हाई कोर्ट में अब तक 7 याचिकाएं दाखिल , 2 की जॉइनिंग पर रोक

चंडीगढ़, 2 अक्टूबर: हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) द्वारा कथित रूप से तय नियमों और निर्धारित मानदंडों को ताक पर रखकर मनमाने तरीके से 10 जिला लोक संपर्क एवं जन सूचना अधिकारियों का अभी हाल ही में किया गया विवादास्पद चयन भाजपा-जजपा सरकार के गले की फांस बन गया है. धांधलियों के इन आरोपों के बीच सरकार फिलहाल कोई जवाब देने को स्थिति में नहीं लगती.

ये मामला इतना गर्मा गया है कि अब तक पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट में इन नियुक्तियों को चुनौती देते हुए 7 याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं जबकि दो नियुक्तियों पर कोर्ट ने अगले आदेश तक अंतरिम रोक लगा दी है.

इस बीच, सरकार द्वारा इन दो नियुक्तियों को छोड़कर बाकी सभी सफल उम्मीदवारों की जॉइनिंग हड़बड़ी में वीरवार को देर शाम तक करवाए जाने का समाचार है.

असफल उम्मीदवारों द्वारा हाई कोर्ट में दायर याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि आयोग ने निर्धारित योग्यताओं और अनुभव सम्बन्धी सभी मानदंडों को दरकिनार कर अयोग्य और अनुभवहीन चहेतों की पक्षपातपूर्ण और मनमाने तरीके से नियुक्ति कर दी और विरोध के स्वर उठने कि बाद कवर अप करने के उद्देश्य से नियुक्ति के दस दिन बाद आनन् फानन में मेरिट लिस्ट, क्राइटेरिया और आंसर की सम्बन्धी दस्तावेज जारी कर दिए जिसमे कई सारे विरोधाभास हैं जो नियुक्तियों पर सवालिया निशान खड़े करते हैं.

जिन दो उम्मीदवारों— जय सिंह और कुरुक्षेत्र में एक बुक शॉप के मालिक के बेटे सुमित चावला– की नियुक्ति पर हाई कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाई है उनमे से सुमित चावला के पत्रकारिता के अनुभव प्रमाण पत्र में त्रुटि के गंभीर आरोप हैं जबकि जय सिंह, जोकि लोक संपर्क विभाग चंडीगढ़ में फीचर राइटर के तौर पर कार्यरत है–को आयोग ने मनमाने ढंग से 21 सितम्बर को जारी संसोधित परिणाम में सामान्य श्रेणी से हटाकर पूर्व सैनिकों (एक्स सर्विसमैन) के लिए आरक्षित श्रेणी में भेज दिया था. फलस्वरूप ईएसएम श्रेणी में पहले से चयनित उम्मीदवार सतीश कुमार–जो की बहादुरगढ़ में सहायक लोक संपर्क अधिकारी के तौर पर तैनात है–की नियुक्ति गैरकानूनी तौर पर रद्द कर दी गयी. सतीश कुमार ने आयोग के निर्णय को हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दायर कर दी जिससे जय सिंह की नियुक्ति पर अंतरिम रोक लगा दी गयी.

याचिकाओं के अनुसार आयोग ने ये पूरा खेल एक अन्य असफल उम्मीदवार आदित्य चौधरी (रोल नंबर 22197 )–जो की खट्टर-1 सरकार में वित्त मंत्री रहे भाजपा के एक बड़े नेता का मीडिया इंचार्ज था–को अंतिम समय में लिस्ट में ऊंची राजनीतिक पहुँच के चलते गैरकानूनी तरीके से जबरदस्ती फिट करने के मंतव्य से किया. गौरतलब है कि 18 सितम्बर को आयोग द्वारा जारी अंतिम परिणाम में आदित्य चौधरी का नाम ही नहीं था. दिलचस्प बात ये है कि आयोग ने इसका कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया कि क्यों इंटरव्यू में असफल हुए उम्मीदवार आदित्य चौधरी को संसोशित सूची में शामिल किया गया.

इसके अलावा, आरोप है कि कुछ चयनित उम्मीदवारों के पास भर्ती विज्ञापन में मांगे गए किसी राष्ट्रीय समाचार पत्र या चैनल का अनुभव नहीं है तथा उन्होंने अपने आवेदन के साथ बिना सैलरी स्लिप, और आयकर विवरण के किसी छोटे मोटे अखबार और पब्लिशिंग हाउस के अनुभव प्रमाण पत्र जमा करवाए हुए हैं जोकि निर्धारित मानदंडों के विरुद्ध है. जबकि एक उम्मीदवार मनोज कौशिक ने डिजिटल पत्रकारिता का अनुभव लगाया हुआ है जिस पर सवाल उठ रहे हैं.

याचिकाओं के अनुसार सुमित चावला का पत्रकारिता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है, लेकिन इसके बावजूद उनका चयन कर लिया गया और एक अन्य चयनित उम्मीदवार सोनिया, जो कि गुरुग्राम में कंसलटेंट के तौर पर कार्यरत बताई जातीं हैं, का अनुभव भी संदेह के घेरे में है. आरोप है कि इन दोनों का चयन सत्ता के गलियारों से जुड़े कुरुक्षेत्र के एक प्रभावशाली धार्मिक गुरु के इशारे पर हुआ है. इसके विपरीत न्याय के लिए हाई कोर्ट में गुहार लगाने वाले एक असफल उम्मीदवार नीरज कुमार का अंग्रेजी के एक पुराने और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्र में करीब 12 साल का अनुभव होने के बावजूद चयन नहीं किया गया जबकि भर्ती विज्ञापन में अंग्रेजी भाषा को प्राथमिकता देने की बात कही गयी थी. इसके अतिरिक्त, एक अन्य चयनित उम्मीदवार राजन शर्मा का अनुभव भी निर्धारित मानदंडों के अनुरूप नहीं बताया जाता.

चयनित 10 में से 5 पहले से ही कर रहे हैं सहायक लोक संपर्क अधिकारी के तौर पर काम

जिन 10 उम्मीदवारों का चयन आयोग ने किया है उनमे से पांच पहले से ही सरकार में सहायक लोक संपर्क अधिकारी के तौर पर काम कर रहे हैं और पद्दोन्नति कि कगार पर बताये जाते है. इनमे एक कृष्ण कुमार हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज की पब्लिसिटी देख रहे हैं . ऐसे में उनका चयन उन उम्मीदवारों कि हितों पर एक कुठाघात है जो 2015 में इन पदों पर आवेदन करने बाद पिछले पांच साल से नौकरी मिलने की उम्मीद लगाए बैठे थे.

संभवतया ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार में दस पद भरने पर सात याचिकाएं कोर्ट में लग जाएँ. ये सरकार और आयोग दोनों की विश्वसनीयता पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है, विशेषकर तब जब खट्टर सरकार ‘बिना पर्ची और बिना खर्ची’ के योग्यता के आधार पर पारदर्शी और निष्पक्ष होकर नौकरियों में चयन करने का आये दिन राग अलाप रही है जबकि इन नियुक्तियों को देखकर स्थिति कुछ और ही समझ में आ रही है.

खैर अब मामला हाई कोर्ट में है, जहाँ से योग्य एवं अनुभवी उम्मीदवारों को न्याय मिलने की पूरी उम्मीद है.

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