भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

किसान आंदोलन का सबसे अधिक असर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पर पड़ रहा है। स्थान-स्थान पर उनका विरोध हो रहा है। पीटीआइ भी दुष्यंत चौटाला का जमकर विरोध कर रहे हैं। अनेक स्थानों पर किसान दुष्यंत चौटाला के बारे में तरह-तरह के पोस्टर भी निकाल रहे हैं। इन सभी बातों से अनुमान होने लगा है कि दुष्यंत चौटाला सरकार का साथ छोड़ सकते हैं।

दुष्यंत चौटाला का यह अनुमान लगाने के पीछे चर्चाकार तर्क यह देते हैं कि किसानों का गुस्सा भाजपा से अधिक दुष्यंत पर है और कारण यह कि वह ताऊ देवीलाल के वंशज हैं और उनकी विरासत के नाम पर ही पद पर काबिज हैं। और फिर किसानों का सहयोग नहीं कर रहे। इसके साथ-साथ अब दुष्यंत चौटाला के पुराने किए हुए वादे भी याद आने लगे हैं। और साथ ही यह भी याद आने लगा है कि चुनाव से पूर्व दुष्यंत चौटाला स्वयं भी मंचों से भाजपा का विरोध करते नहीं थकते थे। वर्तमान स्थिति में उन्हें इनका साथ नहीं देना चाहिए।

यह बात आम जनता ही नहीं शायद भाजपा भी सोच रही है कि दुष्यंत चौटाला जनता के दबाव में आकर गठबंधन सरकार से अलग हो सकते हैं, क्योंकि उनके कुछ विधायक तो पहले ही अलग सुर बोल रहे थे और कुछ अब किसान आंदोलन से बोलने लगे हैं। अत: भाजपा यह मानकर चल रही है कि यदि दुष्यंत चौटाला उनसे अलग भी हो जाएं तो हम किस प्रकार अपनी सरकार बचा पाएंगे।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल शायद यही सोचकर निर्दलीयों को मनाने में जुट गए हैं।

आज वह विधायक गोपाल कांडा से मिले। गोपाल कांडा से मिलना भाजपा की अत्याधिक कमजोरी दर्शा रहा है। क्योंकि गोपाल कांडा वही हैं, जिन्होंने बिना शर्त भाजपा को समर्थन दिया था तो भाजपा से ही इनके समर्थन लेने पर विरोध की आवाजें उठने लगी थीं। अत: राजनैतिक हलको में आज सारा दिन यही चर्चा रही कि सरकार गिरने के अंदेशे अत्याधिक बढ़ गए हैं। तभी मुख्यमंत्री गोपाल कांडा से मिले हैं। वास्तविकता क्या है, यह मुख्यमंत्री जानें या गोपाल कांडा।