डीपी वर्मा चंडीगढ़ l जब चुनाव होते हैं तो अमूमन मुद्दे ही काम आते हैं lराजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए माहौल बनाती हैं और माहौल बनाना ही राजनीति कहा जाता है l लेकिन कई बार अचानक बड़े मुद्दे हाथ लग जाते हैं जो हार जीत का मुख्य कारण बन जाते हैं l उच्चतम न्यायालय में में लंबे समय तक चले परंतु बाद में हल कर लिए गए कई मसले राजनेताओं के खूब काम आए हैं l इनमें राम मंदिर निर्माण एक अहम मुद्दा रहा है l यह मुद्दा पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण रहा है l परंतु हरियाणा के लिए एसवाईएल का मामला शायद उससे भी बड़ा मुद्दा माना जाता है l क्योंकि एसवाईएल का पानी हरियाणा के किसान और जन सामान्य के लिए जीवन रेखा कहीं जाती है lसतलुज यमुना लिंक नहर का विवाद दशकों से लंबित है जो माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद सुलझाया नहीं जा सका है l सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हरियाणा के पक्ष में फैसला देने का काम पहले ही कर दिया था l हरियाणा पंजाब क्षेत्र में बनने वाली नहर के लिए अधिग्रहित पूरी जमीन का मुआवजा पहले ही अदा कर चुका है परंतु उसे उसके हिस्से का पानी नहीं मिला है lअब स्थिति यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से दोनों प्रदेशों की सरकारों को आपसी सहमति बनाने और केंद्र से हस्तक्षेप करने का एक फार्मूला प्रस्तुत किया है और इसी महीने के तीसरे सप्ताह तक अति उच्च स्तरीय बैठक करने का जो निर्देश जारी किया है वह बहुत महत्व पूर्ण माना जा रहा है l हो सकता है इस समय सीमा के बाद सुप्रीम कोर्ट कोई और बड़ा फैसला सुना दे और चुनाव के समय यदि यह फैसला हरियाणा के पक्ष में आया तो इन परिस्थितियों का भारतीय जनता पार्टी को उपचुनाव में बहुत बड़ा लाभ मिल सकता है lकानून के विशेषज्ञ यह मानकर चल रहे हैं के बहुत तथ्य हरियाणा के पक्ष में हैं l उच्चतम न्यायालय दोनों प्रदेशों को बातचीत कर सकारात्मक सहमति बनाने का समय देता आ रहा है l उसमें महीने के तीसरे सप्ताह तक होने वाली अति उच्च स्तरीय बैठक के बाद उच्च न्यायालय में होने वाली अंतिम चरण की सुनवाई हरियाणा की जनता के लिए सुखद हो सकती है l पिछले वर्ष 9 जुलाई को सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिए थे कि हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्री कमेटियां बनाकर आपस में विचार विमर्श कर कोई समुचित हल निकालने का प्रयास करें l इस संदर्भ में 16 अगस्त फिर 21 अगस्त और उसके बाद 6 दिसंबर 2019 को दोनों प्रदेशों की कमेटियों की संयुक्त बैठक हुई l इनमें दोनों प्रदेशों के मुख्य सचिव दोनों प्रदेशों में सिंचाई विभाग के सचिव शामिल हुए और अध्यक्षता केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सचिव ने की परंतु तीनों बैठकों में कोई नतीजा नहीं निकल पाया lजहां हरियाणा ने एसवाईएल की खुदाई करने की मांग उठाई वहीं पंजाब की ओर से यह कहा गया कि हमारे पास देने को पानी ही नहीं है lइसी बीच 3 सितंबर 2019 को फिर सुनवाई हुई l यह बता दें कि इन बैठकों के बीच में पहले हरियाणा के मुख्य सचिव ने और बाद में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने जल संसाधन मंत्रालय भारत सरकार को एक पत्र लिखकर कह दिया था कि आपसी बैठकों का कोई हल नहीं निकल पा रहा है इसलिए इस मामले को मेरिट पर ही तय करने का प्रयास किया जाना चाहिए l अभी 28 जुलाई को उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की फिर सुनवाई की और इस मौके पर पंजाब तथा हरियाणा दोनों सरकारों को एक और अति उच्च स्तरीय बैठक करने का के लिए कहा गया lयह बैठक चालू महीने के तीसरे सप्ताह तक संपन्न हो जानी है l समझा जाता है कि इस बार दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्री ही बैठक में आपसी सहमति का कोई फॉर्मूला निकालने की कोशिश करें परंतु जानकार यही मानकर चल रहे हैं कि इस मामले में वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है l लेकिन इसके बाद यह संभव है कि उच्चतम न्यायालय कोई ऐतिहासिक फैसला सुना दे l संयोग से हरियाणा में सोनीपत जिले में बरोदा उपचुनाव भी सिर पर है और फैसले की संभावनाएं भी नजदीक है l यदि फैसला पहले की तरह हरियाणा के हक में आया तो निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी को इसका लाभ मिलेगा l हरियाणा का यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर कई दशकों से राजनीति होती रही है l 1987 में तो चौधरी देवी लाल एसवाईएल के मुद्दे पर संघर्ष और आंदोलन कर इस तरह से मुख्यमंत्री बने थे कि देश की जनता ने हरियाणा में 90 में से 85 सीटें जीतने का ऐतिहासिक दौर देखा था l यदि बरोदा उप चुनाव के समय हरियाणा के लिए कोई सुखद संदेश आया तो आप यह मान कर चल सकते हैं जाटों के सबसे बड़े इस राजनीतिक गढ़ में भाजपा के लिए पहली विजय का परचम लहराना आसान हो जायेगा l Post navigation हरियाणा में बरोदा उपचुनाव बीजेपी- 2 की पहली परीक्षा शराब घोटाले में संलिप्त लोगों को पकड़ने की बजाय बचाने में जुटी सरकार – दीपेंद्र हुड्डा