भू-जल संरक्षण योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी

चंडीगढ़, 18 मई: हरियाणा सरकार द्वारा प्रदेश में गिरते भू-जल स्तर की वजह से किसानों को धान नहीं लगाने का तुगलकी फरमान जारी करने से पहले सभी पहलुओं पर विचारविमर्श करना चाहिए था और सभी राजनीतिक दलों व किसानों के साथ विचार उपरांत ही ऐसे महत्वपूर्ण फैसलों बारे घोषणा करनी चाहिए थी। यह बात इनेलो नेता चौधरी अभय सिंह चौटाला ने सरकारी फरमान धान की जगह मक्के की बिजाई करने और प्रति एकड़ सात हजार किसानों को देने बारे पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कही। यह ठीक है कि गिरते भू-जल स्तर की सभी प्रदेशवासियों को चिंता है परंतु ऐसे अचानक लिए गए फैसलों से किसानों की आर्थिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा और इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे, इन सभी बातों को ध्यान में रखने के बाद ही ऐसे नीतिगत फैसलों की घोषणा करनी चाहिए थी।

इनेलो नेता ने कहा कि किसानों के लिए खेती पहले ही घाटे का धंधा है और अचानक ऐसे फैसले करना सरकार की किसान विरोधी नीतियों को उजागर करता है। किसान पहले सरसों व गेहूं की खरÞीद के सताए बैठे हैं। मंडियों में किसानों के साथ जो खरÞीद एजेंसियों ने दुर्व्यवहार किया है, किसान उसको जिंदगी भर नहीं भूल सकते। पहले सरकार की नीतियों के कारण किसानों को धान की खरÞीद में खरÞीद एजेंसियों व सरकार के चहेतों ने जमकर लूटा और रोने भी नहीं दिया।

उन्होंने कहा कि क्या सरकार मक्के की फसल की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर शत-प्रतिशत खरÞीद करेगी? क्या मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य स्वामीनाथन रिपोर्ट की शर्तों के अनुसार तय किया जाएगा ताकि लागत मूल्य से 50 फीसदी अतिरिक्त मुनाफा देकर किसानों को मक्के की फसल के लिए उत्साहित किया जा सके। सरकार ने सात हजार रुपए प्रति एकड़ देने की घोषणा तो कर दी परंतु जिस तरह अदायगी की शर्तें लगाई गई हंै, लगता है सरकार की नीयत और नीति में अंतर है।

इनेलो नेता ने कहा कि अगर गिरते भू-जल स्तर की वजह से किसानों को धान लगाने से रोका जा रहा है तो सरकार को पहले गिरते भू-जल स्तर को किस तरह रोकना है और भू-जल संरक्षण योजनाओं को किस स्तर पर लागू करना है, इन सभी पर गहन विचार करना चाहिए था। इनेलो शासन के दौरान गिरते भू-जल स्तर को रोकने के लिए दादूपुर-नलवी नहर के निर्माण को इसलिए प्राथमिकता दी गई थी ताकि यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत आदि जिलों के गिरते भू-जल को रोका जा सके। इस नहर निर्माण की योजना को रद्द न किया होता तो इन जिलों में यह नहर जलसंरक्षण का काम करती और गिरते हुए भू-जल स्तर को रोका जा सकता था। प्रदेश सरकार की तमाम भू-जल संरक्षण योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी हैं। अभी केंद्र सरकार ने अटल भू-जल योजना को चालू किया था परंतु यह योजना भी बस एक जुमला बनकर ही रह गई है।

उन्होंने कहा कि किसानों को धान लगाने से रोकने से पहले जल संरक्षण योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए और उनको ईमानदारी से लागू करवाना चाहिए। अगर धान की जगह किसी दूसरी फसल की बुआई करवानी है तो उसकी शत-प्रतिशत खरीद समर्थन मूल्य पर करने का किसानों को विश्वास दिलाना होगा। आने वाले समय में पीने के पानी की उपलब्धता भी राशन कार्डों पर होने की संभावना बनने के हालात पैदा हो रहे हंै। वास्तव में जल ही जीवन है।

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