– फसल ख़रीद बंद करने में जल्दबाज़ी की बजाए किसानों की पेमेंट और मंडियों से उठान में जल्दबाज़ी दिखाए सरकार- हुड्डा . · – चने और सरसों की ख़रीद में हुई धांधली की हो जांच, किसानों की भरपाई करे सरकार- हुड्डा. ·- खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में हुई बढ़ोतरी नाकाफी, इससे तो किसान की लागत भी नहीं होगी पूरी- हुड्डा. ·       – धान पर पाबंदी कि ज़िद छोड़े सरकार, बरसाती मोगे की नई नीति पर फिर से करे विचार- हुड्डा    

6 जून, चंडीगढ़ः पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने फसलों की ख़रीद रोकने के फ़ैसले का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने ख़ुद 30 जून तक ख़रीद जारी रखने का आश्वासन दिया था। इसलिए विपरीत परिस्थितियों की वजह से जो किसान अपनी फसल नहीं बेच पाए, उन्हें कुछ दिन का और वक्त देना चाहिए। हुड्डा ने सरकार से आग्रह किया कि फिलहाल गेहूं, सरसों, चना और कपास की ख़रीद जारी रखनी चाहिए।  सरकार से आग्रह है की ख़रीद बंद करने में किसी तरह की जल्दबाज़ी दिखाने की बजाए सरकार किसानों की बची हुई पेमेंट के भुगतान और मंडियों में पड़ी फसल के उठान में जल्दबाज़ी दिखाए। क्योंकि अभी भी करीब 75 हज़ार मीट्रिक टन सरसों की पेमेंट और लगभग 2200 करोड़ रुपये गेहूं किसानों की पेमेंट का भुगतान नहीं हुआ है। अब भी मंडियों से लगभग 17 लाख मीट्रिक टन गेहूं का उठान करके सरकारी गोदामों में पहुँचाना बाकी है।

उन्होंने कहा कि सरसों ख़रीद में हुआ घोटाला सबके सामने हैं। इससे पता चलता है कि बड़ी मात्रा में फर्ज़ी कागज़ी ख़रीद हुई है और कई असली किसान अभी भी फसल बेचने का इंतज़ार कर रहे हैं। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि महज़ कागज़ों में नहीं, बल्कि असलियत में किसान का एक-एक दाना एजेंसियां ख़रीदें। सरसों ही नहीं चने की ख़रीद में भी धांधली सामने आई है। हिसार मंडी में तौल की हेराफेरी का ख़ुलासा हुआ है। यहां पर सरकारी ख़रीद के दौरान प्रति बोरी किसानों पर करीब 5 किलो चने की चपत लगाई जा रहे थी। किसानों को करीब 250 रुपये प्रति बोरी का घाटा उठाना पड़ा। हुड्डा ने कहा कि किसान पहले ही टोटे की मार झेल रहा है। ऊपर से सरकारी घपले की मार उसे बर्बादी की कगार पर ले आई है। सरकार को किसानों के साथ हुई हेराफेरी का संज्ञान लेते हुए आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और किसानों के नुकसान का भुगतान करना चाहिए।

हुड्डा ने कहा कि किसानों को खरीफ के न्यूनतम समर्थन मूल्य में सरकार से उचित बढ़ोतरी की उम्मीद थी। लेकिन वहां पर भी किसानों को निराशा ही हाथ लगी। सरकार ने धान का रेट महज़ 53 पैसे किलो बढ़ाया हैं। ये सिर्फ 2.9% की बढ़ोतरी है।

खाद, बीज, सिंचाई, तेल, लेबर, कटाई, कढ़ाई, ढुलाई और महंगाई की दर में बढ़ोतरी इससे कई गुणा ज़्यादा है। सरकार की तरफ से तय रेट पर तो खेती की लागत भी पूरी नहीं हो पाएगी। इसलिए प्रदेश सरकार को किसानों के लिए उचित बोनस का ऐलान करना चाहिए।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि किसानों और विपक्ष के विरोध के बावजूद प्रदेश सरकार धान के किसानों पर पाबंदी की ज़िद पर अड़ी हुई है। इसलिए अब भी अप्रत्यक्ष रूप से धान किसानों पर मार मारने की नीति बना रही है। सरकार अब धान की खेती के लिए बरसाती मोगे से नहरी पानी की उपलब्धता की नई नीति लेकर आई है। ऐसा लगता है कि सरकार बरसाती मोगे यानी राईस शूट से सप्लाई बंद करके, किसानों को ट्यूबवैल यानी भूजल दोहन के सहारे छोड़ना चाहती है। इस नीति में अभी काफी स्पष्टता की ज़रूरत है। इसलिए सरकार से अपील है कि किसानों से बात करके ही वो किसी तरह का बदलाव करे।

अगर सरकार कहीं बदलाव करना ही चाहती है तो उसे भावांतर भरपाई योजना में करना चाहिए। आज प्रदेश का सब्ज़ी उत्पादक किसान आर्थिक तंगी झेल रहा है। क्योंकि उसकी सब्ज़ियों की ख़रीद नहीं हो पा रही है। जितनी भी ख़रीद होती है, उसका उचित रेट नहीं मिलता। सरकार ने भावांतर भरपाई के तहत जो दाम तय किए हैं, उससे फसल की तुड़ाई और ढुलाई तक की लागत नहीं निकल पाती। इसलिए सरकार को टमाटर, शिमला मिर्च, घिया, तोरी, ककड़ी या तमाम दूसरी सब्ज़ियां उगाने वाले किसानों की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए।

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