
मातृ-पितृ पूजन दिवस का आगाज़: माता-पिता से गुस्ताखी अक्षम्य अपराध
वर्तमान डिजिटल व पाश्चात्य प्रवृत्ति युग में युवाओं को माता-पिता के लिए समय नहीं, मातृ-पितृ पूजन दिवस से सराहनीय जन जागरण
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

माता-पिता और गुरुजनों के हम ऋणी हैं। उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन ही हमारे जीवन को दिशा प्रदान करता है। भारतीय संस्कृति में माता-पिता का सम्मान और पूजन अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है, लेकिन आजकल के पाश्चात्य प्रभाव और डिजिटल युग में बच्चों के बीच इस सम्मान की कमी देखने को मिल रही है। यही कारण है कि मातृ-पितृ पूजन दिवस का आयोजन और इस विषय पर जन जागरण की आवश्यकता महसूस होती है।
माता-पिता का सम्मान: भारतीय संस्कृति का मूल
भारत की सांस्कृतिक धारा हमेशा से माता-पिता को सर्वश्रेष्ठ स्थान देती आई है। शास्त्रों में भी यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “माता गुरुतरा भूमेःपिता चोच्चत्रं च खात्”, अर्थात् माता पृथ्वी से भी अधिक भारी हैं और पिता आकाश से भी ऊँचे। लेकिन पिछले कुछ दशकों में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से युवा पीढ़ी में इस सम्मान की कमी बढ़ी है। माता-पिता के प्रति व्यवहार में अनादर और उपेक्षा की भावना विकसित हो रही है, जिससे समाज के नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है।
मातृ-पितृ पूजन दिवस का महत्व
समाज में माता-पिता के प्रति सम्मान और प्यार बढ़ाने के लिए मातृ-पितृ पूजन दिवस जैसे आयोजन सराहनीय हैं। रविवार, 16 फरवरी 2025 को गोंदिया के रईस सिटी में संत कंवरराम मैदान पर आयोजित मातृ-पितृ पूजन दिवस के कार्यक्रम में मैंने देखा कि लोग अपने माता-पिता की पूजा कर रहे थे, उनके चरणों में शीष झुका रहे थे और क्षमा मांग रहे थे। यह दृश्य मुझे गदगद कर गया और मुझे यह महसूस हुआ कि ऐसे कार्यक्रमों की समाज में अत्यंत आवश्यकता है।
हमारा समाज एक समय में श्रवण कुमार जैसे महान उदाहरणों से भरा हुआ था, जिन्होंने अपने माता-पिता की सेवा की। लेकिन आजकल के कुछ परिवारों में बच्चों द्वारा माता-पिता का अपमान किया जा रहा है। यह स्थिति चिंताजनक है।
माता-पिता से गुस्ताखी अक्षम्य अपराध

आजकल के समाज में माता-पिता से दुर्व्यवहार, अपमान और त्याग की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। कई बार बच्चों द्वारा संपत्ति के लालच में माता-पिता को छोड़ दिया जाता है, और उन्हें वृद्धाश्रम भेजने का निर्णय लिया जाता है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यही घटनाएं समाज के नैतिक मूल्यों में गिरावट का प्रतीक बन रही हैं।
सामाजिक बदलाव और पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से यह स्थिति उत्पन्न हो रही है, लेकिन हमें इसे बदलने की दिशा में काम करना होगा। विशेष रूप से, बच्चों को माता-पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझाना आवश्यक है, ताकि वे कभी भी उन्हें उपेक्षित या अपमानित न करें।
आवश्यकता एक प्रभावी कानून की
आज समाज में बढ़ते दुर्व्यवहार को रोकने के लिए एक प्रभावी कानून की आवश्यकता है। “माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक (अत्याचार, अपमान, और दुर्व्यवहार निवारण) विधेयक 2025” इस दिशा में एक अहम कदम हो सकता है। यह कानून माता-पिता और बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा करेगा और उन्हें अपने बच्चों से उचित सम्मान प्राप्त करने का अवसर देगा।
समाज में जागरूकता का प्रसार
माता-पिता के प्रति सम्मान और कृतज्ञता के भाव को बढ़ाने के लिए इस तरह के जन जागरण अभियानों की आवश्यकता है। यह अभियान केवल माता-पिता के सम्मान तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि समाज के हर व्यक्ति को इसके महत्व से अवगत कराना चाहिए। हर गांव, शहर और मोहल्ले में मातृ-पितृ पूजन दिवस का आयोजन किया जाना चाहिए ताकि यह संदेश हर व्यक्ति तक पहुंचे।
निष्कर्ष
मातृ-पितृ पूजन दिवस का आयोजन न केवल माता-पिता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है, बल्कि यह समाज में एक मजबूत नैतिक जागरूकता का निर्माण करने का भी माध्यम बन सकता है। बच्चों को अपने माता-पिता का सम्मान और देखभाल करना सिखाना चाहिए, क्योंकि माता-पिता ही हमें जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा देते हैं। उन्हें सम्मान देने से हम अपने जीवन में सफलता की नई ऊँचाइयाँ हासिल कर सकते हैं।
– संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यमा, सीए(एटीसी), एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र