विजय गर्ग …….. सेवानिवृत्त प्रिंसिपल

आजादी से हिंदी तक: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत में स्वतंत्रता संग्राम और हिंदी की स्वीकार्यता साथ-साथ विकसित हुए। उस समय अंग्रेजों और अंग्रेजी के विरोध में हिंदी एक सशक्त औजार बनकर उभरी। यही कारण था कि स्वतंत्रता के बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला। महात्मा गांधी सहित सभी स्वतंत्रता सेनानियों का मानना था कि लोकतंत्र की भाषा हिंदी होगी

हालांकि, अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दिया गया, जिसका कारण उसकी औपनिवेशिक विरासत और कुछ हिंदी विरोधी स्वर थे। लेकिन आज़ादी के बाद से अब तक भाषा परिदृश्य में बहुत कुछ बदल चुका है।

हिंदी का बढ़ता प्रभाव

2001 और 2011 की जनगणना के अनुसार, हिंदी भाषियों की संख्या में 25.19% की वृद्धि हुई, लेकिन तमिलनाडु में यह वृद्धि सबसे अधिक (107.62%) रही। अन्य राज्यों में भी हिंदी का प्रभाव बढ़ा है:

  • केरल: 96.80%
  • गोवा: 95.40%
  • गुजरात: 78.53%
  • कर्नाटक: 49.71%

वहीं, हिंदी प्रदेशों में यह वृद्धि अपेक्षाकृत कम रही:

  • उत्तर प्रदेश: 23.86%
  • बिहार: 33.08%
  • मध्य प्रदेश: 2.15%

यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि हिंदी का विस्तार स्वाभाविक रूप से हुआ है, न कि जबरन थोपा गया है।

हिंदी का राजनीतिक पहलू और भ्रांतियां

देश में अब भी भाषाई राजनीति का नकारात्मक प्रभाव देखा जाता है। हिंदी को लेकर ‘हिंदी पट्टी’ जैसी अवधारणाएं ग़लत हैं। यह ग्रियर्सन (1928) द्वारा दी गई ‘हिंदी बेल्ट’ की अवधारणा का मात्र अनुवाद है। वास्तव में, इस तथाकथित पट्टी में हिंदी के अलावा कई भाषाएं और बोलियां भी जीवंत हैं

अंतरराज्यीय संवाद में हिंदी की भूमिका

आज रोजगार, शिक्षा, मनोरंजन और डिजिटल युग में हिंदी संपर्क भाषा के रूप में उभर रही है। भारत में सरकारी और निजी क्षेत्र में हिंदी का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है।

हिंदी बनाम अंग्रेजी: क्या है सच्चाई?

यदि अंग्रेजी का वर्चस्व लोकतंत्र के मूल भाव के खिलाफ है, तो यही संभावना हिंदी के लिए भी बनी रहेगी। लेकिन हिंदी की विशेषता उसका समायोजन और समावेशी स्वभाव है। इस भाषा ने अरबी, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी के कई शब्दों को अपनाया है, जिससे यह अभिव्यक्ति की सबसे समृद्ध भाषा बन गई है।

भोजपुरी और डिजिटल क्रांति

भोजपुरी आज गूगल मशीनी अनुवाद में शामिल हो चुकी है, जबकि इसे अब तक आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं मिला। फिक्की की रिपोर्ट (2023) के अनुसार, भोजपुरी टीवी दर्शकों के मामले में अंग्रेजी, बांग्ला, उड़िया, मलयालम से आगे निकल चुकी है।

हिंदी: भविष्य की भाषा

हिंदी आज सिर्फ़ एक भाषा नहीं, बल्कि देश की सांस्कृतिक और सामाजिक धारा की संवाहक है। यह भारत की बहुभाषिकता की आत्मा है और हमेशा देश को एक सूत्र में बांधने वाली भाषा बनी रहेगी।


निष्कर्ष

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में भाषाई समावेश ही लोकतंत्र की ताकत है। हिंदी को लेकर भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत है, ताकि यह भाषा संपर्क और संवाद का सशक्त माध्यम बनी रहे। यह न किसी पर थोपी गई थी, न थोपी जाएगी – यह जनता की भाषा है और जनता इसे अपना रही है।

📌 हिंदी सिर्फ़ एक भाषा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है।

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