उमेश जोशी

तस्वीर साफ है। तीनों दलों के उम्मीदवारों ने आज नामांकन पत्र भरने के आखिरी दिन पर्चे भरे। राजनीतिक पंडितों के सारे कयास कबाड़ साबित हुए। बीजेपी के योगेश्वर दत्त के नाम पर भी प्रश्न चिह्न लगाया जा रहा था जबकि उसके अलावा किसी का दावा बनता ही नहीं था। योगेश्वर दत्त ने काँग्रेस के कृष्ण हुड्डा को कड़ी टक्कर दी थी। यूँ कहें कि पहलवान योगेश्वर दत्त ने इस सीट से तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरे कृष्ण हुड्डा को अच्छे रगड़े लगाए लेकिन चित नहीं कर पाए; मात्र 4840 मतों से दंगल हार गए। 

 बीजेपी के कुछ नेताओं ने प्रयास किया था कि सरकार में पार्टनर जेजेपी के भूपेंद्र मलिक को उतारा जाए। मलिक पिछले चुनाव में योगेश्वर दत्त से 5246 मतों से पीछे थे। यह कौन-सा गणित है कि नंबर दो को हाशिये पर धकेल कर नंबर तीन को टिकट दिया जाए। भूपेंद्र मलिक ने दिल्ली में दम लगा रखा था तभी योगेश्वर दत्त को भनक लगी और पहुँच गए लाव लश्कर के साथ दिल्ली दरबार। टिकट का फैसला करने वाले नेताओं की याददाश्त जगाई और दूसरे स्थान पर होने के नाते अपना दावा ठोंका। नेताओं को दलील समझ आई और पहलवान को फिर से मैदान में उतारने फैसला किया। बीजेपी शायद यह मान चुकी है कि दूसरे या तीसरे नंबर से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, किसानों की नाराजगी के सामने किसी का भी टिकना मुमकिन नहीं है, भले ही किसी का कोई भी नंबर हो। 

बीजेपी ने बरोदा चुनाव में समीकरण सुधारने के लिए गुरुवार को 14 निगमों के चेयरमैन और एक निगम के वाईस चेयरमैन की भी घोषणा की है। यह घोषणा इत्तेफ़ाक़ नहीं है; सोची समझी रणनीति के तहत नामों का एलान किया गया है। इस 14 नामों में 8 बीजेपी और 5 जेजेपी के नेता और विधायक है। एक निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद को भी उपहार दिया गया है। बीजेपी को आज इस खेल में बड़ा झटका उस समय लगा जब पार्टनर पार्टी जेजेपी के विधायक जोगीराम सिहाग ने चेयरमैन पद का तोहफा लेने से मना कर दिया। यह भी कह दिया कि  तीन कृषि कानून किसान विरोधी हैं इसलिए किसान नाराज़ हैं। ऐसी स्थिति में चेयरमैन पद कैसे ले सकता हूँ। मैं किसानों के साथ हूँ। सिहाग के बयान से यह तो स्पष्ट हो गया कि किसानों की नाराजगी पार्टनर पार्टी के विधायकों को दिखाई दे रही है। दूसरे संदेश यह है कि जेजेपी के विधायक को नाराज़गी दिख रही है तो पार्टी अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की क्यों नहीं दिख रही है। चेयरमैन पद ठुकराने के फैसले से तीसरा संदेश यह जाता है कि जेजेपी के विधायक अपनी पार्टी की नीतियों का अंधाधुंध अनुकरण नहीं कर रहे हैं। 

काँग्रेस का उम्मीदवार भी अप्रत्याशित है। कल गुरुवार तक कपूर नरवाल का नाम सबसे आगे था। भूपेंद्र हुड्डा चाहते थे कि कपूर चुनाव लड़े। काँग्रेस ने अपने चरित्र के अनुरूप आज शुक्रवार को नामांकन भरने के आखिरी दिन उम्मीदवार का फैसला किया। पिछले कई दशकों से काँग्रेस की यही परंपरा है, आखिरी दिन नामों की घोषणा होती है। काफी जद्दोजहद के बाद इंदुराज नरवाल को अखाड़े में उतारा है। इस बार टिकट के फैसले में प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने हुड्डा का कद छोटा कर दिया। हुड्डा अपने चहेते कपूर नरवाल को टिकट नहीं दिलवा सके। इससे साबित होता है कि हुड्डा की पार्टी पर पकड़ कमज़ोर हो रही है। कुमारी सैलजा ने कहा,  कपूर नरवाल को टिकट देने का अर्थ होता, चुनाव में जाने से पहले ही हार जाना। भावी राजनीति को निष्कंटक बनाने के लिए यह चुनाव जीतना हुड्डा के लिए बहुत ज़रूरी है। किसानों में बीजेपी का विरोध होने के बावजूद काँग्रेस अपनी सीट नहीं बचा पाई तो यह हुड्डा की व्यक्तिगत हार मानी जाएगी। साथ ही, यह भी अर्थ लगाया जाएगा कि हुड्डा का मनपसंद उम्मीदवार नहीं था इसलिए उन्होंने पूरा जोर नहीं लगाया। 

 इनेलो ने योगेंद्र मालिक पर दांव लगाया है। एक समय था जब ताऊ देवी लाल की पार्टी का इस सीट पर वर्चस्व था। इस दृष्टि से अभय चौटाला की इनेलो भी अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। इनेलो जेजेपी के वोटों में सेंध लगाएगी जिसका बीजेपी को नुकसान होगा। 

लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष राजकुमार सैनी ने भी पर्चा भरा है। सैनी चुनाव जीतने के लिए पर्चा नहीं भरते हैं। वे किसी को परोक्ष फायदा दिलाने या किसी का खेल बिगाड़ने के लिए मैदान में उतरते हैं। वे हमेशा संदेह के घेरे में रहते हैं। वे बयान कुछ भी दें लेकिन उनकी नीयत बीजेपी को फायदा दिलाने की ही होती है या यूं कहें कि उनका जो वोट बैंक है उससे स्वतः बीजेपी को फायदा मिल जाता है। यदि सैनी एक-दो चुनाव में ऐसे ही और उतर गए तो उन्हें ‘हरियाणा के धरतीपकड़’ का खिताब अवश्य मिल जाएगा।

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