-कमलेश भारतीय

आज का युग डिजिटल युग है और उसमें मोबाइल का सबसे बड़ा योगदान है । मोबाइल ने जैसे हमारे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया । बच्चे बच्चे के हाथ में मोबाइल देखने को मिलता है बल्कि बच्चे को बिजी रखने के लिए उसके हाथ में मां बाप खुद मोबाइल सौंप देते हैं । यह नयी जेनरेशन‌ का स्टेट्स सिम्बल बन चुका है । इसके बिना भी क्या जीना ? एक वीडियो काफी बार देखने को मिला कि बच्चे के हाथ में जब तक मोबाइल है, वह खुश है, जैसे ही मोबाइल लिया वह टांगें पटक पटक कर रोता है। यह हालत कर दी है मोबाइल ने नयी जेनरेशन‌ की ! एक समय टीवी ने ऐसी हालत कर रखी थी और अब उसकी जगह ले ली मोबाइल ने ! इस मोबाइल के इतने इस्तेमाल की कीमत हम अनेक तरह से चुका रहे हैं । ताज़ा सर्वे में यह बात सामने आई है कि पैंतालिस से कम उम्र के 56 प्रतिशत लोगों को गर्दन के दर्द सहित अनेक तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । बच्चे भी परेशानियों के शिकार हो रहे हैं । पहली बात जो आम देखने को मिलती है कि बचपन में ही आंखों पर मोटे मोटे चश्मे आ गये हैं ! इसलिए सर्वे में यह सुझाव दिये गये कि घंटों एक ही पोजीशन में मोबाइल या लैपटॉप न चलायें, लगातार सोशल मीडिया की दुनिया में खोये न रहें, ज्यादा देर तक मोबाइल न देखते रहें, जिससे गर्दन टेढ़ी हो जायें ! मुझे यदि है कैथल से हमारे वरिष्ठ लेखक डाॅ अमृतलाल मदान ने इस पर एक उपन्यास ही लिख दिया था-टेढ़ी गर्दन‌ वाला शहर और अब तो सारे शहर क्या, गांव भी टेढ़ी गर्दन‌‌ वाले हो चुके हैं । इससे सिर्फ गर्दन ही नहीं पीठ दर्द व कमर दर्द की शिकायतें भी बढ़ती जा रही हैं ।

मोबाइल ने निसंदेह हमारे जीवन में क्रांति ला दी है और कोरोना जैसे कठिन दिनों में यह हमारा सबसे बड़ा साथी रहा लेकिन इसका इतना उपयोग न करें कि कमर, पीठ और गर्दन का इलाज करवाने लाइनों में लगना पड़े! तभी तो गुलज़ार ने लिखा कि
मेरे बच्चे के हाथ से गेंद‌ छीनकर
कोई उसे मोबाइल थमा गया है!
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी। 9416047075

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