भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आज 25 सितंबर को भारतीय किसान यूनियन ने भारत बंद की घोषणा कर रखी है। जाहिर है कि भारत बंद में हरियाणा भी बंद होगा। अब प्रश्न यह है कि हरियाणा में भाकियू का बंद कितना सफल हो पाता है या असफल रहता है।

भाजपा सरकार तभी से जनता को समझा रही है कि तीनों अध्यादेश किसान हित में हैं। इसमें मुख्यमंत्री मनोहर लाल, उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, कृषि मंत्री जेपी दलाल के अतिरिक्त भी अनेक मंत्री लगे हुए हैं किसानों को समझाने के लिए कि ये अध्यादेश किसानों के हित में हैं और विपक्षियां पार्टीयां उन्हें बरगला रही हैं।

इसी कड़ी में वीरवार को भी सभी नेता सक्रिय रहे। कुरूक्षेत्र जहां यह घटना घटी थी, में वीरवार को पूर्व मंत्री कर्णदेव कंबोज, इंद्री राजकुमार कश्यप, लाड़वा से पूर्व विधायक डॉ. पवन सैनी और भाजपा के प्रदेश महामंत्री चौ. वेदपाल इन तीनों अध्यादेशों के पक्ष में समर्थन करते रहे। इसके अतिरिक्त बरोदा में कृषि मंत्री और बरोदा विधानसभा उपचुनाव के प्रभारी जेपी दलाल भी अध्यादेशों के समर्थन में प्रचार करने गए थे लेकिन वहां उन्हें जनता का बहुत विरोध झेलना पड़ा तथा वहां से वापिस आना पड़ा।

वीरवार को मुख्य बात यह रही कि कांग्रेस की ओर से कोई विशेष टिप्पणी नहीं आई। हां, आप पार्टी की ओर से लगभग पूरे हरियाणा में अध्यादेशों के विरूद्ध प्रदर्शन किए गए। इसके अतिरिक्त भी कुछ व्यापारी, कर्मचारी आदि किसानों के साथ आने का दावा कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में यह देखना होगा कि जनता ने कितने किसान भाजपा नेताओं की बात मानकर भारत बंद से दूर रहते हैं और कितने इसे किसान हित में न मानते हुए भारत बंद में भाग लेते हैं।

भाजपा सरकार बंद से अंदर-अंदर घबराई हुई तो अवश्य लगती है। गृहमंत्री और मुख्यमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि किसानों पर लाठीचार्ज तो हुआ ही नहीं और गृहमंत्री ने तो यहां तक कहा कि जिन किसानों ने या राजनैतिक पार्टियों ने 20 तारीख को सडक़ रोको में भाग लिया था, उन पर भी कार्यवाही होगी, क्योंकि सडक़ रोकना नियम के विरूद्ध है।

वीरवार को गृहमंत्री अनिल विज ने सभी पुलिस अधिकारियों के साथ मिलकर स्थिति की गंभीरता को समझा और साथ ही अधिकारियों को निर्देश दिए कि किस प्रकार शांतिपूर्ण ढंग से स्थिति को संभाला जा सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अपनी बात कहने का अधिकार सभी को है और वे कह सकते हैं लेकिन कानून तोडऩे का अधिकार प्रदर्शन के बहाने किसी को नहीं है और हम यह अपील करेंगे कि कोई भी कानून न तोड़े। भाजपा में मिली-जुली परिस्थितियां चल रही हैं। जहां भाजपा के मंत्री और कुछ विधायक बहुत जोरों से इसके समर्थन में बोल रहे हैं, वहां ऐसे विधायक भी हैं जो इस समय भी इस विषय पर कुछ बोलना पसंद नहीं कर रहे। जहां तक भाजपा के पदाधिकारियों की बात है, उनमें भी स्थिति ऐसी ही है। कुछ पदाधिकारी ही ब्यान दे रहे हैं, अधिकांश चुप्पी साधे हुए हैं।

वीरवार को भाजपा के लिए शायद बुरी खबर भी है कि उनके कुछ पूर्व विधायकों ने एक गुप्त बैठक की है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उस बैठक में पूर्व विधायक परमिन्दर ढुल, पूर्व सीपीएस रामपाल माजरा, पूर्व विधायक बलवान सिंह दौलतपुरिया, पूर्व विधायक बूटा सिंह, पूर्व सीपीएस श्याम सिंह राणा व अन्य कुछ विधायक भी रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि ये विधायक गठबंधन सरकार की कार्यशैली से असंतुष्ट हैं और किसान अध्यादेशों पर भी सरकार से अलग स्टैंड रखते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इन विधायकों ने आगामी रणनीति पर चर्चा की है। और हां, जानकारी के अनुसार कांग्रेस के पूर्व विधायक भागसिंह छातर भी इस बैठक में शामिल थे।

इस प्रकार दुष्यंत का विरोध भी जगह-जगह जारी है। स्थान-स्थान पर यह कहा जा रहा है कि वह किसान विरोधी हैं और उनके विरूद्ध नारे भी लगाए जा रहे हैं। इनकी पार्टी के ही विधायक देवेंद्र बबली तो खुलकर अध्यादेश के विरूद्ध बोल रहे हैं। इसी प्रकार पूर्व में भाजपा में रहे बलराज कुडू तो इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर किसानों के साथ रहने की बात कर रहे हैं। इन स्थितियों में यह कह सकते हैं कि वर्तमान में भाजपा के समस्त कार्यकर्ता, पदाधिकारी ही इन अध्यादेशों के बारे में बंटे हुए हैं।

