-कमलेश भारतीय

पंजाब के एक नये राजनीतिक घटनाक्रम के चलते पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींडसा ने नयी पार्टी बना ली लेकिन नाम वही रखा -शिरोमणि अकाली दल । यानी शिरोमणि अकाली दल दोफाड़ हो गया । सुखदेव सिंह ढींडसा ने यह कह कर अलग दल बनाया है कि शिरोमणि अकाली दल एक प्रकार से किसी खास परिवार की जागीर की तरह बना दिया गया था । उनका संकेत साफ तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के परिवार की ओर है । उनका बेटा उपमुख्यमंत्री रहा तो पुत्रवधु केंद्र में हैं । इस तरह जो भी लाभ का पद मिला वह इसी परिवार में बंट गया । यह खतरे की घंटी है बादल परिवार के लिए । पंजाब में अकाली दल और बादल परिवार सचमुच एक ही सिक्के के दो पहलू कहे जा सकते हैं । अब पार्टी के अंदर से ही चुनौती दी गयी है ।

वैसे परिवार की जागीर तो हरियाणा में इनेलो भी रही । अब यह भी दोफाड़ हो चुकी है लेकिन अपने ही परिवार द्वारा न कि किसी बाहरी नेता ने ऐसा किया जैसा कि सुखदेव सिंह ढींडसा नै किया । इनेलो में तो दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला बाहर आए और जजपा का गठन कर दिया । ज्यादा समय नहीं हुआ फिर भी सफलता मिली विधानसभा चुनाव में और दस सीटें जीत कर उपमुख्यमंत्री बने दुष्यंत चौटाला ।

आंध्र प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री रेड्डी के बेटे जगन रेड्डी ने कांग्रेस से अलग होकर पार्टी बनाई । अब मुख्यमंत्री हैं । शुरू में सफलता नहीं मिली । महाराष्ट्र में शिव सेना के बाल ठाकरे के बाद ठाकरे परिवार एकजुट न रह सका । आखिर राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना बना डाली । शुरू शुरू में सफलता मिली लेकिन अब उद्धव ठाकरे मुख्यम॔त्री हैं । हरियाणा में कुलदीप विश्नोई ने हजकां बनाई लेकिन फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया । चौ बंसीलाल ने हविपा बनाई और राज भी पाया लेकिन फिर परिवार कांग्रेस में वापस । छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भी अलग पार्टी बनाई और अब दुनिया से विदा हो गये । बेटा क्या फैसला करेगा , यह देखना दिलचस्प होगा । हिमाचल में कभी विजय सिंह मनकोटिया ने पार्टी बनाई पर वहां अभी तक दो पार्टियां ही आमने सामने रहती हैं । दिल्ली में आप ने भाजपा और कांग्रेस को बता दिया कि पार्टियां आपकी जागीर नहीं हैं । जनता इसे नहीं सहेगी । दो दो बार इन बड़ी पार्टियों को हराया । यूपी में समाजवादी पार्टी में कभी बेटे अखिलेश ने बगावत की तो कभी छोटे भाई शिवपाल ने और मुलायम सिंह यादव मूक दर्शक बन कर रह गये । कोई भी दांव काम न आया ।

लोकतंत्र में पार्टी बनाने का , राजनीतिक गतिविधियां चलाने का सबको अधिकार है । पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी ने कांग्रेस को अलविदा कह तृणमूल कांग्रेस बना ली और सत्ता भी पाई । असल में ज्यादा अधिकार और ज्यादा लोकतांत्रिक छूट देना जरूरी है जबकि परिवार पर आधारित पार्टियों में सब कुछ अपने हाथ में रखने से इस तरह बगावत होती है जो स्वाभाविक है ।

error: Content is protected !!