1983 पीटीआई के समर्थन में पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भरी हुंकार

· कहा- विधायी शक्तियां इस्तेमाल कर पीटीआई को बहाल करे सरकार, नहीं तो कांग्रेस सरकार बनते ही सबसे पहले होगी पीटीआई की बहाली.·          दिवंगत पीटीआई के परिवारों को मिलने वाली मासिक आर्थिक मदद को रोकना अमानवीय काम- हुड्डा. ·          समस्त कर्मचारी संघर्ष तालमेल कमेटी ने सौंपा नेता प्रतिपक्ष हुड्डा को ज्ञापन

14 जुलाई, चंडीगढ़ः पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने एकबार फिर पीटीआई के समर्थन में हुंकार भरी है। उनका कहना है कि सरकार तुरंत प्रभाव से 1983 बर्खास्त पीटीआई को बहाल करे, नहीं तो कांग्रेस की सरकार बनते ही पिछले वित्तीय लाभ के साथ सबसे पहले इनकी बहाली की जाएगी। हुड्डा ने कहा कि पीटीआई का रोज़गार बचाने के लिए सरकार को अपनी विधायी शक्तियों का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए अगर विधानसभा में कोई विधेयक लाना पड़े तो विपक्ष उसका पुरज़ोर समर्थन करेगा। आज दिल्ली स्थित आवास पर समस्त कर्मचारी संघर्ष तालमेल कमेटी सर्व-कर्मचारी संघ के प्रदेशाध्यक्ष सुभाष लांबा के नेतृत्व में पूर्व मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपने पहुंची। हुड्डा ने कमेटी को आश्वासन दिया कि सड़क से लेकर सदन तक कर्मचारियों की आवाज़ उठाई जाएगी।  

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सरकार को संवेदनशील तरीके से इनकी बहाली का रास्ता निकालना चाहिए। बर्खास्त पीटीआई में 38 दिवंगत हो चुके हैं, 25 विधवा अध्यापक हैं, 34 दिव्यांग, 49 एक्स-सर्विसमैन, 68 दूसरे विभागों को छोड़कर आए कर्मचारी, 20 रिटायर अध्यापक और 80 प्रतिशत 45 साल से ज़्यादा उम्र के अध्यापक हैं। ख़ुद माननीय सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि 10 साल बाद इन लोगों को नौकरी से निकाला जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को इनका रोज़गार बचाने का रास्ता दिया था। सरकार 1983 की वैकेंसी दिखाकर सभी का रोज़गार बचा सकती थी। साथ ही वैकेंसी की संख्या बढ़ाकर मामले के याचिकाकर्ताओं को भी नौकरी दे सकती थी। लेकिन, सरकार ने ऐसा नहीं किया। सरकार को समझना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने इस भर्ती को सिर्फ प्रक्रियागत वजहों के चलते रद्द किया है। इसमें पीटीआई की कोई ग़लती नहीं है। पूरी भर्ती में किसी तरह के भ्रष्टाचार, जालसाज़ी या आपराधिक षड्यंत्र का ज़िक्र नहीं है।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बताया कि प्रदेश में इससे पहले भी कर्मचारियों का रोज़गार बचाने के लिए कई बार सरकारों ने अपनी विधायी शक्तियों का इस्तेमाल किया है। हमारी सरकार के दौरान ही पिछली सरकार में नौकरी से हटाए गए 1800 पुलिसवालों और 4000 एमआईटीसी कर्मियों को बहाल किया गया था। सरकार ने गेस्ट टीचर्स का रोज़गार बचाने के लिए भी अपनी विधायी शक्तियों का इस्तेमाल किया था। इसी तरह मौजूदा सरकार को पीटीआई के बारे में भी संवेदनशीलता बरतते हुए मानवीय आधार पर फ़ैसला लेना चाहिए। ऐसा करने की बजाए सरकार ने संवेदनहीनता की सारी सीमाएं पार कर कर दी। उसने दिवंगत हो चुके 38 पीटीआई के परिवारों को मिलने वाली वित्तीय सहायता भी बंद कर दी। ये पूरी तरह अमानवीय कार्य है।

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