यहीं पर से ही निकले थे मुगलकालीन सिक्के.
अतीत में पटौदी रियासत का नूरगढ़ था मुख्यालय
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फतह सिंह उजाला

पटौदी । हाल ही में पटौदी इलाके के गांव शेरपुर-हुसैनका के बीच सड़क निर्माण के दौरान मिले मुगलकालीन सिक्कों के बाद एकाएक गांव नूरगढ़ का गढ़ रहस्य का गढ़ बन गया है । नूरगढ़ ही वह ग्रामीण इलाका है, जहां से शेरपुर-हुसैनका के बीच सड़क निर्माण के लिए खुदाई कर मिट्टी लाई जा रही थी और इसी मिट्टी में ही सैकड़ों वर्ष पुराना धातु का कोई बर्तन मिला । जिसे की ग्रामीणों ने तोड़ा और उसके अंदर से कथित रूप से सैकड़ों की संख्या में मुगल कालीन सिक्के भी मिले । लेकिन चर्चा के मुताबिक जितनी संख्या में सिक्के मिले थे , उससे कहीं कम संख्या में ही सिक्के प्रशासन के पास जमा हुए हैं।  

अब बात करते हैं सीधे-सीधे गांव नूरगढ़ में ही गढ़ नामक स्थान की । गांव के सरपंच राधेश्याम और नंबरदार बिल्लू के कहे अनुसार बुजुर्गों के बताए मुताबिक अतीत में नवाब पटौदी रियासत का गांव नूरगढ़ में ही एक प्रकार से मुख्यालय होता था । यहीं से ही तमाम प्रकार की गतिविधियां संचालित की जाती थी। गांव के बुजुर्गों की माने तो जिस स्थान पर मिट्टी की खुदाई की गई 2 दशक से अधिक समय पहले वह स्थान गांव के ही किसी ग्रामीण के द्वारा नवाब परिवार से खरीद लिया गया था।  अब कुछ दिन पहले ही इसी स्थान से ही मिट्टी की खुदाई करके सड़क निर्माण के लिए बेचे जाने की चर्चा भी है ।

नूरगढ़ गांव के ही सत्यनारायण शर्मा , मनोज कुमार , चंद्रगुप्त इत्यादि का कहना है कि नवाब मंसूर अली खान के इंतकाल के बाद सैफ अली खान को पटौदी बावनी की तरफ से जो पगड़ी बांधी गई, उनमें सबसे पहली पगड़ी गांव नूरगढ़ की तरफ से ही बांधी गई थी । इससे ही साबित होता है कि गांव नूरगढ़ और नवाब पटौदी परिवार का कितना अटूट और गहरा संबंध रहा है । इसी कड़ी में गांव के बुजुर्गों का कहना है कि अतीत में नूरगढ़ गांव के गढ़ कहे जाने वाले इस क्षेत्र में नवाब की सेना ठहरती थी , एक प्रकार से नवाबी रियासत का नूरगढ़ मुख्यालय ही होता था । यहां पर कभी चारों तरफ दीवार और बुर्ज भी बने हुए थे । लेकिन समय के साथ-साथ सब खंडहर हो गए । ग्रामीणों ने बताया कि मुगलकालीन शैली में भवन निर्माण में इस्तेमाल होने वाली पतली ईंटो से बने कुछ भवन भी गढ़ नामक स्थान पर मौजूद थे।  जिन्हें की बेकार समझ कर एक दो साल पहले ढहा दिया गया और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ढहाए गए ढांचे में भी ऐतिहासिक पुरातन समय के मिट्टी और धातु के बर्तन सहित अन्य वस्तुएं भी मौजूद रही हो।

अब जिस स्थान से मिट्टी की खुदाई की गई , वहां आज भी चारों तरफ बेहिसाब और अनगिनत मिट्टी के बर्तनों के अवशेष मिट्टी की खुदाई वाले स्थान पर साफ दिखाई दे रहे हैं। इनमें घड़े, मिट्टी के बर्तनों के अवशेष व अन्य प्रकार के ऐसे बर्तन के अवशेष हैं जो कि दैनिक जीवन में उपयोगी रहने के साथ-साथ इस्तेमाल किए जाते हैं । जब से मुगल कालीन सिक्के मिलने की बात साफ हो चुकी है, नूरगढ़ के ही सरपंच राधेश्याम, सत्यनारायण शर्मा , चंद्रगुप्त , मनोज कुमार , बिल्लू नंबरदार सहित अन्य ग्रामीणों का मानना है कि जिस स्थान से मिट्टी की खुदाई गई उस स्थान पर जमीन के नीचे सैकड़ों वर्ष पुराने ऐतिहासिक धातु ,कीमती धातु ,मिट्टी के बर्तन या अन्य प्रकार के सामान होने से इनकार नहीं किया जा सकता है । ग्रामीणों ने साफ-साफ तो नहीं कहा , लेकिन बातों-बातों में अपनी सहमति जरूर जाहिर कर दी की पुरातत्व विभाग को नूरगढ़ गांव के गढ़ नामक इस क्षेत्र का विशेष रूप से सर्वेक्षण और मुआयना करना चाहिए। यदि यहां पर किसी भी प्रकार के ऐतिहासिक अवशेष, मिट्टी के बर्तन , कीमती धातु, हथियार या अन्य सामान मिलता है तो इस स्थान को ऐतिहासिक पुरातत्व धरोहर के रूप में विकसित किया जाना चाहिए ।

वही नूरगढ़ गांव के गढ़ की खुदाई से जो सिक्के मिले हैं , उनके बारे में सूत्रों के मुताबिक वे सिक्के जबलपुर रियासत के हो सकते हैं । जबलपुर मध्यप्रदेश में ही हैं, मध्यप्रदेश में ही भोपाल है भोपाल और पटौदी के नवाब मनसूर अली खान के पिता इफ्तिखार अली खान परिवार का पारिवारिक गहरा संबंध रहा है । आज भी भोपाल में नवाब परिवार की अकूत संपत्ति बताई जाती है । वही सूत्रों के मुताबिक जो सिक्के मिले हैं , वह करीब करीब 400 वर्ष से अधिक पुराने हैं और आज के समय में इन सिक्कों की बाजार में प्रति सिक्का औसतन कीमत 15 सौ रूपए तक बताई जा रही है । अब यह तो पुरातत्व विभाग के द्वारा रहस्य से पर्दा उठ सकेगा कि वास्तव में जो सिक्के मिले हैं , वह मुगल काल मुगल कालीन समय के किस रियासत के हैं। कितने समय पुराने हैं और इनकी क्या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है । वही आज की स्थिति में इन इन मुगलकालीन बताए गए सिक्कों की क्या कीमत और अहमियत है । बहरहाल पटौदी इलाके के गांव नूरगढ़ का गढ़ रहस्य का गढ़ बन कर सामने आया है ।

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