टिकट की ट्रिक या ट्रिक से टिकट …… पॉलिटिकल ‘टिकट का शगुन’ कहीं पार्टी के लिए ‘ना बन जाए अपशगुन’

भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही अपने-अपने परिचितों को ट्रिक से टिकट

टिकट की ट्रिक और ट्रिक से टिकट हो सकती है पार्टी के लिए आत्मघाती

भाजपा और कांग्रेस पार्टी दोनों में ही शीर्ष स्तर पर परिचित और रिश्तेदार

फतह सिंह उजाला 

गुरुग्राम / पटौदी । पॉलिटिकल पीपल और लीडर सहित कार्यकर्ताओं में विश्वास हो कि अपनी ही पार्टी की सरकार बनना निश्चित है। ऐसे में एक ही प्राथमिकता होती है चुनाव के लिए टिकट प्राप्त किया जाना । हरियाणा सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों में ऐसे टिकट के दावेदारों की कमी नहीं जो किसी ने किसी ट्रिक से टिकट प्राप्त करना चाहते हैं। या टिकट के लिए कोई भी ट्रिक इस्तेमाल करने से परहेज नहीं । इस प्रकार के खेल में सबसे बड़ा खतरा यही है कि कहीं चुनाव के दौरान पॉलिटिकल टिकट का शगुन पार्टी के लिए अपशगुन ही ना बन जाए ? 

हरियाणा में भाजपा सत्ता की हैट्रिक बनाना चाह रही है । प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी पराजय की हैट्रिक को बनने से रोकने की रणनीति पर गंभीर है । दोनों ही पार्टियों में एक जैसे हालात दिखाई दे रहे हैं । वरिष्ठ नेता अपने किसी ने किसी परिजन को विरासत सौपने के साथ उत्तराधिकारी बनाने के लिए सक्रिय हैं। तो कहीं रिश्ते नातेदार चुनाव की टिकट के रूप में अपने नजदीकी लोगों को शगुन देने की रणनीति पर गंभीर होते दिखाई दे रहे हैं । भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में ऐसे टिकट के दावेदारों की कमी नहीं जो की एक ही परिवार से हैं या फिर बेहद निकट रिश्तेदारी में इनके संबंध है । राजनीति का एक पहलू यह भी है एक ही परिवार के लोग अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ते हुए एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी बने हुए भी दिखाई देते आ रहे हैं।

यह चर्चा आम है और खबरें भी सुर्खियां बन रही हैं, भारतीय जनता पार्टी हो या फिर कांग्रेस पार्टी हो। दोनों ही पार्टियों निकट रिश्तेदारों या फिर चुनाव की टिकट दिलवाले के बढ़ते जवाब को देखते हुए कहीं ना कहीं पॉलीटिकल प्रेशर में भी महसूस की जा रही है। इसका एक ही मुख्य कारण है, विधानसभा चुनाव में अधिक से अधिक विधानसभा सीट पर जीत कर चंडीगढ़ में अपनी पार्टी की सत्ता कायम की जा सके। इसी बीच लोगों में यह चर्चा भी है भाजपा हो या फिर कांग्रेस पार्टी, दोनों ही पार्टियों में ऐसे चेहरों की भी कमी नहीं जो कि अब एक प्रकार से पर्दे के पीछे जा चुके हैं और अपने निकट रिश्तेदारों या फिर परिजनों को टिकट के लिए आगे कर दिया गया है। इस प्रकार आगे किए गए चेहरे पिछले काफी वर्षों से न तो आम लोगों के बीच में पहुंचे हैं और न हीं किसी गंभीर समस्या को लेकर धरना प्रदर्शन करते हुए नजर आए हैं । सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अपनी अपनी पॉलिटिकल पार्टियों के कार्यक्रम में भी इस प्रकार के चेहरों के न तो हार्डिंग, ना पोस्टर, ना पंपलेट, ना ही फ्लेक्स इत्यादि दिखाई दिए हैं। ऐसे चेहरों को यदि टिकट का शगुन दे भी दिया तो, कहीं ना कहीं पार्टी के लिए यह अपशगुन ने बन जाए ?

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