क्राइम रिफाॅर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पुष्पक टाईम्स के प्रधान संपादक डाॅ. संदीप कटारिया ने बताया कि कोरोना काल में अलग-अलग सेक्टरों के लोगों की नौकरियां गई है। अलग-अलग पेशे के लोगों की नौकरियां गई है। जो दिल्ली में साप्ताहिक बाजार लगाते थे। छोटे-छोटे सामान बेचते थे उनका भी रोजगार बंद हो गया है क्योंकि भीड़ से ही उनकी कमाई होती थी। जो लोग प्राइवेट टयूशन पढ़ाते थे उनका रोजगार बंद हो गया। जो कोचिंग मंे पढ़ाते थे उनकी सैलरी बंद हो गई और जो स्कूलों में पढ़ाते थे उनकी भी सैलरी बंद हो गई। बहुत से प्राइवेट स्कूलों ने अपने टीचर को निकाल दिया है ंउन्हें सैलरी नहीं दी लेकिन इस बात की जांच होनी चाहिए इसे सिर्फ अपराधिक नजरिये से नहीं बल्कि जानने के जांच करनी चाहिए कि इन प्राइवेट स्कूलों मंे फीस आ रही है या नहीं। इस से हमारे समाज की दूसरी हकीकत का अंदाजा मिलेगा कि एक स्कूल में जहां 10 हजार छात्र पढ़ते थे उनमें से अब कितने छात्र फीस नहीं दे पा रहे है। ये जानना जरूरी है क्योंकि इसी के आधार पर स्कूलों पर दबाव पड़ रहा है और स्कूलों से छटनी की जा रही है।

लाॅकडाउन का असर महज प्राइवेट ही नहीं दिल्ली सरकार के सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले 20 हजार गेस्ट टीचरों पर इसका प्रभाव पड़ा है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 7 साल तक गेस्ट टीचर रहे देवेंद्र कुमार को जब मई से सैलरी नहीं मिली तो उन्होंने पेंचर बनाने की दुकान खोल ली। कोरोना काल में ये नेचुरल साइंस के पीजीटी टीचर से साईकिल टायर के पंेचर जोड़ने वाले कारीगर में बदल गए है। दिल्ली सरकार ने आदेश निकाला उस आदेश में हमें हटाने का आदेश दिया गया था। यही रोजी रोटी हमारी चली गई थी। हम पूरी तरह से स्कूल छोड़ कर अपने काम पर आश्रित होने लगें। जो राष्ट्र का निर्माता होता है जिसे कहा जाता है शिक्षक आज अगर वो ऐसा काम करता है तो ये बड़े शर्म की बात है। सरकार को भी इस बारे में सोचना चाहिए।

दिल्ली में 2800 प्राइवेट स्कूल हैं लेकिन जब बड़े प्राइवेट स्कूल अपने शिक्षकों को निकाल रहें है तब दिल्ली के अंओथराइज कालोनियों में चलने वाले इस तरह के करीब 2300 छोटे प्राइवेट स्कूल अब बंद होने की कगार पर है। इसी तरह के हालात देशभर के 70 हजार से ज्यादा छोटे-बड़े प्राइवेट स्कूल के है। सैलरी तो बहुत दूर की बात है। हालात इतने गडबड़ है कि हम अपना बिजली का बिल जमा नहीं कर पाए है। क्योंकि हमनें 20 साल पहले इस विद्यालय की नींव रखी थी। ये सोच कर समाज का जो सबसे निचला तबका है उसे अच्छी से अच्छी शिक्षा देने का प्रयास करूगा। 50 प्रतिशत पिछले सालों की भी फीस इन 70 हजार स्कूलों की जो ज्यादातर ग्रामीण एरिया में चलते हैं या स्लम एरिया में चलते हैं। बहुत कम फीस लेते हैं। उनकी बाकाया है और नए सेशन में तो उनका खाता भी नहीं खुला है। किसी के पास 1 प्रतिशत और किसी के पास 0 प्रतिशत फीस आई है। जिससे दो करोड़ टीचरों को सैलरी देने का संकट गहरा गया है। एक आंकड़े के मुताबिक लाॅकडाउन में करीब 12 करोड़ रोजगार संकट में है। कई बड़ी-छोटी कंपनियों में काम करने वाले लोगांे की सैलरी में कटौती हुई या उनकी नौकरी चली गई। इसके चलते उन्हें बच्चों की फीस भरने में परेशानी हो रही है।

यहां पर दो तरह के टीचर होते हैं। ऐडवाॅक टीचर और काॅमन एड टीचर। काॅमन एड टीचर को ज्यादातर स्कूल 30-40 प्रतिशत सैलरी दे रहे है। यहां पर भी हमें एक बात ओर पता चली हैं कि पांचवे और छठे पेय कमीशन के हिसाब से सैलरी दी जा रही है। 60-70 प्रतिशत एडवाॅक टीचर निकाल दिए गए है। तो पेरेंट्स के व्यू से जब आप पैसा टयूशन फीस का मांग रहे हैं वो भी आप ये कह रहे हैं कि आप अपने टीचर को सैलरी देंगे जबकि पेरेंट्स का पता चल रहा है कि टीचर को सैलरी के नाम पर उस टयूशन फीस का 20 प्रतिशत जा रहा है तो पेरेंट्स का सवाल उठाया जायज है कि टयूशन फीस भी क्यांे दें।

डाॅ. कटारिया ने बताया कि कोरोना काल से पहले तक शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग को बढ़ता हुआ कारोबार माना जाता था लेकिन लाॅकडाउन में नौकरी खो चुकें अभिवावकों को लेकर छोटे स्कूलों में फीस भरना आसान नहीं रह गया जिसका असर प्राइवेट स्कूलों पर पड़ रहा है। अब सरकार को चाहिए कि ऐसा बीच का रास्ता निकालें ताकि स्कूल के संचालक, पढ़ाने वाले शिक्षक और अभिवावक तीनों इस संकट की घड़ी से उभर सकें।

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