अग्रोहा से महाराजा अग्रसेन का यह सन्देश-एक रहेगा भारत देश – बजरंग गर्ग

लगभग 5144 वर्ष पूर्व एक महान अग्र-विभूति ने जन्म लिया। जिन्होंने जर्जर हो चुकी एकतंत्रीय प्रणाली को समाप्त कर ऐसी अनोखी एवं अनुकरणीय लोकतांत्रिक प्रणाली का श्रीगणेश किया और सभी वर्गो को संगठित कर युग प्रवर्तक अहिंसा के पुजारी शांति के दूत अग्रवाल समाज के संस्थापक के रूप में महाराजा अग्रसेन के नाम से प्रसिद्ध हुए।

उस समय देश में राजवंशों की भरमार थी और निराशा का घोर अंधकार चारों और छाया हुआ था। महाराजा अग्रसेन ने समाजवाद तथा आर्दश लोकतंत्र की प्रकाश रश्मिया बिखेर कर जग में उजियारा किया।

सरस्वती के पावन किनारे बसे प्रताप नगर के सूर्यवंशी है। भगवान राम जी के 35 वीं पीढ़ी के राजा वल्लभ जी और महारानी माधवी के घर आश्विन शुक्ल प्रतिपदा प्रथम नवरात्रा को उनके जन्म लेते ही पुरोहित गर्ग ऋषि ने घोषणा की यह बालक बहुत बड़ा शासक बन कर परिवार की ख्याति को चार चांद लगाए जो सही साबित हुई।

जन्म से ही राजसी लाड प्यार से हुए लालन-पालन ने अग्रसेन जी को तपस्वी और सुरवीर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। युवा होते ही उन्होंने पिताजी से शासकीय कामकाज में हाथ बंटाना शुरू कर दिया बचपन से ही नीति वान और दूरदर्शी होने का पूरा पूरा लाभ राज के कामाकज कुशलतापूर्वक करने में मिला जिसमें चारों और उनकी राज्य की प्रशंसा होने लगी तथा उनकी दूरदर्शी नीतियों से दुश्मन भी दोस्त बन गए।

यौवन की दहलीज पर पांव रखते ही पिता के आदेश से नागलोक के महाराज महिधर और महारानी नागेंद्र की पुत्री राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में पहुंचे तो राजकुमारी ने इनको सुंदरता और तेज से प्रभावित होकर उनके गले में वरमाला डाल अपना पति बना दिया जिससे दो संस्कृतियों का मिलाप हुआ तथा उनके राज्य की ओर ताकत मिली।

थ्पता के वृंदावन के काल ग्रसित होने पर इन्होंने लोकगट जाकर पिंडदान किया और वह इस ओपन में पिता का आदेश पाकर सरस्वती और यमुना के बीच एक स्थान पर विधि पूर्वक ने राज्य आग्रह की स्थापना कर सभी को जियो और जीने दो का संदेश दिया चारों ओर फैले घोर अंधकार में समाजवाद की ऐसी मिसाल कायम की जिसकी प्रकाश रश्मिया ने पूरे विश्व में उजियारा कर दिया।

महाराजा अग्रसेन जी ने अपने राज्य में बाहर से आकर बसने वाले या जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए एक रूपए एक ईंट की एक प्रथा शुरू की । जो पूरे विश्व में एक मिसाल बन गई। इस पंरपरा के अनुसार उनके राज्य में बसने वाले जरूरतमंदों या बाहर से आकर बसने वालों को प्रत्येक परिवार एक ईंट व एक सोेने की मुद्रा और एक उपहार स्वरूप देता था ताकि ईंटों से रहने के लिए घर और मुद्राओं से कारोबार कर रोजी-रोटी कमा सकें और अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकें।

उनके घर 18 पुत्रों ने जन्म लिया जिनका नामांकरण विभिन्न ऋषियों के नाम पर हुआ और आगे चलकर यही गोत्र की स्थापना हुई जो कि इस प्रकार से हैः- गर्ग, गोयल, गोयन, बंसल, कंसल, सिंघल, मंगल, जिन्दल, तिंगल, ऐरण, धारण, मुधुकुल, बिन्दल, मित्तल, तायल, भन्दल, नागल, कुच्छल है। जो आज भी गीता के 18 अध्याय में जुड़े है, आपने मां लक्ष्मी की आराधना कर प्राप्त किया जब तक अग्र वंशज लक्ष्मी जी की उपासना करते रहेंगे। तब तक वे  धन-धान्य से संपत्र रहेंगे। आप ने यज्ञ में पशु बलि के स्थान पर नारियल का प्रयोग किया जिसके कारण ही आज देश के चार करोड़ के अग्रवाल समाज में अधिकतर लोग शाकाहारी और धर्म परायण है।

108 वर्षाे तक कुशलतापूर्वक शासन करने के पश्चात कुलदेवी मां लक्ष्मी जी के आदेश से महाराजा अग्रसेन जी अपने बड़े पुत्र विभु को शासन का कार्यभार सौंप कर वानप्रस्थाश्रम चले गए।

महाराजा अग्रसेन जी के वंशज आज अग्रवाल के नाम से पूरे विश्व में जाने जाते है और इस समाज की कई विभूतियों ने अपने कार्यो से अग्रवाल समाज का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया है जिसमें महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय जी डॉक्टर राम मनोहर लोहिया सर गंगाराम मैथिलीशरण गुप्त भारततेंदु हरिश्रवंद्र सेठ जमनालाल बजाज, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी है।

भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 200 किलोमीटर दूर अग्रोहा धाम के नाम से अग्रवालों के तीर्थ स्थान के रूप में विकसित हो रहा है। जहां प्रतिदिन देश और विदेशों से हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते है और अग्रोहा धाम में व देश के कोन-कोने में करोड़ों रूपयों की लागत से विकास कार्य हो रहे है और देश के हर राज्यों में अग्रोहा धाम द्वारा भव्य भवनांे का निर्माण कराया जा रहा है।

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