राजनैतिक चर्चाकारों के अनुसार इस समय भाजपा अपने परीक्षा के समय से गुजर रही है, क्योंकि हरियाणा में भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के नाम और उनकी लोकप्रियता के आधार पर ही राज कर रही है। ऐसे-ऐसे विधायक जीते हैं, जिन पर अगर मोदी का नाम नहीं होता तो वे कभी इसका सपना भी नहीं देख सकते थे। ऐसी स्थिति में भाजपा सरकार स्थाइत्व का प्रश्न मोदी की लोकप्रियता से जुड़ा हुआ है और वर्तमान में शायद मोदी की लोकप्रियता कुछ घटती नजर आ रही है और इसी को देखते हुए पार्टी में सरकार और उसकी कार्यशैली के विरूद्ध आवाजें उठनी लगी हैं।

चर्चाकारों का कहना है कि पांच अगस्त को राम मंदिर उद्घाटन के अवसर पर जब हरियाणा में आशानुरूप लोगों के घरों में देशी घी के दीये नहीं जले, तब यह महसूस हुआ था कि मोदी की लोकप्रियता घट रही है। अब यह भी कहना है कि उनकी लोकप्रियता तेजी से घटने का कारण कोरोना भी हो सकता है, क्योंकि कोरोना के कारण इस समय हरियाणा की सारी जनता या यूं कहें देश की जनता बेहाल है, रोजी-रोटी की चिंता से ग्रस्त है, अनेक कठिनाइयों से जूझ रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री का उनकी पीड़ाओं को कम करने पर ध्यान देने की बजाय राजनैतिक क्रियाकलापों में लगे रहने के कारण जनता नाराज हुई है। जिसका प्रमाण इसी माह हुई प्रधानमंत्री के मन की बात में सामने आया, जिसमें लाइक-डिस्लाइक का ऑप्शन ही बंद करना पड़ा और इसी के चलते मुख्यमंत्री मनोहर लाल की प्रेस कांफ्रेंस जब लाइव हुई तो उनके लाइक 60 और डिस्लाइक 1200 आए। अत: यह बात सिद्ध हो रही है कि वर्तमान में मुख्यमंत्री मनोहर लाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में बहुत कमी आई है।

अब यह भारत बंद फिर एक बार परीक्षा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल की विश्वसनीयता की, क्योंकि इन दोनों का ही कहना है कि किसान अध्यादेश किसानों के हित में है और एमएसपी जारी रहेगा और मंडियां भी जारी रहेंगी। यह दूसरी बात है कि किसानों की ओर से कहा जा रहा है कि यह अध्यादेश में क्यों नहीं शामिल लेकिन हरियाणा में भाजपा के सभी नेता और साथ में उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला जनता से यही कह रहे हैं कि हमें कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आश्वासनों पर विश्वास रखना चाहिए।

भारतीय किसान यूनियन का यह भारत बंद एक प्रकार से सरकार की लोकप्रियता और विश्वसनीयता की परीक्षा होगी। यह तो हम कह सकते हैं कि इस बंद में किसान-किसान ही नहीं अपितु सभी विपक्षी दल, व्यापारी और कुछ कर्मचारी भी सफलता के लिए प्रयास करेंगे। ऐसी स्थिति में यदि भाजपा इस बंद को नाकाम करने में सफल हुई तो हम विश्वासपूर्वक यह कह सकेंगे कि ये जो पिछले दिनों सरकार के विरूद्ध माहौल बना हुआ है, वह केवल विपक्षी पार्टियों का शोर है और जनता अभी भी भाजपा पर विश्वास करती है परंतु यह पूर्ण रूप से सफल रहा तो यह माना जाएगा कि भाजपा अपना जनाधार खो चुकी है।

वर्तमान में जो भाजपा और उसकी सहयोगी जजपा की स्थितियां दिखाई दे रही हैं, इनसे ऐसा प्रतीत होता है कि शायद भाजपा इस बंद को असफल करने में सफल नहीं हो पाएगी और यदि ऐसा हुआ तो राजनैति विश्लेषकों और चर्चाकारों के अनुसार आने वाले समय में भाजपा-जजपा सरकार को बचाने के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पड़ेगी। परिस्थितियां इशारा कर रही हैं कि आने वाले समय में इस प्रकार सरकार चलाना संभव नहीं हो पाएगा। पता नहीं कब, कौन, कहां से इनके लिए परेशानियां खड़ी कर दे और कब, कौन, कहां से का तात्पर्य भाजपा-जजपा के कार्यकर्ताओं से ही है, क्योंकि राजनीति में सदा से यह माना जाता है कि जब भी कोई सरकार गिरती है तो अपने बोझ से ही गिरती है और जजपा-भाजपा इस समय अपने ही लोगों को संभाल नहीं पा रहे हैं। आज का दिन इम्तिहान का होगा, उसके बाद सब स्थितियां स्पष्ट होती नजर आएंगी।