*” अगर संरक्षित करे प्रकृति,तभी सुरक्षित रह पाऐंगे। रौंद वक्ष प्रकृति का ,हम भी निश्चित ही कुचले जाएंगे”**

अनिरुद्ध उनियाल  राष्ट्रीय युवा संयोजक आईएएमबीएसएस

हम अगर हमारे चारों और देखे तो ईश्वर की बनाई इस अद्भुत पर्यावरण की सुंदरता देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है ,पर्यावरण की गोद में सुंदर फूल, लताये, हरे-भरे वृक्षों, प्यारे – प्यारे चहचहाते पक्षी है, जो आकर्षण का केंद्र बिंदु है। पर्यावरण शब्द परि+आवरण के संयोग से बना है। ‘परि’ का आशय चारों ओर तथा ‘आवरण’ का आशय परिवेश है। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों ,प्राणियों,और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं वास्तव में पर्यावरण में वायु ,जल ,भूमि ,पेड़-पौधे , जीव-जन्तु ,मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं।पर्यावरण व्यापक शब्द है जिसका सामान्य अर्थ प्रकृति द्वारा प्रदान किया गया समस्त भौतिक और सामाजिक वातावरण इसके अंतर्गत जल, वायु, पेड़, पौधे, पर्वत, प्राकृतिक संपदा सभी पर्यावरण संरक्षण के उपाए में आते है।

मनुष्य द्वारा प्रकृति का दोहन

पिछले कई दशकों से हम मानव अपनी मातृ पृथ्वी और उसके संसाधनों को प्रौद्योगिकी के विकास के नाम पर नीचा दिखा रहे हैं। अनजाने में अपने जीवन स्तर को बढ़ाने के नाम पर हम इसे और अधिक बाधित करने के रास्ते पर हैं। आज हम इतने आगे आ गए हैं कि यह बेहतर जीवन जीने का सवाल नहीं है, बल्कि यह अब जीने के बारे में है।

प्रकृति में प्राकृतिक और मानव निर्मित कारकों द्वारा स्वयं में किए गए परिवर्तनों के खिलाफ खुद को पुनर्जीवित करने का एक अद्भुत गुण है, लेकिन वहां इसका संतृप्ति स्तर भी है और शायद हम पहले ही इसे पार कर चुके हैं। हमने इसे मरम्मत से परे हटा दिया है। हमने कार्बन डाइऑक्साइड के आवश्यक अनुपात को असंतुलित करने के लिए पर्याप्त वनों की कटाई का हिसाब रखा है; हमने खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के साथ जल संसाधनों को पर्याप्त रूप से दूषित कर दिया है जो इसे अपने दम पर आगे शुद्ध नहीं कर सकते हैं।

मिट्टी को तब तक नीचा दिखाया जाता है जब तक कि वह अपनी खेती को खो नहीं देता।आज मानव ने अपनी जिज्ञासा और नई नई खोज की अभिलाषा में पर्यावरण के सहज कार्यो में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है जिसके कारन हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है हम हमारे दोस्तों परिवारों का तो बहुत ख्याल रखते हैं परंतु जब पर्यावरण की बात आती है तो बस गांधी जयंती, या फिर स्वच्छ भारत अभियान, के समय ही पर्यावरण का ख्याल आता है लेकिन यदि हम हमारे पर्यावरण का और पृथ्वी के बारे में सोचेंगे इस प्रदूषण से बच सकते हैं। बेहिसाब ढंग से मनुष्य ने प्रकृति  का दोहन किया है।  बेजुबान जीव की हत्या, अपने विकास के लिए  पेड़  की अनगिनत कटाई आदि कुकर्म का ही मनुष्य आज फल भुगत रहा है। प्रकृति का दोहन करते हुए  हमारी स्थिति  उस मूर्ख  की   तरह है जो जिस डाल पे बैठा है खुद उसे काट भी रहा है।

पर्यावरण संरक्षण को नुकसान पहुंचाने वाले मुख्य प्रकार-: वायु प्रदूषण ,जल,प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण,प्रकाश प्रदूषण, भूमि प्रदूषण।

इस प्रकार अगर हमें वास्तव में अपने पर्यावरण संरक्षण के बारे में सोचना है तो इन मुख्य कारणों पर विशेष ध्यान देना होगा तभी हम अपने पर्यावरण का संरक्षण कर सकते हैं।

पर्यावरण पर इन प्रदूषण का घातक प्रभाव होता है।आज का युग आधुनिक युग है, और पूरा संसार ही पर्यावरण के प्रदूषण से पीड़ित है, आज मनुष्य की हर एक सांस लेने पर हानिकारक है जहरीली गैसे मिली होती है। इसकी वजह से जहरीले सांस लेने के लिए हम मानव मजबूर है। इस्से हमारे शरीर पर कई विकृतियां पैदा हो रही है, कई तरह की बीमारियां विकसित हो रही है, वो दिन वो दिन दूर नहीं है, अगर पर्यावरण इसी तरह से प्रदूषित होता रहा तो पूरी पृथ्वी प्राणी और वनस्पति इस प्रदूषण में विलीन हो जाएगी ।

