं। इन स्वनामधन्य नेताजी का नाम है जगबीर सिंह मलिक। सरकारी नौकरी में हैं। वैधानिक तौर पर कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी राजनीतिक संगठन या पार्टी का सक्रिय सदस्य नहीं हो सकता और ना ही उनकी गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभा सकता। ऐसा किए जाने पर कानून का उल्लंघन माना जाएगा और उस कर्मचारी को नौकरी से बर्खास्त करने का प्रावधान है।

जगबीर सिंह मलिक ने दिल्ली के हरियाणा भवन में मुख्यमंत्री समेत पार्टी के कई नेताओं की मौजूदगी में कानून का उल्लंघन किया। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री ने खुद कानून का उल्लंघन करने के लिए प्रेरित किया। मुख्यमंत्री जानते थे कि जगबीर सिंह मलिक ने सरकारी नौकरी से वीआरएस के लिए अर्जी दे रखी है। अभी तक वीआरएस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। इसका अर्थ है कि जगबीर सिंह मलिक आज भी सरकारी कर्मचारी हैं और कल पार्टी में शामिल होते समय भी सरकारी कर्मचारी थे।

मुख्यमंत्री यह भी कहते हैं कि जगबीर सिंह मलिक अच्छे इंसान हैं; इन्होंने करनाल में चुनाव के समय मेरी मदद की थी। जब मुख्यमंत्री खुद स्वीकार कर रहे हैं कि सरकारी कर्मचारी चुनाव में सक्रिय था तो उन्होंने अन्य सरकारी कर्मचारियों को राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभाने से रोकने का नैतिक अधिकार खो दिया है। वैसे नियमानुसार जगबीर सिंह मलिक के वीआरएस के सारे लाभ खत्म हो जाने चाहिएं। लेकिन, खत्म करेगा कौन? सरकार खुद अपनी देखरेख में गैर कानूनी काम करवा रही है। 

बीजेपी को ‘राम राम’ घर घर पहुंचा कर चुनाव जीतने की अपनी रणनीति पर पूरा भरोसा होगा इसीलिए कार्यकर्ता 54 गाँवों में कई दिन से जुटे हुए हैं लेकिन किसानों ने काँग्रेस को आशीर्वाद देकर बीजेपी को ‘बाय बाय’ करने का फैसला कर लिया है। बीजेपी किसानों का मन जीत कर उनका फैसला बदलवाने में कितनी कामयाब होती है, बीजेपी इसी कठिन सवाल की परीक्षा दे रही है।

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