कुमारी सैलजा 11 महीनों में नहीं खड़ा कर पाई है पार्टी का संगठन, भाजपा मजबूत संगठन के साथ देगी बरोदा में कांग्रेस को टक्कर

ईश्वर धामु

चंडीगढ़।  डाक्टर अशोक तंवर द्वारा कांग्रेस के प्रदेश प्रधान पद छोडऩे के बाद चली लम्बी प्रक्रिया के बाद आखिरकार सितम्बर 2019 में आलाकमान ने कुमारी सैलजा को यह पदभार सौंपा। अब अब 11 महीने हो चुके हैं कुमारी सैलजा को प्रदेश प्रधान बने पर कांग्रेस के संगठन की हालात में कोई बदलाव नहीं आया है। अभी तक पार्टी के पदाधिकारी तक नहीं बनाए गए हैं। अब तो पार्टी के कार्यकर्ता भी भूल गए हैं कि पार्टी में खंड, जिला और प्रदेश स्तर पर पदाधिकारी भी होते थे? पार्टी का संगठन खड़ा करने का प्रदेश प्रधान कुमारी सैलजा पर कोई दबाव नहीं है। प्रदेश प्रधान का पदभार सम्भालने के बाद चंडीगढ़ में हुई पहली बैठक में कुमारी सैलजा ने बहुत जल्द पदाधिकारियों की नियुक्ति का वायदा किया था। परन्तु दस महीने बीत जाने के बाद पार्टी में प्रदेश प्रवक्ताओं की एक फौज खड़ी कर दी। पदो की लालसा छोड़ चुके कार्यकर्ताओं को भी उम्मीद जग गई कि अब पदाधिकारियों की नियुक्तियां की जायेंगी। परन्तु पार्टी में चल रही गतिविधियों से कहीं भी यह नहीं लग रहा कि कांग्रेस में पदाधिकारी भी बनाए जायेंगे।

जबकि बरोदा उप चुनाव पार्टी के सामने हैं। साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का संगठन ने होने के कारण हालात ऐसे थे कि कांग्रेस पदाधिकारियों का चुनाव बूथ पर प्रत्याशी का थेला लेकर बैठने वाला कोई नहीं था। इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। अगर पार्टी के पास अपना संगठन होता तो निश्चित रूप से कांग्रेस को अधिक सीटें मिलती। अब भी यही दिखाई दे रहा है कि उप चुनाव में पार्टी प्रत्याशी को पदाधिकारियों की कमी अवश्य अखरेगी। प्रत्याशी को अपने स्तर पर अपने नीजि कार्यकर्ताओं के बल पर चुनाव प्रबंधन करना होगा।

चर्चाकारों का कहना है कि पार्टी में कुलदीप बिश्रोई जैसे वरिष्ठ नेताओं के जो विरोधी स्वर उभरने लगे हैं, उसके पीछे भी संगठन का न होना बड़ा कारण है। पार्टी में संगठन न होने से बिखराव की स्थिति आ ही जाती है। जबकि दूसरी ओर भाजपा इस बार ओर अधिक ताकत से कांग्रेस को चुनौती देगी। भाजपा के संगठन का काम, बताया जा रहा है कि 16 अगस्त तक पूरा कर लिया जायेगा। भाजपा अपने जिला प्रधानों का ऐलान तो कभी भी कर सकती है। पार्टी को ओम प्रकाश धनखड़ के संगठन चलाने के अनुभव का सीधा लाभ मिलेगा। पर कांग्रेस की प्रदेश प्रधान के पास न तो संगठन का अनुभव है और न प्रदेश में उनका बड़ा-सा प्रभाव है। कारण कि कुमारी सैलजा ने दिल्ली की राजनीति की है। इस कारण उनके पास अपना कैडर नहीं है। यह भी एक कारण है कि कांग्रेस का संगठन को आगे नहीं बढ़ाया जा रह है।

अब भाजपा अपने संगठन को मजबूत करके चुनावी मैदान में उतरेगी तो निसंदेह कांग्रेस का कड़ी टक्कर देगी। ऐसे में बरोदा उप चुनाव में कांग्रेस को सम्भालने की जिम्मेदारी सीधे रूप से पूर्व मुख्यमंत्री भपेन्द्र सिंह हुड्डा पर आ जाती है। बरोदा के इनेलो का गढ़ तोडऩे का श्रेय हुड्डा को ही जाता है। इन्ही के कारण से कांग्रेस ने बरोदा में हैट्रिक लगाई। अब फिर उप चुनाव भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के लिए एक नई चुनौती लेकर आया है।

error: Content is protected !!