-कमलेश भारतीय

महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बीच संबंध बहुत मधुर नहीं हैं । कारण स्पष्ट है कि शिवसेना और भाजपा के भी अच्छे संबंध नहीं रहे । भाजपा और शिवसेना का गठबंधन इस बार टूट गयी । इसमें से दोनों में किसका अहंकार ज्यादा था , कुछ कह नहीं सकते । पर थोड़ी परिपक्वता या रणनीति बनाई होती तो गठबंधन बच सकता था । अब गठबंधन एनसीपी और कांग्रेस के साथ है । इसी पर असल में राज्यपाल कोश्यारी ने तंज कह दिया कि उद्धव जी , क्या आप धर्मनिरपेक्ष हो गये अब ? इसी तंज पर एनसीपी के अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने बहुत दुख व्यक्त करते कहां है कि यदि कोश्यारी जी में थोड़ा सा भी स्वाभिमान बचा होता तो वे राज्यपाल पद छोड़ देते । वैसे भी जिस तरह से कोश्यारी ने कंगना रानौत ही नहीं उस पूर्व वायुसेना अधिकारी को राज्यपाल भवन में समय दिया , वह भी बहुत कुछ इशारे कर देता है । इस तरह कितने पीड़ितों से रोज़ मिलते हैं आप ? राजनीति के लिए आपने इन्हें बुलाया ।

देखा जाये तो राज्यपाल व मुख्यमंत्री के बीच उस हर राज्य में संबंध कम।मधुर होते हैं जहां केंद्र और,राज्य सरकार अलग अलग पार्टियों की होती हैं । यह कोई नयी बात भी नहीं । कितने उदाहरण हैं । एक सभय आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रामलाल को इस्तीफा देना पड़ा था , इसी तरह की स्थितियां बनने पर । हरियाणा को कैसे भूल सकते हैं ? जब ऐसी स्थिति बनने पर मुख्यमंय्री बनते बनते रह जाने पर चौ देवी लाल ने गुस्से में तत्कालीन राज्यपाल तपासे को ठुड्ढी पकड़ ली थी । कांग्रेस के बनाये उत्तराखंड के राज्यपाल तिवारी जी के भवन से बाहर आते अंतरंग किस्से क्या बयान करते थे ? इसी तरह हरियाणा के एक राज्यपाल धनिक लाल मंडल जी मालिश करवाने के शौकीन बताये गये थे ।

कोश्यारी जी ने भी अजीत पवार व देवेंद्र फडणबीस को आधी रात के समय शपथ दिला दी थी बिना बहुमत का परीक्षण किये । बाद में सरकार पलट गयी । फिर राज्यपाल की यह कार्रवाई राजनीति से प्रेरित मानी जायेगी या नहीं ? क्या यह कार्रवाई उन्हें संदेह के घेरे में लाती है या नहीं ? इसी तरह राजस्थान में सरकार के विधानसभा सत्र बुलाने के प्रस्ताव को बार-बार लौटाते समय वहां के राज्यपाल किसका हित साधने में लगे हुए थे ? संविधान की रक्षा या पार्टी की रक्षा ? जिसने राज्यपाल पद दिया उसकी आज्ञा सिर आंखों पर । बाकी कुछ नहीं जानते । इसीलिए शरद पवार को कहना पड़ा कि जरा भी स्वाभिमान हो तो त्यागपत्र दे दो । अब यह विवाद नया नहीं पर छुटकारा कैसे ?

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