गुरुकुल में प्राकृतिक खेती किसान चौपाल चर्चा खेत के अवशेष खेत में ही रहने दें तो नहीं पड़ेगी खाद की जरूरत : कृषिमंत्री राणा। वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक कुरुक्षेत्र 20 दिसम्बर : किसानों को प्राकृतिक खेती और जैविक खेती के बीच अन्तर को समझना बेहद जरूरी है, कई किसान बन्धु प्राकृतिक खेती को भी जैविक/ऑर्गेनिक खेती मानकर इसे अपनाने में संकोच करते है जबकि यह जैविक खेती से बिल्कुल अलग और किसानों के लिए लाभप्रद है। उक्त शब्द आज गुरुकुल में आयोजित किसान चौपाल चर्चा में आए किसानों को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहे। देश के बड़े मीडिया संस्थान द्वारा कराये गये इस भव्य कार्यक्रम में हरियाणा के कृषिमंत्री श्याम सिंह राणा, विख्यात कृषि वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ. हरिओम, डॉ. बलजीत सहारण सहित प्राकृतिक खेती के विस्तार हेतु कार्यरत आईसीएआर के कई कृषि विशेषज्ञ और प्रगतिशील किसान मौजूद रहे। आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि देश में पिछले 40 वर्षों से जैविक खेती का प्रचार किया जा रहा है मगर आज तक कोई भी जैविक खेती का प्रभावी मॉडल नहीं बन पाया, इसके पीछे कारण कई हैं -जिस केंचुए द्वारा जैविक खाद बनाई जाती है वह विदेशी है और केवल गोबर खाता है, हैवी मेटल छोड़ता है। इसके अलावा जैविक खेती में खर्चा बहुत अधिक है और उत्पादन कम, जिस कारण यह खेती लोकप्रिय नहीं हुई। इसके विपरीत प्राकृतिक खेती में लागत बहुत कम है और उत्पादन पूरा, साथ ही किसान को प्राकृतिक उत्पाद का मूल्य भी डेढ़-दोगुणा मिलता है। प्राकृतिक खेती में किसान केवल एक देशी गाय के गोबर और गोमूत्र से 30 एकड़ भूमि पर खेती कर सकता है। किसान को बाजार से कोई खाद, कीटनाशक आदि खरीदने जरूरत ही नहीं पड़ती। राज्यपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देशभर में प्राकृतिक खेती का प्रचार-प्रसार जारी है और बड़ी संख्या में किसान प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं। गुजरात में 9 लाख से ज्यादा किसान प्राकृतिक खेती कर रहे है और आगामी दो वर्षों में यह आंकड़ा दोगुणा हो जाएगा। हरियाणा के कृषिमंत्री श्याम सिंह राणा ने भी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कही। मंत्री महोदय ने हरियाणा में प्राकृतिक खेती हेतु देशी गाय पालने वाले किसान को 30 हजार रूपये सहयोग राशि देने की घोषणा की। आचार्य की बात का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि प्रकृति से छेड़छाड़ के परिणाम हमेशा खतरनाक होते हैं, आज खेतों में उत्पादन बढ़ाने के लिए जो पेस्टीसाइड, यूरिया, डीएपी व कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है इसके दुष्परिणाम कैंसर, हार्टअटैक, बीपी, शुगर जैसी बीमारियों के रूप में हमारे सामने हैं। खेतों में कीटनाशक और यूरिया डाल-डालकर किसानों ने भूमि को बंजर बना दिया है वहीं पीने का पानी भी दूषित हो गया है, इससे बचने का एक ही उपाय है कि किसान प्रकृति के अनुरूप ही खेती करें अर्थात् प्राकृतिक खेती को अपनाएं। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि फसलों के अवशेष खेतों में ही डालें, उनमें आग न लगाए, ये अवशेष खेतों में खाद का काम करेंगे। इससे पूर्व गुरुकुल पहुंचने पर कृषिमंत्री महोदय का राज्यपाल द्वारा बुके देकर स्वागत किया गया। इसके बाद आचार्यश्री के साथ मंत्री महोदय ने गुरुकुल के फार्म का भ्रमण किया जहां पर 15 फीट से ऊंचे गन्ने को देखकर वे हैरत में पड़ गये। फार्म पर मंत्री श्याम सिंह राणा ने कमलम्, अमरूद, सेब, आम, लीची के बाग और हरी सब्जियों की फसलों पर विस्तार से चर्चा की। गुरुकुल के क्रेशर पर मंत्री महोदय और आचार्य ने गरम गुड़ का स्वाद चखा। फार्म के बाद सभी अतिथियों ने गुरुकुल की गोशाला, विद्यालय भवन, आर्ष महाविद्यालय तथा एन.डी.ए. ब्लॉक का भ्रमण किया। अंत में राज्यपालश्री आचार्य देवव्रत जी ने मंत्री महोदय को ‘ओ३म्’ का स्मृति-चिह्न और प्राकृतिक उत्पाद भेंट कर सम्मानित किया। इस अवसर पर गुरुकुल के प्रधान राजकुमार गर्ग, उप प्रधान मास्टर सतपाल काम्बोज, निदेशक बिग्रेडियर डॉ. प्रवीण कुमार, प्रिंसीपल डॉ. सूबे प्रताप, रामनिवास आर्य आदि मौजूद रहे। Post navigation आदेश के एम.डी. डा. गुणतास गिल हुए सेवा सम्मान अवार्ड से सम्मानित।