सबसे बड़ा सवाल ये है कि भारत कि सबसे बड़ी पुलिस अकादमी में उसी के आईपीएस  अधिकारी की संदिग्ध मृत्यु का खुलासा क्यों नहीं हुआ. मामले की जांच को छह साल बाद भी वही का वही क्यों दफनाया गया है. उनकी मृत्यु को अभी तक उजागर क्यों नहीं किया गया.

 डॉo सत्यवान सौरभ, रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,दिल्ली यूनिवर्सिटी, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

28 अगस्त 2014 को भारतीय पुलिस सेवा के युवा और प्रतिभाशाली आईपीएस अधिकारी मनुमुक्त मानव  की 31साल नौ मास की अल्पायु में नेशनल पुलिस अकादमी हैदराबाद तेलंगाना में स्विमिंग पूल में डूबने से संदिग्ध मृत्यु हो गई थी. स्विमिंग पूल के पास ही स्थित ऑफिसर्स क्लब में चल रही एक विदाई पार्टी के बाद आधी रात को जब मनमुक्त का शव स्विमिंग पूल में मिला तो अकादमी ही नहीं पूरे देश में हड़कंप मच गया था  क्योंकि यह भारत की सर्वोच्च पुलिस अकादमी में 66 साल के इतिहास में घटित  होने वाली सबसे बड़ी घटना थी.

उल्लेखनीय है कि मनुमुक्त  मानव 2012 बैच और हिमाचल कैडर के परम मेधावी और ऊर्जावान युवा पुलिस अधिकारी थे. 23 नवम्बर 1983 को हिसार में जन्मे तथा पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से उच्च शिक्षा प्राप्त मनुमुक्त एनसीसी के सी सर्टिफिकेट सहित तमात उपलब्धिया प्राप्त सिंघम अधिकारी थे. वह बहुत अच्छे चिंतक होने के साथ-साथ बहुमुखी कलाकार और सधे हुए फोटग्राफर थे, सेल्फी के तो वो मास्टर थे, तभी तो उनके सभी दोस्त उनके मुरीद थे. समाज सेवा के लिए वो बड़ी सोच रखते थे. वह छोटी से उम्र में अपने दादा-दादी कि स्मृति में अपने गाँव तिगरा (नारनौल) हरियाणा में एक स्वास्थ्य केंद्र और नारनौल में सिविल सर्विस अकादमी स्थापित करना चाहते थे. समाज के लिए उनके और भी बहुत सारे सुनहरे सपने थे, जिनको वो पूरा करने के बेहद करीब थे, मगर उनकी असामयिक मृत्यु ने उन सब सपनों को ध्वस्त कर दिया.

इकलौते जवान आईपीएस बेटे कि मृत्यु मनुमुक्त के पिता देश के प्रमुख साहित्यकार और शिक्षाविद डॉ रामनिवास मानव और माँ अर्थशास्त्र की पूर्व प्राध्यापिका डॉ कांता के लिए किसी भयंकर वज्रपात से कम नहीं थी. ऐसे दिनों में कोई भी दम्पति टूटकर बिखर जाता मगर मानव दम्पति ने अद्भुत धैर्य का परिचय देते हुए न केवल असहनीय पीड़ा को झेला, बल्कि अपने बेटे मनुमुक्त की स्मृतियों को  सहेजने, सजाने और सजीव बनाए रखने के लिए भरसक प्रयास भी शुरू कर दिए. उन्होंने अपने जीवन की संपूर्ण जमापूंजी लगाकर मनुमुक्त मानव मेमोरियल ट्रस्ट का गठन किया और नारनौल हरियाणा में मनुमुक्त मानव भवन का निर्माण कर उसमे लघु सभागार,संग्रहालय और पुस्तकालय की स्थापना की.

ट्रस्ट द्वारा मनुमक्त मानव की स्मृति में हर साल अढ़ाई लाख का एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, एक लाख का राष्ट्रीय पुरस्कार, इक्कीस-इक्कीस हज़ार के दो और ग्यारह-ग्यारह हज़ार के तीन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किये जा रहें है.  मनुमुक्त भवन में साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम भी नियमित रूप से चलते रहते है, जिनमे अब तक एक दर्जन से अधिक देशों की लगभग तीन सौ से अधिक विभूतिया सहभागिता कर चुकी है. मात्र अढ़ाई वर्ष की अल्पावधि में ही अपनी उपलब्धियों के साथ नारनौल का मनुमुक्त भवन अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित हो रहा है.

मगर अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि भारत कि सबसे बड़ी पुलिस अकादमी में उसी के आईपीएस  अधिकारी की संदिग्ध मृत्यु का खुलासा क्यों नहीं हुआ. मामले की जांच को छह साल बाद भी वही का वही क्यों दफनाया गया है. उनकी मृत्यु को अभी तक उजागर क्यों नहीं किया गया. मनुमुक्त का परिवार इस आस में दिन काट रहा कि एक दिन उनको न्याय मिलेगा. न्याय मिलना भी चाहिए. ये मामला मनुमुक्त के परिवार और मात्र भारत की नया व्यवस्था से नहीं जुड़ा. भारतीय पुलिस के आईपीएस अधिकारी का इस तरह मृत्यु का ग्रास बनाना विश्व भर की पुलिस के लिए प्रश्न चिन्ह है. भारत के गृह मंत्रालय को इस मामले की जांच सीबीआई से करवाकर सच सामने लाना चाहिए ताकि मनुमुक्त को न्याय मिल सके और आने वाले युवा पुलिस अधिकारी बिना किसी भय के सीना तानकर देश सेवा कर सके.

आईपीएस मनुमुक्त मानव युवा शक्ति के प्रतिक ही नहीं, प्रेरणा स्त्रोत भी थे. उनकी मृत्यु के छ वर्ष बाद भी उनकी यादें वैसी की वैसी है, हर वर्ष इनको बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है. उनके परिवार ने मनुमुक्त भवन की गतिविधयों को मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी प्रेरक स्मृतियों को जीवंत रखा हुआ है. इस कार्य में उनकी बड़ी बहन और विश्व बैंक वाशिंगटन की अर्थशास्त्री डॉ एस अनुकृति भरसक प्रयास करती रहती है.

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