उमेश जोशी हरियाणा के व्यापारी नादान तो नहीं हो सकते, फिर भी उन्होंने एक बचकाना बयान जारी कर दिया। क्यों जारी किया यह तो वही जानें। हरियाणा व्यापार मंडल के पदाधिकारी इस भ्रम में हैं कि व्यापारी एकता के कारण सरकार पर भारी दबाव बना और उसी दबाव के कारण सरकार ने सोमवार और मंगलवार को बाजार बंद करने के आदेश वापस ले लिए। इससे भी अधिक हास्यास्पद बात यह है कि उनहोंने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, गृहमंत्री अनिल विज, पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर और मुख्यमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार राजीव जैन को आदेश वापस करवाने जैसे कठिन काम में मदद करने के लिए बधाई भी दी है। व्यापारियों की बेवजह तारीफ करने के कला से कोई भी अभिभूत हो जाएगा। रोजमर्रा के जीवन में बेवजह तारीफ की पींग चढ़ाने को क्या कहा जाता है, विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है। गृहमंत्री अनिल विज का बयान कल पूरे दिन वेबसाइट्स और सोशल मीडिया पर चल रहा था कि 28 अगस्त को केंद्र सरकार की ओर से जारी लॉकडाउन-4 के दिशानिर्देशों के मद्देनजर सोमवार और मंगलवार को बाजार बंद करने के आदेश वापस लिए जाते हैं। लॉकडाउन-4 के दिशानिर्देशों के मुताबिक कोई भी राज्य सरकार 1 सितंबर के बाद किसी भी तरह का लॉकडाउन लागू नहीं कर सकती। यदि लॉकडाउन लागू करना है तो केंद्र सरकार से पहले इजाजत लेनी होगी। इन हालात में हरियाणा सरकार को सोमवार और मंगलवार को बाजार बंद करने के आदेश वापस लेने पड़े। कोई बताए कि आदेश वापस लेने में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, गृहमंत्री अनिल विज, पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर और मुख्यमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार राजीव जैन क्या भूमिका है। व्यापारियों ने इस मिद्दे की आड़ में इनका कद ऊंचा करने की कोशिश की है। पोस्टर की भाषा से यह अर्थ निकलता है कि इस बार जिस तरह मदद (आदेश वापस करवाने में) की है उसी तरह भविष्य में भी करते रहेंगे। इस पोस्टर में उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला नहीं दिखाई दिए। वही उपमुख्यमंत्री हें जिन्होंने चार दिन पहले 26 अगस्त को मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में एक दिन के मॉनसून सत्र का मंचालन किया था। पोस्टर में दुष्यंत चौटाला की गैर मौजूदगी से दो बातें साबित होती हैं। एक, व्यापारी यह मानते हैं कि दुष्यंत चौटाला उनके आंदोलन में उनके साथ नहीं खड़े थे। दो, अनिल विज के साथ दुष्यंत चौटाला को रखना उचित नहीं समझा होगा। Post navigation सोमवार-मंगलवार को भी खुले रहेंगे बाजार, आदेश वापस सरकार के कर्ताधर्ताओं को ही अपने सरकारी अस्पतालों पर विश्वास नही