भाजपा के पास प्रदेश प्रधान नहीं तो कांग्रेस के पास प्रदेश प्रधान होते हुए नहीं बना पाए पदाधिकारी, कांग्रेस के परम्परागत वोटर पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के सामने आ गया अस्तित्व का सवाल

ईश्वर धामु

चंडीगढ़।  भाजपा के सामने आज बड़ा सवाल हरियाणा इकाई का प्रदेश प्रधान का है तो कांग्रेस की प्रदेश प्रधान के सामने बड़ी समस्या प्रदेश इकाई के गठन की है। प्रदेश की दोनों बड़ी पार्टियों के सामने संगठन एक यक्ष प्रश्र बना खड़ा हुआ है।

भाजपा ने एक बार प्रदेश प्रधान के रूप में केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुज्जर का नाम तय कर दिया था और केवल घोषणा बाकी रह गई थी। परन्तु तभी ऐसा क्या हुआ कि प्रदेश प्रधान के नाम की घोषणा को रोक दिया गया। अब एक सप्ताह होने को जा रहा है और भाजपा कुछ तय नहीं कर पा रही है। इस पर बरोदा का उप चुनाव का समय समीप आ रहा है। अब तो यह नई चर्चा यह भी चल पड़ी है कि पार्टी बरोदा उप चुनाव तक नया प्रदेश प्रधान नहीं बनायेगी। चर्चाकारों का कहना है कि अगर ऐसा होता है तो भाजपा को इसका सीधा राजनैतिक नुकसान होगा।

कमोबेशी यही स्थिति कांग्रेस की है। कांग्रेस का दुर्भाज्य यह है कि उसके पास प्रदेश प्रधान तो है पर प्रदेश प्रधान कुमारी सैलजा संगठन को खड़ा नहीं कर पा रही है। कुमारी सैलजा को प्रदेश प्रधान बने एक साल से अधिक का समय हो चुका है पर अभी तक कोई पदाधिकारी नहीं बनाए गए हैं। यही स्थिति पूर्व प्रदेश प्रधान अशोक तंवर की थी। वों भी पांच साल में जिला स्तर पर कमेटियों का गठन नहीं कर पाए थे। इसका खामियाजा कांग्रेस ने चुनाव में हार के रूप में उठाना पड़ा। संगठन का न बनना कुमारी सैलजा की सक्षमता पर सवाल उठाते हैं। चर्चाकारों का कहना है कि कुमारी सैलजा की अधिकांश राजनीति हरियाणा से बाहर की है तो उनकी प्रदेश की राजनीति पर गहरी पकड़ नहीं है। उनकी अपन वर्ग अनुसूचित जाति में भी पुख्ता पैठ नहीं है। प्रदेश प्रधान बनने के बाद भी कुमारी सैलजा ने हरियाणा को आपेक्षित समय नहीं दिया है। जबकि प्रारम्भ में सैलजा समर्थकों ने प्रचारित किया था कि प्रदेश कार्यकारिणी का गठन बहुत जल्द हो जायेगा। परन्तु साल बीत जाने के बाद भी कोई पदाधिकारी नहीं बनाया जा सका।

अब तो यह भी कहा जाने लगा कि राज्यसभा की सीट भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने अपने बेटे को दिलवा कर सैलजा को झटका दिया है तो दोनों के सम्बंधों में खटास आ जाने से संगठन का मामला अटक गया है। परिस्थितियां चाहे जो भी हो पर संगठन न बन पाने के कारण कार्यकर्ताओं के हौंसले टूट चुके हैं। अब हालात यह है कि कांग्रेस में कोई भी किसी प्रकार की घटना के लिए जिममेदार नहीं है। कार्यकर्ता भटकाव की स्थिति में आ चुका है। यह भी चर्चाएं चल पड़ी है कि कमजोर नेतृत्व के चलते कई नामजद नेता कांग्रेस को छोड़ सकते हैं। क्योकि उनको यह हालात रास नहीं आ रहे हैं।

चर्चाकारों का कहना है कि कांग्रेस में अब सबसे दयनीय हालत पार्टी के परम्परागत वोट समझे जाने वाले पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के लोगों की बनी हुई है। क्योकि पिछड़ा वर्ग के पास कोई सशक्त नेतृत्व नहीं है, जो इनकी आवाज उठा सके। यही हालत अनुसूचित जाति की है। हालांकि प्रदेश प्रधान कुमारी सैलजा अनुसूचित जाति से हैं पर इस वर्ग को वह नेतृत्व नहीं दे पा रही है। कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस समय रहते नहीं सम्भल पाई तो उसको बरोदा उप चुनाव में संगठन न होने का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

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