उमेश जोशी

हरियाणा में बीजेपी की गठबंधन सरकार अपनी सारी नाक़ामियाँ सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के खाते में डाल कर अपना दामन दाग से बचा रही है; खुद को महफूज़ कर रही है। किसान आंदोलन के लिए पूरी तरह काँग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, मानो किसानों को कोई अक्ल ही नहीं है और काँग्रेस जैसा कहेगी वैसा ही मान जाएंगे। 

अपनी नाकामियों का ठीकरा विपक्ष के सिर फोड़ना सत्ताधारी दल के लिए बहुत आसान होता है। अपनी खामियाँ  सत्तारूढ़ दल के छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी नहीं दिखती हैं, फिर भला मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, मंत्रियों और संगठन के पदाधिकारियों को कैसे दिखाई देंगी। कोई भी पार्टी सत्ता में हो वो अपने विरोधियों की आड़ में ही अपने धतकरम छुपाती है। यही लोकतंत्र की कार्यशैली है।  

प्रदेश के गृहमंत्री अनिल विज ने एक ही रट लगा रखी है कि किसानों को काँगेस बहका रही है। विज साहब! आपके नेता गूंगे हैं क्या? क्या वे किसानों को उनके फायदे की बातें नहीं समझा सकते?  ऐसे कितने ही मुद्दे हैं जिनके बारे में पार्टी ने ढोल नगाड़े बजा कर जनता को जानकारी दी है। अब तीन कृषि अध्यादेशों (अब विधेयक बन कर पास हो गए) के बारे में किसान को क्यों नहीं समझाया गया। क्यों ढोल नगाड़े नहीं बजाए गए? इसलिए कि इन कानूनों में ढोल नगाड़े बजा कर बताने जैसा कुछ है ही नहीं। थोड़ा-सा भी कुछ होता तो पार्टी इस मौके को कभी हाथ से नहीं जाने देती। किसान इतना नादान और नासमझ नहीं है कि उसे कोई समझाए और वो अपने हित की बात ना समझें। किसान काँगेस के झाँसे में आकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारेगा। 

गृहमंत्री जी! कांगेस अपना विपक्ष का धर्म निभा रही है। बीजेपी भी कभी विपक्ष में भी थी।  विपक्षी दल होने के नाते बीजेपी ने भी जनहित के मुद्दों पर आवाज़ उठाई होगी। तब बीजेपी पर भी शायद यही आरोप लगे हों जो आज काँग्रेस पर लग रहे हैं। बीजेपी ने विपक्षी दल के नाते ना सुंदर कांड और हनुमान चालीसा का पाठ किया होगा और ना ही भागवत कथा की होगी। जनहित के मुद्दों पर आंदोलन ही किया होगा। वही काम  काँग्रेस कर रही है इसलिए उसे विपक्ष का धर्म निभाने दीजिए और काँगेस पर दोषारोपण कर अपनी नाकामी मत ढँकिए।  

 बीजेपी के नए अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ खुद किसान परिवार से हैं। कृषि मंत्री रह चुके हैं। वो किसानों को क्यों नहीं समझाते कि सारे कानून आप सभी के हित में हैं। किसान आपकी नहीं सुन रहे हैं तो मान लीजिए कि बीजेपी अपना जनाधार खो चुकी है।