ए.आई.के.एस.सी.सी के फेसबुक लाइव कार्यक्रम को 55 हजार किसानों ने देखा – किसानों  का यह ऐलान ,लेकर रहेंगे पूरा दाम.
दूध उत्पादक किसानों को सब्सिडी देने तथा गन्ने की एफआरपी बढ़ाने को लेकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन की चेतावनी.
एमएसपी को खत्म करने की केंद्र सरकार की साजिश को कभी सफल नहीं होने देंगे

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का दूसरे दिन का ऑनलाइन फेसबुक कार्यक्रम ‘किसानों का यह ऐलान,लेकर रहेंगे पूरा दाम” विषय पर आयोजित किया गया जिसे अब तक विभिन्न फेस बुक पेजों पर 55 हज़ार किसानो और समर्थकों द्वारा देखा गया 275 ने शेयर किया।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए  महाराष्ट्र के स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के अध्यक्ष पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने कहा कि उन्होंने किसानों  और विशेषज्ञों के साथ मिलकर  तैयार किया गया  कृषि उपज लाभकारी विधेयक लोकसभा में पेश किया था  जोकि लोकसभा में पास नहीं हो सका । उन्होंने कहा कि किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए स्वामीनाथन आयोग  की सिफारिशों को लागू कराना होगा।उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के पहले दूध का रेट 35रू लीटर था ,जो घटकर 17 रूपये लीटर हो गया है जो बोतलबंद  एक लीटर पानी के दाम  से भी कम है।  उन्होंने कहा कि एक लीटर दूध की लागत 30 रू  आती है। यानी किसान  13 रू प्रति लीटर  घाटा सहन कर रहा है। उन्होंने कहा कि यदि 5 अगस्त तक राज्य सरकार द्वारा 5 रू प्रति लीटर की सब्सिडी नहीं दी गई तथा केंद्र सरकार ने दूध पाउडर के आयात तथा दुग्ध पदार्थों पर जीएसटी समाप्त नहीं किया तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा। उन्होंने देश के दुग्ध उत्पादक किसानों से इस आंदोलन में शामिल होने की अपील की।

गन्ना किसानों को गन्ने के रेट में गत 2 वर्षों से कोई  एफआरपी नहीं बढ़ाने पर आपत्ति दर्ज करते हुए उन्होंने कहा कि उर्वरक और डीजल का दाम लगातार बढ़ रहा है ऐसी स्थिति में किसानों को भुगतान टुकड़ों  (किस्तों)में देने की तथा ब्याज प्रतिशत कम करने की साजिश की जा रही है जिसे एआई केएससीसी कभी बर्दाश्त नहीं करेगा।

हरियाणा से प्रेम सिंह गहलावत ने कहा कि हरियाणा में 10 किसान संगठनों ने  23 जुलाई को  मीटिंग कर तय किया है कि हम अपनी फसल का पूरा दाम लेकर रहेंगे  ।एमएसपी लागू करवाएंगे।  उन्होंने कहा कि  अंतरराष्ट्रीय  वित्तीय संस्थाओं पर अमेरिका का प्रभाव है  तथा अमेरिका की कंपनियां दुनिया भर  की जमीन को कब्जाना  चाहती है  उन्होंने कहा कि हम देश में कार्पोरेट को खेती नहीं करने देंगे। खेती भारत का किसान ही करेगा ।जब कंपनियों के माल का रेट कंपनियां तय करती है तो किसानों के उत्पाद का रेट किसान खुद क्यों तय नहीं कर सकता?