  समय समय पर  प्रकृति  ने हमें  चेताया भी है – बाढ़, भुकंप, महामारी  आदि से कि हे मनुष्य  संभल जा अभी भी वक्त  है ,प्रकृति  हमें  समझा रही है कि हम किरायेदार  है , मालिक  नहीं ।इसलिए समय रहते हमें इन प्रदूषण से हमारी पृथ्वी और हमारी जान बचानी है इसलिए इसके संरक्षण का उपाय हर व्यक्ति को करना आवश्यक है। 

*उपाय*-

‘पर्यावरण संरक्षण”’ का समस्त प्राणियों के जीवन तथा इस धरती के समस्त प्राकृतिक परिवेश से घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है और निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है। इस स्थिति को ध्यान में रखकर सन् 1992 में ब्राज़ील में विश्व के 174 देशों का ‘पृथ्वी सम्मेलन’ आयोजित किया गया।

इसके पश्चात सन् 2002 में जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित कर विश्व के सभी देशों को ”’पर्यावरण संरक्षण”’ पर ध्यान देने के लिए अनेक उपाय सुझाए गये। वस्तुतः पर्यावरण के संरक्षण से ही धरती पर जीवन का संरक्षण हो सकता है , अन्यथा मंगल ग्रहआदि ग्रहों की तरह धरती का जीवन-चक्र भी एक दिन समाप्त हो जायेगा।

पर्यावरण संरक्षण की तीन प्रमुख उपाय है-:

(1) पर्यावरण सरक्षण को हानि पहुंचाने वाली चीजों का कम उपयोग करना चाहिए जैसे प्लास्टिक के बैग इत्यादि।

(2) पुनरावृति करना चाहिए यानी वापस इस्तेमाल करने योग्य सामान को हमें खरीदने चाहिए जिसे हम वापस उपयोग कर सकते हैं जैसे कांच, कागज, प्लास्टिक और धातु के समान जिसे हम दोबारा उपयोग कर सकते हैं।

(3) कुछ ऐसी चीजें होती है जिसे दोबारा बना कर प्रयोग में ला सकते है जैसे शराब की बोतलें, खाली जार इत्यादि ऐसे समान जो हम हमारे घरों में उपयोग करते हैं और फेंक देते हैं लेकिन उन्हें वापस उपयोग लाने का काम कर सकते हैं उदाहरण के तौर पर अखबार, खराब कागज , गत्ता, इत्यादि ऐसे समान होते हैं जिनका उपयोग बनाकर वापस उपयोग में ला सकते है। पर्यावरण संरक्षण का उपाय किसी भी महिला के किचन से शुरू होकर हमारे पर्यावरण तक हमारे सामने आता है, इसकी और सरकार को विशेष तौर पर ध्यान देना चाहिए। हमारे देश में अक्सर ऐसा होता है कि कोई भी बड़ा कार्य होता है तो हम उम्मीद करते हैं कि वह सरकार करेगी जैसे पर्यावरण संरक्षण दुर्भाग्य से कुछ लोग मानते हैं कि केवल सरकार और बड़ी कंपनियों को ही पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ करना चाहिए परंतु ऐसा नहीं है।

प्रत्येक व्यक्ति अगर अपनी अपनी जिम्मेदारी समझे तो सभी प्रकार की कचरा ,गंदगी और बढ़ती आबादी के लिए स्वयं उपाय करके पर्यावरण संरक्षण में अपनी भागीदारी दे सकता है।

हम  जीवनदायी पेड़ों(पीपल/नीम/बरगद आदि) को ज्यादा से ज्यादा लगायें  यह हम सब की नैतिक  जिम्मेदारी है , गाय जिसे हमने माँ कि उपाधि दे रखी है जो  हम दूध, दही, घी आदि के साथ साथ निरंतर आक्सीजन  छोड़ती  है , ऐसे जीव और अन्य  जीव जंतुओं की रक्षा करना भी हमारा  परम्  कॆतवय है। इसलिए  ही हमारी संस्कृति  में  तुलसी ,पीपल आदि पेड़ो  , वनस्पतियों, जीव, नदी   की पुजा करने की मान्यता है यह कोई  अंधविश्वास नही अथवा उस समय के महानवैज्ञानिक- ॠषि, मुनियों  द्वारा मनुष्य के भीतर पर्यावरण  संरक्षण के संस्कार  लाने का एक उच्चतम  उपाय है। 

*पर्यावरण संरक्षण*

यह केवल एक व्यक्ति  विशेष की नहीं , पुरे राष्ट्र की पुरे विश्व की नैतिक जिम्मेदारी है । उपर्युक्त सभी प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए यदि थोड़ा सा भी उचित दिशा में प्रयास करें तो बचा सकते हैं अपना पर्यावरण।  हमें जनाधिक्य को नियंत्रित करना होगा। सबसे महत्वपूर्ण  यह है कि – *’पौधा लगाने से पहले वह जगह तैयार करना आवश्यक है जहां वह विकसित व बड़ा होगा।’** अंततः  इस  विश्व पर्यावरण दिवस  पर हम सब संकलप  ले पर्यावरण  संरक्षण का। हम सब संकल्प लें  कि हम आने वाले भविष्य को एक साफ और  हरियाली भरी प्रकृति  देने का। हम सब संकल्प लें  मिलकर  सहभागिता और एकता के साथ  हम  सब  अपनी  प्रकृति  को   नदियो को  धरती को बचाने का प्रयास करते हुए सहयोगी बनेगे।प्रकृति हमारी है  हमे ही  इसे  सुरक्षित  रखनेका दायित्व भी हम सब पर है।

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