फिर बढ़ी चिंता की लकीरें

धनंजय कुमार

   यह समस्या इसलिए भी गंभीर है क्योंकि अभी तक इस महामारी का कोई इलाज तक नहीं खोजा जा सका है। सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क का उपयोग ही बचाव का जरिया हैं। लेकिन देखने में यह आ रहा है कि रोजमर्रा की जिंदगी में लोग अब इन उपायों की अनदेखी कर रहे हैं। अब जो बड़ा खौफ सता रहा है, वह यह कि क्या कोरोना फिर से लौट आया है! दिल्ली समेत कई राज्यों में कोरोना के मामले जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, वह चिंता पैदा करता है। दिल्ली में हाल तक संक्रमितों की संख्या में कमी आने लगी थी और लगने लगा था कि अब यहां संक्रमण पर काबू पाया जा चुका है। लेकिन अब संक्रमण के मामले रोजाना रिकार्ड बना रहे हैं। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक समेत कई राज्यों में मामले लगातार बढ़ रहे हैं। चिंता अब इसलिए भी बढ़ रही है कि पिछले तीन हफ्तों में कोरोना से होने वाली मौतों में पचास फीसद की वृद्धि हुई है। यह स्थिति तब है जब देश ने कोरोना से निपटने में कोई कसर नहीं छोड़ी और महामारी से जंग में दिल्ली मॉडल को देशभर में खूब सराहा गया। प्रधानमंत्री ने तो राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में कहा भी था कि कोरोना से निपटने राज्यों को दिल्ली की तरह काम करना चाहिए। मगर नतीजा कुछ नहीं निकला। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से राज्यों से बात करनी पड़ी है। इस समीक्षा बैठक का क्या परिणाम आएगा, वक्त बताएगा, मगर अभी कोरोना जिस तेजी से यूटर्न मार रहा है, उसे खतरे की घंटी जरूर मानना चाहिए। चिंता और भय के पीछे एक और कारण विशेषज्ञों का यह अंदेशा भी है जिसमें दिल्ली सहित कई जगह कोरोना की दूसरी लहर आने के खतरे की बात कही जा रही है। ऐसे में तो यह मानना भ्रम ही होगा कि कोरोना का उच्चतम स्तर बीत चुका है और यह लौट कर नहीं आएगा। इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि महामारी की दवा और इलाज के अभाव में सरकारों के पास भी संसाधन और विकल्प सीमित हैं, उनकी भी अपनी सीमाएं हैं।

  कोरोना से निपटने की चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं। हर दिन संक्रमण और मौतों के आंकड़े नई ऊंचाई छू रहे हैं। ऐसे में नागरिकों की सजगता और सहयोग के बिना इस जंग को जीत पाना मुश्किल होगा। कहा जा रहा है कि जांच में तेजी आने से संक्रमितों की पहचान भी तेजी से हो रही है, इसलिए आंकड़े कुछ बढ़े हुए दर्ज हो रहे हैं। पर कुछ लोगों को शिकायत है कि जांच में अपेक्षित गति नहीं आ पा रही है। जब जांच में तेजी नहीं आ पा रही तब कोरोना के मामले दुनिया के अन्य देशों की तुलना में हमारे यहां चिंताजनक रफ्तार से बढ़ रहे हैं, तो इसमें और तेजी आने पर क्या स्थिति सामने आएगी, अंदाजा लगाया जा सकता है। एक सप्ताह में भारत में मामले दुनिया में सबसे अधिक दर्ज हुए। अमेरिका, ब्राजील जैसे देशों को भी पीछे छोड़ हम आगे बढ़ गए हैं, जहां दुनिया में अभी तक सबसे अधिक मामले दर्ज हो रहे थे। यह सभी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। 

 इसके साथ ही एक और नई चिंता यह बढ़ गई हैं कि मुक्तिधामों में काल कवलित हो चुके लोगों का अंतिम संस्कार करने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। जिसके कारण मुष्किलें और बढ़ गई है। सवाल यह भी उठ रहा हैं कि क्या इतना त्वरित मुक्तिधामों का निर्माण और संचालन करना संभव है। यह प्रष्न भले ही सुनने और पढ़ने में अटपटा ही क्यों न लग रहा हो। परंतु इस सच्चाई से इनकार भी नहीं किया जा सकता और इस हकीकत को नकारा भी नहीं जा सकता। विभिन्न राज्यों के स्थानीय प्रषासन को इस पर त्वरित निर्णय तो लेना ही होंगे। बेहतर हो कि राज्य सरकारें इस ओर कदम उठाने के लिए तत्पर हो। इस जंग में चुनौती ही नहीं चेतावनी भी समाहित है।

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