पश्चिम बंगाल के एआईकेएससीसी इकाई के संयोजक कार्तिक पाल ने कहा कि कुछ सुनिश्चित  फल सब्जियों को ही नहीं किसानों की सम्पूर्ण उपज  और सब्जियों की भी एमएसपी पर खरीद की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि कहा कि  कॉन्ट्रैक्ट खेती  संबंधित कानून   देश में लागू हुआ तो किसानों के पास जमीन नहीं बचेगी, कार्पोरेट के हाथ में जमीन होगी जिससे  वे कृषि उत्पादों को विदेशों में निर्यात करेंगे ।अब हमें न्यूनतम नहीं, अधिकतम मूल्य की लड़ाई हेतू सड़कों पर उतरना चाहिए। उन्होंने कहा कि बंगाल में अंफान तूफान से किसानों का अत्यधिक नुकसान हुआ लेकिन केंद्र ने कोई मदद नहीं की।

उत्तराखंड से तेजिंदर सिंह विर्क ने कहा कि हम जब तक एकजुट होकर एमएसपी की मांग नहीं करेंगे तब तक सरकार नहीं देगी । कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है लेकिन सरकारें किसानों को उनका हक देने की बजाय किसानों की जमीन हथियाने के लिए नई नई योजनाएं बना रही है। उन्होंने कहा कि सरकारों ने किसानी को नष्ट किया है इसलिए कम जमीन वाले किसानों को शहर में नौकरी के लिए जाना पड़ा। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में किसानों को धान पर प्रति क्विंटल 500 रू का नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि हम एमएसपी को खत्म करने की साजिश को कभी सफल नहीं होने देंगे।

मध्य प्रदेश से अखिल भारतीय किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष  जसविंदर सिंह ने कहा कि जब किसानों की अप्रैल महीने में अपनी उपज बेचने की बारी आई तब उस समय सरकार गिरा दी गई और लॉकडाउन लगने से एक महीने तक एक ही व्यक्ति ने सरकार चलाई । लॉकडाउन में किसानों को मंडीयो में जाने से रोका गया और व्यापारियों को कहा गया की किसानों का अनाज खरीदकर मंडीयो में बेंचे। तब व्यापरियों ने किसानों की भरपूर लूट की । उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में खाद की कालाबाजारी और नकली खाद बेचने का धंधा चल रहा है  ।  एनएसएसओ  के मुताबिक धान की एमएसपी 6.4% और अरहर की एमएसपी 1%किसानों को ही मिल पाई है। सरकारों ने घोषणा की थी कि एमएसपी के नीचे खरीदने वालों पर एफआईआर की जाएगी लेकिन घोषणा पर अमल नहीं हुआ । उन्होंने कहा कि हम किसानों को बचाना चाहते हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री अपनी सरकार को बचाने में व्यस्त है

मध्य प्रदेश से राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष राहुल राज ने कृषि अध्यादेशों का  उल्लेख करते हुए कहा कि वर्तमान परिवेश में मण्डियों के निजीकरण से किसान को घाटा हो रहा है मध्यप्रदेश का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इस वर्ष न तो मक्का की खरीदी सरकार द्वारा की गई न ही ग्रीष्मकालीन मूंग की दोनों फसले अपने समर्थन मूल्य से बेहद कम दामों में बिकना यह  दर्शाता है कि सरकारी खरीद ही समर्थन मूल्य पर खरीदी की सुनिश्चितता है ।यदि ये ना हो तो आज भी सरकारी मंडी में प्राइवेट व्यापारी समर्थन मूल्य से नीचे फसल खरीदता है।  सरकार कुछ नही कर पाती तो जब मंडी ही प्राइवेट होगी तो सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदी कैसे सुनिश्चित करेगी ?
उन्होंने नौजवान किसानों से आह्वान किया कि जात पात और पार्टियों के बंधन को तोड़ किसान हित में एक होकर आवाज़ बुलंद करें अन्यथा कृषि कॉर्पोरेट का एक व्यवसाय बन के रह जायेगा और किसान उनके नौकर होंगे।

कल एआईकेएससीसी के फेस बुक पेज पर 11 बजे से 1 बजे तक ” किसान विरोधी अध्यादेशों को वापस लो” ऑनलाइन कार्यक्रम  देखा जा सकेगा।

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