वाटर हार्वेस्टिंग की साइट को लेकर उठने लगे सवाल.
वाटर हार्वेस्टिंग की उपयोगिता मानसून में साबित होगी

फतह सिंह उजाला
पटौदी ।
 पटौदी इलाके की एशिया में विख्यात रही हेलीमंडी अनाजमंडी क्षेत्र में इन दिनों बरसाती पानी निकासी के लिए वाटर हार्वेस्टिंग बनाया जा रहा है । यह वाटर हार्वेस्टिंग कसौटी पर कितना खरा साबित होगा? आने वाले समय और मानसून के दौरान होने वाली बरसात में इसका साफ साफ पता लग सकेगा। लेकिन फिलहाल वाटर हार्वेस्टिंग की साइट जहां यह बनाया जा रहा है, उसको लेकर स्थानीय दुकानदारों सहित आसपास के रहने वालों और अनाज मंडी क्षेत्र में खरीदारी के लिए आने जाने वालों के द्वारा अभी से सवाल उठाए जाने लगे हैं ।

इसका मुख्य कारण यह है कि जहां वाटर हार्वेस्टिंग बनाया जा रहा है वह स्थान जलभराव होने वाले स्थान से अधिक ऊंचाई पर स्थित है । ऐसे में स्वाभाविक है कि सवाल तो उठेंगे और इसका जवाब भी आने वाले समय में इस प्रोजेक्ट को मंजूर करने के साथ-साथ प्रोजेक्ट की साइट का चयन करने वालों को भी जवाब देना ही पड़ेगा । अपनी जवाबदेही से वह किसी कीमत पर भी बच नहीं सकेंगे । सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार एशिया की विख्यात रही हेलीमंडी अनाज मंडी में साडे 8 लाख रूपए  की लागत से वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का निर्माण किया गया है । इसे बनाने के पीछे एक ही मकसद रहा कि चैटाला सरकार के कार्यकाल के दौरान हेली मंडी में 50 लाख रुपए की लागत से बनाए गए सीसी प्लेटफार्म के बावजूद और दोनों तरफ बरसात के अलावा बाजार का पानी निकासी के लिए ड्रेनेज सही प्रकार से काम नहीं कर पा रहे हैं । 10-15 मिनट की बरसात होते ही अनाज मंडी परिसर में बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं। 1 से 2 फुट तक पानी भरने के बाद कई बार तो यह बरसाती पानी कई कई दिनों तक भरा रहता है। जिससे कि स्थानीय दुकानदारों के साथ-साथसबसे अधिक समस्या गर्मी के मौसम में जल जनित बीमारियों के फूटने को लेकर और सीवर और नालियों का पानी बरसाती पानी में मिलने से पहले वाली सड़क के कारण समस्या और गंभीर हो जाती है ।

बरसाती पानी ना भरे , इसकी निकासी सही तरीके से हो इसी बात को ध्यान में रखकर यहां स्थानीय प्रशासन के द्वारा वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का निर्माण किया गया । लेकिन जलभराव की आज भी जो स्थिति है वह ऐसी है कि जहां ढलान का क्षेत्र है वहां बरसाती पानी ठाठे मार रहा है ।  जिस स्थान पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया गया है वह स्थान जलभराव वाले स्थान के मुकाबले अधिक ऊंचा है । ऐसे में इस सवाल को कोई भी इंकार अथवा नजरअंदाज नहीं कर सकता कि जहां पानी का लेवल कम है वहां पानी वापस कैसे पहुंचेगा या फिर जहां जलभराव के साथ-साथ ढलान अधिक है वहां पानी यदि वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाता तो आसानी से जमीन में समायोजित हो सकता था। अब यह तो आने वाला समय ही तय करेगा कि आम जनता की खून पसीने की कमाई, टैक्स के दिए गए पैसे से बनाया गया वाटर हार्वेस्टिंग कितना उपयोगी साबित होगा । या फिर इसके निर्माण के पीछे जिन लोगों की योजना रही यह निर्माण उनके लिए अधिक उपयोगी साबित होगा।