भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

समय की विडंबना देखिए कि जिस महामारी से सारा विश्व ग्रस्त है, उस महामारी से अधिक महत्वपूर्ण विषय हरियाणा के लिए किसानों के तीन अध्यादेश हो गए हैं। पीपली में हुए किसानों पर लाठी कांड के बाद उसी दिन भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही थी लेकिन हमने लिखा था भाजपा की ऐसी फितरत नहीं है। जबसे सत्ता संभाली है, ऐसा पहली बार देख रहे हैं और अगले ही दिन से भाजपा बचाव से बराबरी पर आई और अब पूर्णत: अटैक पर खड़ी दिखाई दे रही है।
अनेक किसाना नेताओं और राजनैतिकों से बात करके जो हमारी समझ में आया है, वह यह है कि यह अध्यादेश केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए हैं। या यूं कहिए कि मोदी द्वारा बनाए गए हैं और मोदी द्वारा किए गए किसी कार्य को हरियाणा भाजपा गलत कह सके, यह तो संभव ही नहीं है। और वही कुछ अब दिखाई दे रहा है।

आनन-फानन में कमेटी बनाई गई, तीन सांसद रखे और उन सांसदों ने इतनी शीघ्र सारा अध्ययन भी कर लिया और रिपोर्ट प्रदेश अध्यक्ष धनखड़ को सौंप दी तथा धनखड़ ने वह रिपोर्ट केंद्रीय कृषि मंत्री तौमर को भी सौंप दी। अब रिपोर्ट क्या है, यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है लेकिन यह माना जा सकता है कि रिपोर्ट में अध्यादेशों के समर्थन की ही बात की गई होगी।

ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि आज भाजपा पूरी आक्रमकता के साथ मैदान में थी। उसके सभी नेता चाहे वह विधायक हों, मंत्री हों, संगठन के हों, खुलकर अध्यादेशों की तारीफ कर रहे थे और दूसरी ओर अनेक जिलों में किसानों ने भी ज्ञापन दिए हैं कि हम इन अध्यादेशों के समर्थन में हैं। कई जगह तो ट्रैक्टरों की रैली भी निकाली गई। यह दूसरी बात है कि जब उन किसानों से यह पूछा गया कि अध्यादेश में कौन-सी बात किसान के पक्ष की है तो वह कुछ बताने के लायक भी नहीं थे और इसमें कुछ गलत भी नहीं है। विरोध करने वाले या समर्थन करने वाले अधिकांश किसानों को अध्यादेशों से पडऩे वाले असर के बारे में जानकारी नहीं है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि किसान भी दो हिस्सों में बंट गए, एक भाजपा समर्थक और दूसरे भाजपा विरोधी।

इन बातों का प्रमाण आज हरियाणा भवन में भी देखने को मिला। किसान नेताओं से प्रदेश अध्यक्ष, कृषि मंत्री और समिति के सदस्यों से मिलने की बात थी लेकिन वहां भी किसानों में एकता नहीं दिखी। किसान नेता चढूणी ने समिति से मिलने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि अध्यादेश रद्द होने के बाद ही मुलाकात होगी। सुनने में ऐसा भी आया है कि वहां किसान नेताओं में विवाद इतना बढ़ा कि हाथापाई की नौबत आने लगी थी।

यह तो हुई भाजपा की बात। अब विपक्ष की ओर देखें तो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कह चुके हैं कि दस दिन में यदि किसानों के मुकदमे वापिस नहीं लिए गए तो बहुत बड़ा आंदोलन होगा। इसी प्रकार इनेलो ने 14 जिलों में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन की बात कही है। निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू तो इन सभी से आगे निकल गए और उन्होंने बताया कि अध्यादेश बनाने वाली समिति में मुख्यमंत्री मनोहर लाल शामिल थे। वह इसका विरोध कैसे करेंगे? इन्हें प्रदेश की जनता को इसका जवाब देना पड़ेगा। साथ ही उन्होंने मनोहर लाल को खुली बहस की चुनौती भी दे डाली।

उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए लगता है कि एक ओर भाजपा होगी तो एक ओर अन्य विपक्षी दल तथा आने वाले समय में यह विषय और उग्र रूप लेकर सामने आ सकता है। कारण स्पष्ट है कि हमारे प्रदेश में किसानों की संख्या 80 प्रतिशत नहीं तो 70 प्रतिशत तो होगी ही और जिस विषय पर प्रदेश के 70 प्रतिशत व्यक्ति शामिल हों तो अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रदेश में इससे अधिक चर्चा और किसी विषय की होना संभव नहीं।

दुखद बात देखिए कि जहां प्रदेश जातीय समीकरणों में फंसा रहता है, कहीं जाट-नॉन जाट के नारे लगते हैं तो कहीं पंजाबी-नॉन पंजाबी के, दलित-स्वर्ण के किस्से भी आम हैं लेकिन ऐसा कभी नहीं सुना गया कि व्यापारी-व्यापारी में अलगाव हो, उद्योगपति-उद्योगपतियों में अलगाव हो लेकिन यहां किसान भी अलग-अलग बंटते नजर आ रहे हैं और वह भी इस बात पर नहीं कि यह फल उगाने वाला किसान है और वह फसल या यह सब्जी उगाने वाला किसान है और वह दवाई। अलगाव इस बात पर है कि यह भाजपा समर्थित है या भाजपा विरोधी। अगर यह मामला यूं ही बढ़ता रहा तो स्थिति बहुत विकराल होने की संभावना है।

यदि भाजपा का पुराना इतिहास देखा जाए तो यह शीघ्रता से किसी आंदोलन को समाप्त कर नहीं पाते हैं, जिसके प्रमाण में जाट आंदोलन, रामपाल, राम रहीम आदि आंदोलनों को देखा जा सकता है और यह तो उन सभी से बड़ा है। किसान यानी 70 प्रतिशत से अधिक आबादी की आजीविका से जुड़ा है। ऐसे में यह देखना बहुत कोतुहल का रहेगा कि कि तने किसान भाजपा के साथ जाते हैं और कितने समय तक वे साथ रह पाते हैं। कुछ ऐसे नेताओं से भी बात हुई, जिनको चढूणी ने समिति से अलग होने का रास्ता दिखाया भाजपा का समर्थन करने के लिए तो उन नेताओं से भी बात हुई तो उनका कहना भी था कि हम भाजपा से जुड़े हैं वरना अध्यादेश किसान के हित में नहीं है।

हमें वास्तव में स्थिति यह नजर आ रही है कि मोदी जी के बनाए हुए अध्यादेश हैं। अत: हरियाणा की भाजपा सरकार डटकर इसके समर्थन में खड़ी रहेगी। जैसा कि उन्होंने आज दर्शा दिया है कि अपनी सारी शक्तियां (नेता, कार्यकर्ता, आइटी सेल) इस अध्यादेश को किसान हित में बनाने में लगा दी हैं। इधर दूसरी ओर विपक्षी दल भी कमर कसकर इसके विरोध में खड़े हैं तथा उन्हें यही दिखाई देता है कि जो इस समय अधिक किसान के साथ खड़ा दिखाई देगा, आने वाले समय में भाजपा से निकलता हुआ जनाधार अपनी ओर कर लेगा। आने वाले समय में क्या कुछ हो सकता है, अनुमान लगाना मुश्किल है लेकिन यह हम कह सकते हैं कि परिस्थितियां यह कह रही हैं कि जो कुछ होगा, हरियाणा के हित में तो नहीं होगा।