सुरेश गोयल धूप वाला

25 दिसंबर का आज का दिन भारतीय इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। दो महापुरुषों का जन्म दिवस एक ही दिन होना बहुत ही संयोग बात होती है । ऐसा ही संयोग दो महापुरुषों  महान स्वंत्रता सेनानी पंडित मदन मोहन मालवीय व पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई के साथ भी जुड़ा है।भारतीय जनमानस में एक नारा “सत्यमेव जयते’ यानी सत्य की ही जीत होती है , उनका यह नारा बहुत ही लोकप्रिय है। पूरे देश में वे एक मात्र ऐसे अकेले व्यक्ति थे, जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से नवाजा गया। वे काशी हिंदू विश्वविद्द्यालय  के संस्थापक थे। 

25 दिसंबर 1861 को उनका जन्म प्रयागराज में हुआ। उनके पूज्य पिता का नाम ब्रजनाथ व माता का नाम मुन्ना देवी था। उनके पिता ने उनकी प्राम्भिक शिक्षा संस्कृत भाषा में दिलवाई, जबकि उस समय उर्दू, अरबी और फ़ारसी भाषा को अधिक महत्व दिया जाता था। दसवीं तक कि पढ़ाई उन्होंने इलहाबाद विश्वविद्दालय से की। वे पढ़ाई में बहुत ही मेधावी छात्र थे, इसी कारण उन्हें विद्धालय की ओर से छात्रवृति देकर आगे की पढ़ाई के लिए कलकत्ता विश्वविद्दालय में भेजा गया जहां से उन्होंने1884 में ग्रेजुएशन की।उनका विवाह 16 वर्ष की आयु में हो गया था।उन्होंने भारतीय संस्कृति को जीवन्तता देने हेतु समाज के प्रबुद्ध औऱ सम्पन्न लोगों को साथ लेकर काशी विश्वविद्दालय की स्थापना की।उन्होंने पुनः  विश्व में महान रहे नालन्दा व तक्षशिला विश्वविद्दालय की तर्ज पर महाविद्दालय का सपना संजोया ,जिसे उन्होंने पूरा किया। संसार में राष्ट्र की उन्नति उच्च शिक्षा के द्वारा ही संभव है , ऐसा उनका मानना था।उन्होंने राष्ट्र सेवा के साथ ही नवयुवकों में चरित्र निर्माण पर भी बल दिया।समाज सुधार व मातृ भाषा तथा भारत माता की सेवा में उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्हें हिन्दू राष्ट्रवादी सोच के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने बढ़ – चढ़ कर भाग लिया।वे हिंदी संस्कृत व अंग्रेजी भाषा के महा पंडित थे। वे हिंदुस्तान टाइम्स व दैनिक हिंदुस्तान के संपादक के रूप कार्य किया।उन्हें 2014 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।वे अपने सीधे औऱ सरल स्वभाव के लिए भी जाने जाते हैं। वे हमेशा भारत के स्वाभिमान के लिए जिए।

पंडित मदन मोहन मालवीय 1886 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लिया व कांग्रेस के साथ सक्रिय रूप से जुड़ गए। उन्हें चार बार कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया।

चोरा- चोरी के मामले में 177 स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी बतौर वकील वे अदालत में अपने तर्को द्वारा 156 स्वंत्रता सेनानियों को बरी करवा लिया था। उनकी ख्याति लगातार बढ़ती चली गई। 

 भारतीय राजनीति में वे कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति के कट्टर विरोधी थे। वे हमेशा सभी वर्गों की समानता के पक्षधर रहे।अल्पसंख्यकों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र प्रदान करने के साम्प्रदायिक पुरस्कार के विरोध में कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया और कांग्रेस नेशनलिस्ट पार्टी की स्थापना की।

वे अपने उत्कृष्ट कार्यो के कारण भारतीय इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए।

12 नवम्बर 1946 को 84 वर्ष की आयु में वारणसी में वैकुंठ सिधार गए। देश की जनता उन्हें हमेशा- हमेशा समरण रखेगी।

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