केंद्रीय खुफिया विभाग( IB) में  1970 में नेशनल पुलिस  एकेडमी माउंट आबू (राजस्थान) से ट्रेनिंग से इनका शुरू हुआ  नाज का सफ़र 2007 में चंडीगढ़ में अवकाश प्राप्त से समाप्त हुआ। सेवाकाल में कश्मीर ,असम,  उत्तर प्रदेश, हरियाणा और चंडीगढ़ आदि में जीवन के तमाम अनुभव इन्होने प्राप्त किए जिनका आभास इनकी रचनाओं में स्पष्ट नजर आता है। सुरक्षा से जुड़े अनुभव ये बांट नहीं सकते।

 डॉo सत्यवान सौरभ,  रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,दिल्ली यूनिवर्सिटी,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

केंद्रीय ख़ुफ़िया विभाग के सहायक निदेशक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी नरेश नाज वास्तव में सत्यमेव जयते के पुजारी है और आज एक सच्चे कवि के रूप में अपनी ईमानदार कलम से देश-विदेश में अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए है. आज ये राष्ट्रीय एवं सामाजिक सरोकारों से जुड़कर देश भक्ति पूर्ण गीतों से राष्ट्रवाद को मजबूत कर रहें है. यही नहीं इन्होने खुद के पैसों से राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक मंच के जरिये देश भर के असहाय वृद्धों को सहारा देने का काम भी शुरू कर रखा है.

महिला रचनाकारों को साहित्य से जोड़ने के लिए एक राष्ट्रीय महिला काव्य मंच को बरसों से चला रहें हैं. इस मंच से देश-विदेश की हज़ारों महिला साहित्यकार जुडी है.  नरेश नाज  पूर्व में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार  एवं अपराध संगठन के राष्ट्रीय सलाहकार रह चुके है तो इनका मानव हितेषी स्वाभाव इनको इंसानियत के नाते मानव हित के कार्य करने के लिए प्रेरित करता रहता है.

बचपन में श्रीमती महादेवी वर्मा के आशीर्वाद से शुरू हुआ इनका  साहित्यिक सफ़र आज भी जारी है। प्रयागराज में उनके घर पर इन्होने महादेवी जी को कविता समर्पित की थी जो  ‘मां तेरे पावन चरणों की धूल चाहता हूं’ नाम से  इनकी पुस्तक ‘एक गीत का वादा’ में दर्ज़ है । यूं तो इनके गीतों में जीवन के हर रंग का समावेश है परंतु देश प्रेम और सामाजिक सरोकार इनके प्रिय विषय रहे हैं । इन्हें लेकर इन्होने  ‘ताल’ नाम से एक सीरीज शुरू की जिसकी पहली पुस्तक ‘रामभरोसे’ नाम से 2014 में प्रकाशित हुई जिसका 2018 में पंजाबी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ।

 एक राष्ट्रवादी कवि, पूर्व केंद्रीय खुफिया अधिकारी और एक जागरूक नागरिक होने के नाते देश के हालात पर इनकी नज़र बनी रही और इनके अनुभव गीतों में ढलते रहे । इस तरह ‘ताल’ सीरीज की ‘ताल’ ,’सत्यमेव जयते’ ,’ आईना’, ‘हकीकत’ और ‘दर्पण’ सामने आईं। देश और समाज के हालात को काव्यात्मक रूप में पेश करने का इनका अंदाज आम जन को बहुत भाया है जिसने इनको बहुत आत्मिक सुख दिया है।

 केंद्रीय खुफिया विभाग( IB) में  1970 में नेशनल पुलिस  एकेडमी माउंट आबू (राजस्थान) से ट्रेनिंग से इनका शुरू हुआ  सफ़र 2007 में चंडीगढ़ में अवकाश प्राप्त से समाप्त हुआ। सेवाकाल में कश्मीर ,असम,  उत्तर प्रदेश, हरियाणा और चंडीगढ़ आदि में जीवन के तमाम अनुभव इन्होने प्राप्त किए जिनका आभास इनकी रचनाओं में स्पष्ट नजर आता है। सुरक्षा से जुड़े अनुभव ये  बांट नहीं सकते। इस बारे इनका कहना है कि बस ये समझ लीजिए कि देश और समाज सेवा के इतने अवसर मिले कि जीवन धन्य हो गया। मुझे याद है अपने रिटायरमेंट की विदाई समारोह में मैंने कहा था कि अगर दोबारा जन्म लिया तो एक बार फिर इंटेलिजेंस ब्यूरो में सेवा करना चाहूंगा ।

इनका  मानना है कि कविता केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं बल्कि यह  व्यक्ति का आध्यात्मिक ,मानसिक भावनात्मक, शारीरिक और सामाजिक विकास भी करती है और व्यक्ति को एक अच्छा इंसान बनाती है। कविता से लोग जुड़े इस उद्देश्य को लेकर मैंने दो काव्य संस्थाओं ‘महिला काव्य मंच ‘और ‘राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच’ की स्थापना की जो भारत के 28 राज्यों एवं  20 देशों में कार्यरत है।

इंटेलिजेंस ब्यूरो एक अच्छा एवं साफ़-सुथरा विभाग है, इसमें न तो विभागीय दबाव होता है और न ही राजनितिक हस्तक्षेप. यदि मेरा पुनर्जन्म हो तो मैं चाहूंगा मुझे इसी विभाग में सेवा करने का पुनः सुअवसर मिले.आईoबीo के अधिकतर कर्मचारी कर्तव्य निष्ठ, ईमानदार और साफ़ छवि के होते है इसके बावजूद कि कि इस विभाग में भ्रष्टाचार के सबसे ज्यादा मौके होते हैं. लेकिन बमुश्किल ही कोई कर्मचारी भ्रष्ट आचरण की राह पर चलता होगा. मैंने अपने सेवा काल के दौरान भ्रष्टाचार से खुद को दूर रखा और मुझे इस बात की प्रसन्नता और गर्व है.

मेरी पहुँच बड़े-बड़े अधिकारियों, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों से सीधी रही, ये सभी मेरे लगातार में सम्पर्क में होते थे. भ्रष्ट आचरण अपनाकर मैं कितना भी पैसा काम सकता था, मैं चाहता तो पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में कहीं भी आलिशान कोठी(बंगला) मुफ्तखोरी से बना सकता था मगर मेरी आत्मा कभी इस ओर गई ही नहीं. आपको आश्चर्य होगा कि मैं आज भी अपनी नेक कमाई से बनाये अपने छोटे से 100  गज के प्लाट में हंसी-ख़ुशी जीवन जी रहा हूँ. जहाँ में बेहद मस्त और मन से खुश हूँ.

प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ रामनिवास मानव ने श्री नरेश नाज़ के बारे के बार बताते हुए कहा कि वे एक ईमानदार पूर्व अधिकारी होने के साथ-साथ एक राष्ट्रवादी चिंतक, सांस्कृतिक चेतना के अग्रदूत,ओजस्वी   कवि और आदर्श इंसान है. कहा भी गया है कि सत्य में हजार हाथियों का बल होता है। इसलिए सत्य ही हमारा जीवन बने, हमारा कर्म बने। क्योंकि सत्य-अभियान के पुजारी ही तो हैं हम सब।