कमलेश भारतीय

मुम्बई के रिपब्लिक टीवी के चीफ एडिटर अर्णब गोस्वामी की रिपोर्टिंग शैली पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि मीडिया के व्यक्ति से सवाल भी न पूछें । मीडिया की भूमिका पर सवाल क्यों नहीं ? यह भी जस्टिस ने कहा कि मैं इस स्तर की बहस को कभी स्वीकार नहीं कर सकता । बहस का स्तर सार्वजनिक रूप में ऐसा कभी नहीं रहा । इसके उदाहरण पालघर लिंचिंग और बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर प्रवासी मजदूरों का इकट्ठा होने की कवरेज को बताया गया । पालघर लिंचिंग की रिपोर्टिंग साम्प्रदायिक घृणा फैलाये जाने के समान था । वकील साल्वे से कहा गया कि आपके मुवक्किल से हम जिम्मेदारीपूर्ण रिपोर्टिंग करनी चाहिए ।

इस तरह मीडिया को कठघरे में खड़ा कर दिया रिपब्लिक और अर्णब गोस्वामी ने । सुशांत केस की रिपोर्टिंग भी इसी तरह की रही । इस केस की रिपोर्टिंग में तो सारे नियम कानून और मर्यादा तोड़ दी गयी । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को अरे उद्धव ठाकरे तक संबोधित किया जाता रहा । संजय राउत को भी बख्शा नहीं गया । सिर्फ मान सम्मान कंगना रानौत और शेखर सुमन का या मुकेश खन्ना का । चीफ एडिटर जैसे ही एंकर्स रहे जो सांस फुला फुला कभी रिया चक्रवर्ती तो कभी दीपिका पादुकोण तो कभी सारा अली खान की गाड़ियों के पीछे पागलों की तरह भागते रहे । बहस में बुला कर मेहमान को अपमानित करना आम बात रही । क्या उन्हें सिर्फ अपनी बात सुनाने के लिए बुलाया जाता था ? कुछ जवाब देने के लिए नहीं ? जरा सा मुंह खोलते ही अर्णब आदेश देते कि आप चुप रहिए । मेरी सुनिए । फिर ऊपर से दावा कि हमारा चैनल नम्बर वन । हमने बाइस साल वाले पुराने आज तक चैनल को पछाड़ दिया और पता चला कि टीआरपी के लिए भी पता नहीं क्या क्या गुल खिलाये । हद है । यह गला काट प्रतियोगिता । स्तर और मर्यादा कुछ नहीं ? कहां ले आए मीडिया को और कहां गर्त में ले जाओगे ? कभी सोचा ? कभी मुम्बई के पुलिस कमिश्नर को भला बुरा कहने से नहीं चूके । अब सारे स्टाफ पर एफआईआर दर्ज । काहे का रोना?

मीडिया चौथा स्तम्भ है लोकतंत्र का । बड़ी महिमा है इसकी । स्वतंत्रता से पूर्व मीडिया ने देशभक्ति के लिए जेल तक काटी । प्रतिबंध सहे । अखबारों को बंद किया जाता था । आर्थिक घाटे सहे । पर लोकतंत्र और स्वतंत्रता की लड़ाई से पीछे नहीं हटे । अब।मीडिया को गोदी मीडिया और बिकाऊ तक कहा जाने लगा है । क्यों ? रिया चक्रवर्ती का इंटरव्यू किस नियम या मर्यादा से किया गया ? साख गिरा दी । बाद में साबित हुआ कि रिया ड्रग्स लेती थी और सज़ा भी काटी । अब जमानत पर बाहर । हाथरस में मीडिया ने जरूर राज्य प्रशासन के अधिकारियों को सबक सिखाया और आइना दिखाया । काश , मीडिया अपनी भूमिका का निर्वाह जिम्मेदारी से करे तो कोर्ट की फटकार का सामना न करना पड़े ।

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