भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

बरौदा उपचुनाव का जादू राजनैतिक दलों के सिर चढक़र बोलने लगा है। हालांकि इस एक सीट से विधानसभा में कोई भी विशेष अंतर पडऩे वाला नहीं है परंतु राजनैतिक दलों की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर लगी है और प्रतिष्ठा की लड़ाई सबकुछ भुला देती है, इसलिए कह सकते हैं कि इस चुनाव में साम दाम दंड भेद सब दिखाई देगा।

चुनाव की घोषणा ही नहीं नामांकन की तारीख भी आ चुकी है ंलेकिन अभी तक किसी ने नामांकन नहीं भरा है। जिन दो पार्टियों में मुख्य मुकाबला होने की चर्चा है, वह हैं भाजपा और कांग्रेस और दोनों में से किसी ने भी अभी अपने उम्मीदवार भी तय नहीं किए हैं। उम्मीदवारों का चयन दोनों को कितना भारी पड़ेगा, यह आने वाला समय बताएगा कि कौन टिकटार्थी जो लाइन में लगे हैं, वे इनके साथ रहेंगे या फिर उडक़र कहीं और चले जाएंगे, ऐसा दोनों दलों में संभव है। आने वाला समय हमें शायद यह दिखाए।

सर्वप्रथम बात करें सत्तारूढ दल भाजपा की। तो आज इनकी मीटिंग हुई थी और सूत्रों के अनुसार 25 उम्मीदवारों के नाम हाइकमान को भेजे गए हैं। अब उन 25 में से किसका चुनाव होगा यह हाइकमान तय करेगा लेकिन सूत्र यह भी बताते हैं कि उम्मीदवार तो पहले ही तय है। यह सब तो पार्टी कार्यकर्ताओं को दिखाने की कवायद भर है।

भाजपा में अनेक बातें चलीं। सभी पुराने उम्मीदवार योगेश्वर दत्त को ही चुनाव में उतारने की बात थी। फिर यह तय हुआ कि जाट उम्मीदवार आएगा। पहले संजय भाटिया थे, फिर जेपी दलाल प्रभारी हो गए। ओमप्रकाश धनखड़ के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर माहौल बदलता सा नजर आया। भाजपा में ही चर्चाएं चलने लगीं कि अब मुख्यमंत्री की चलेगी या प्रदेश अध्यक्ष की। उन सब बातों को भूलकर यदि आज की ओर देखें तो आज की मीटिंग की अध्यक्षता मुख्यमंत्री ने की।

बात हम उम्मीदवार की कर रहे थे। पिछले दो दिनों से जो जजपा के बारे में बातें नहीं हो रही थी, अब बार-बार नेताओं के ब्यान आ रहे हैं कि जजपा और भाजपा मिलकर चुनाव लड़ेंगे और चुनाव चिन्ह भाजपा का होगा। उन बातों से कयास लगाए जाने लगे कि भाजपा के यह 25 तो निरर्थक मेहनत कर रहे हैं। उम्मीदवार तो जजपा का होगा और आज की मीटिंग में मुख्यमंत्री के साथ केसी बांगड को बैठे हुए देख इन चर्चाओं को बल मिल रहा है। सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि भाजपा की ओर से केसी बांगड बरौदा उपचुनाव के प्रत्याशी होंगे।

अब बात करें कांग्रेस की तो कांग्रेस की ओर से 18 उम्मीदवारों की लिस्ट हाइकमान को भेजी जा चुकी है। जिसमें से हाइकमान ने एक पर मुहर लगानी है। अब प्रश्न यह है कि जब इस चुनाव को केवल और केवल भूपेंद्र सिंह हुड्डा से जोडक़र देखा जा रहा है। विपक्षी दल भी कह रहे हैं कि यह भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सम्मान की लड़ाई है और दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से भी इतने समय से दोनों बाबू-बेटे के अलावा और कोई वरिष्ठ नेता सक्रिय नजर आया नहीं है। अत: ऐसे में यह मानना उचित है कि टिकट भूपेंद्र सिंह हुड्डा के संकेत से ही मिलेगी। अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा का संकेत तो एक का ही होगा, क्योंकि सीट तो एक ही है। बाकी 17 उम्मीदवारों का क्या होगा। यह भी कहा जा रहा है कि बरौदा से कुछ समाचार ऐसे भी मिल रहे हैं कि हुड्डा साहब ने भी कई उम्मीदवारों को टिकट का आश्वासन दे रखा है।

अब प्रश्न उठता है कि जिसे टिकट मिलेगी, उसके अतिरिक्त 17 में से कितने व्यक्ति कांग्रेस के उम्मीदवार को जिताने में जुटेंगे और कितने निष्क्रिय हो जाएंगे तथा कितने कहीं दूसरी ओर सहारा ढूंढेंगे। यह तो हुई कांग्रेस की बात लेकिन सूत्रों से एक जानकारी और भी मिल रही है कि यदि भाजपा की ओर से केसी बांगड को टिकट दी गई तो भाजपा के टिकटार्थियों में से कोई भूपेंद्र सिंह हुड्डा का उम्मीदवार हो सकता है। ऐसी अवस्था में देखना यह होगा कि हुड्डा समर्थक भाजपा से आए नए उम्मीदवार को कितना समर्थन देंगे। इन दोनों की स्थिति का अवलोकन करने के पश्चात यह तो दिखाई दे रहा है कि दोनों पार्टियों के वरिष्ठ कार्यकर्ता कहीं न कहीं अपना पाला बदल सकते हैं या अपना झंडा अलग भी उठा सकते हैं और यही वह खेल है, जिसकी हम बात कर रहे हैं।

यह तो हुई दोनों बड़ी पार्टियों की बात लेकिन इस प्रकार के माहौल में अन्य दलों को भी नकारा नहीं जा सकता। इनेलो के अभय चौटाला तो डंके की चोट कह रहे हैं कि वह उम्मीदवार तब घोषित करूंगा, जब दोनों पार्टियां उम्मीदवार घोषित कर देंगी। उनका सीधा सा अर्थ है कि दोनों पार्टियों में से जिस अधिक जनाधार वाले नेता को टिकट नहीं मिली होगी, वह उसे टिकट देकर अपना उम्मीदवार बनाएंगे, जिससे वह अपनी भी जीत की संभावनाएं तलाश सकें।

इसके अतिरिक्त बलराज कुंडू घोषणा कर रहे हैं कि वह अपना पंचायती उम्मीदवार उतारेंगे। अन्य नकारे हुए नेता भी जैसे अशोक तंवर, राजकुमार सैनी… आदि सभी यदि पंचायती उम्मीदवार के साथ हो गए और वह उम्मीदवार भी कोई ऐसा हो जो इन दोनों बड़ी पार्टियों से टिकट न मिलने से हताश हो या जिसने निर्दलीय अपना झंडा गाड़ दिया हो, उसे यह सब सहयोग कर दें तो वह भी अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बरौदा उपचुनाव अभी बिल्कुल खुला है, कुछ भी हो सकता है। इसके बारे में अभी से कुछ अनुमान लगाना निरर्थक होगा। अनुमान लगाने की बारी तब आएगी, जब उम्मीदवार नामांकन भर चुके होंगे और नामांकन वापिस लेने की तारीख जा चुकी होगी। तब तक हमें इस प्रकार के खेल देखने को मिलते रहेंगे।

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