Haryana Chief Minister Mr. Manohar Lal addressing Digital Press Conference regarding preparedness to tackle Covid-19 in the State at Chandigarh on March 23, 2020.

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

रजिस्ट्री घोटाला आज हरियाणा में चर्चा का विशेष विषय बना हुआ है। गत 22 जुलाई को हरियाणा में रजिस्ट्रियों पर रोक लगाई गई और 31 जुलाई को गुरुग्राम के सात तहसीलदार व उप तहसीलदारों को निलंबित किया गया तथा अभी औरों के निलंबन की संभावना है।
अधिकारियों के निलंबन के बाद ही यह चर्चा चल रही है कि अभी और बहुत नपेंगे। इधर मुख्यमंत्री ने भी सभी जिले के जिलाधीशों को इसकी जांच करने के आदेश दिए हैं। यदि घोटाला है ही नहीं तो जांच किस बात की और तहसीलदार तो वैसे ही जिलाधीश के आधीन आते हैं और जिलाधीश उन पर सदा ही नजर रखता है तो इस जांच का क्या अर्थ समझा जाए?

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कोई भी अधिकारी कितना ही बड़ा क्यों न हो यदि इसमें उसकी संलिप्तता पाई जाएगी तो उसे बख्शा नहीं जाएगा। हरियाणा में मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार में जीरो टोलरेंस का वादा करते हैं। मुख्यमंत्री ने यह नहीं बताया कि यदि अधिकारियों के साथ सत्ता के नेताओं की इसमें संलिप्तता पाई गई तो उन नेताओं के साथ क्या किया जाएगा, क्योंकि हरियाणा के सभी जागरूक व्यति यह मानकर चलते हैं कि जब तक किसी अधिकारी के ऊपर राजनैतिक संरक्षण न हो, तब तक वह कोई घोटाला कर नहीं पाता। अर्थात राजनैतिक आशीर्वाद से ही घोटाले पनपते हैं। यदि इसमें भी ऐसा ही मिला तो क्या उन नेताओं को भी सजा मिलेगी, एफआइआर दर्ज होंगी?

मुख्यमंत्री का कहना है कि यह सिस्टम की कमी है तो मुख्यमंत्री जी 2014 से सिस्टम बनाने के सारे अधिकार और जिम्मेदारी तो आपकी ही है, तो आपकी कार्यशैली में कमी कैसे रह गई यह विचारनीय विषय है, क्योंकि मुख्यमंत्री को तो पारंगत माना जाता है जनहित के कार्य करने के लिए। फिर जनता से जुड़े इस मसले में आपकी कमी कहां रही। और यदि आपके अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा यह कमी की गई या इस कमी के बारे में इतने समय से आपको सूचित नहीं किया गया तो क्या उनसे भी इसके उत्तर मांगे जाएंगे?

चलिए, माना यह सिस्टम की कमी है या अधिकारियों ने घोटाले किए हैं अर्थात यदि घोटाले हुए हैं तो भी और नहीं हुए हैं तो भी सिस्टम की कमी है तो भी और सिस्टम की कमी नहीं है तो भी रजिस्ट्रियां बंद करने का औचित्य क्या? यह जो आम जनता अपनी आवश्यकता अनुसार या मजबूरी में अपने मकान या भूमि खरीदना-बेचना चाहते हैं तो उन पर पाबंदी क्यों? और वर्तमान में तो कोरोना काल चल रहा है, इसमें आर्थिक रूप से अधिकांश लोग परेशान हैं तो यह बंदिश तो बहुत अखरती है। जहां तक मेरी जानकारी है, अपनी जमीन खरीदना-बेचना मौलिक अधिकारों में आता है और मौलिक अधिकारों का हनन विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है। अब ऐसी कौन-सी आपातकालीन स्थितियां खड़ी हो गईं जो सरकार नागरिकों के मौलिक अधिकार पर भी रोक लगानी पड़ी?

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