न सरकार का चेहरा न संगठन के कर्ताधर्ता, फिर भी दक्षिणी हरियाणा में क्यों जरूरी है राव इंद्रजीत सिंह ?

तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के लिए भाजपा कर रही है गठबंधन

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में विधानसभा चुनाव के बीच केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की नाराजगी सुर्खियों में है। गुरुवार को दिल्ली में बीजेपी सेंट्रल इलेक्शन कमेटी की बैठक से पहले पार्टी के बड़े नेताओं ने इंद्रजीत के साथ बैठक की। कहा जा रहा है कि यह बैठक इंद्रजीत के मान-मनौव्वल को लेकर हुई थी। दिलचस्प बात है कि राव इंद्रजीत न तो सरकार के चेहरा हैं और न ही संगठन के कर्ता-धर्ता फिर भी बीजेपी उनकी नाराजगी को बीजेपी टेकेन फॉर ग्रांट न नहीं लेना चाहती है।

इंद्रजीत 3 वजहों से नाराज बताए जा रहे हैं. इनमें पहली वजह बेटी आरती को टिकट दिलाने की, दूसरी वजह अहीरवाल बेल्ट में दबदबा कायम करने की और तीसरी वजह चुनाव के जरिए अपना रसूख बनाए रखने की है।

राव इंद्रजीत सिंह कितने मजबूत नेता?

राव इंद्रजाीत सिंह को राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता राव बीरेंद्र सिंह हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे हैं। इंद्रजीत 1977 में पहली बार विधायक बने। 1982 में उन्हें हरियाणा सरकार में मंत्री बनाया गया। राव इसके बाद अहीरवाल बेल्ट की राजनीति में मजबूत पकड़ बनाने में जुट गए।

1998 में राव पहली बार सांसद चुने गए। सीट थी महेंद्रगढ़ की। राव इसके बाद से 6 बार सांसद रह चुके हैं। 2014 में उन्हें मोदी कैबिनेट में शामिल किया। 2019 और 2024 में भी वे मंत्री बने। वर्तमान में राव इंद्रजीत मोदी कैबिनेट में स्वतंत्र प्रभार के मंत्री हैं। उन्हें इस बात की पीड़ा है कि उन्हे राज्य मंत्री से ऊपर का दायित्व नहीं दिया गया।

अहीरवाल बेल्ट में विधानसभा की 20 सीटें

दिल्ली और राजस्थान की सीमा से सटे दक्षिण हरियाण के कुछ भागों को अहीरवाल बेल्ट कहा जाता है। अहीरवाल बेल्ट कहे जाने की मुख्य वजह इन इलाकों में अहीरों का दबदबा होना है। इस बेल्ट में मुख्य रूप से गुरुग्राम, रेवाड़ी, फरीदाबाद, महेंद्रगढ़, भिवानी, पलवल और नूंह जिले शामिल हैं।

वैसे तो पूरे हरियाणा में अहीर करीब 9 प्रतिशत के आसपास है, लेकिन अहीरवाल बेल्ट में यह संख्या बढ़कर 30 फीसद से भी ज्यादा हो जाता है।

2019 के विधानसभा चुनाव में अहीरवाल बेल्ट की करीब 20 सीटों पर बीजेपी को 12 पर जीत मिली थी। कांग्रेस यहां पर 5 सीटों पर सिमट गई थी। बीजेपी ने गुरुग्राम और पलवल में क्लीन स्विप किया था। रेवाड़ी में भी पार्टी का परफॉर्मेंस ठीक था। ये सभी इलाके राव इंद्रजीत सिंह के गढ़ माने जाते हैं।

2014 के चुनाव से पहले राव इंद्रजीत सिंह ने अहीरवाल बेल्ट के बूते ही हुड्डा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इंद्रजीत का कहना था कि हुड्डा की सरकार हरियाणा की नहीं रोहतक, सोनीपत और झज्जर की सरकार बनकर रह गई है।

इंद्रजीत की नाराजगी ने क्यों बढ़ाई टेंशन?

हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं, जिसमें सरकार बनाने का जादुई आंकड़ा 46 है। 2019 में बीजेपी को 40 सीटों पर जीत मिली थी। उस वक्त पार्टी जेजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। वर्तमान में दोनों का गठबंधन भी नहीं है।

2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को विधानसभा की 46 और बीजेपी को 44 सीटों पर बढ़त मिली है। कहा जा रहा है कि लोकसभा की तरह ही विधानसभा में भी मुकाबला कांटे की है। ऐसे में इंद्रजीत अगर नाराज होते हैं तो कम से कम 10 सीटों के रिजल्ट पर इसका असर पड़ेगा। इंद्रजीत जिस गुरुग्राम सीट से सांसद हैं, उसके अधीन विधानसभा की 9 सीटें हैं। इंद्रजीत को इनमें से 6 में बढ़त मिली थी।

तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के लिए भाजपा कर रही है गठबंधन

विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन की राजनीति पर आगे बढ़ती दिखाई देगी। एक-एक सीट जीतने की रणनीति तैयार कर रही भाजपा राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) और हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेगी। आरएलडी और हलोपा दोनों ही राष्ट्रीय जनतांत्रित गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा के नेतृत्व वाली हरियाणा जनचेतना पार्टी (हजपा) भी इसी गठबंधन का हिस्सा बन सकती है।

जयंत को मिलेगी जाट बाहुल्य सीट

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने वीरवार को इस नये संभावित गठबंधन पर चर्चा की। इस नतीजे पर पहुंची कि तीसरी बार सरकार में वापसी के लिए यह गठबंधन कारगर साबित हो सकता है। इन सभी क्षेत्रीय दलों के साथ भाजपा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। आरएलडी सुप्रीमो जयन्त चौधरी की पसंद की दो से चार सीटों पर भाजपा उनके उम्मीदवार उतार सकती है। ये सीटें जाट बाहुल्य होंगी।

जाट बीजेपी से नाराज

वहीं, सिरसा के विधायक गोपाल कांडा ने पहले दिन से हरियाणा की भाजपा सरकार को बिना शर्त समर्थन दे रखा है। उनके भाई गोबिंद कांडा भाजपा की राजनीति करते हैं। हलोपा के लिए करीब एक दर्जन सीटों पर दावेदारी जताई है।

संभावना है कि भाजपा उन्हें सिरसा व फतेहाबाद जिले की तीन से पांच सीटें दे सकती है। आरएलडी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से सटी हरियाणा की जाट आबादी वाली सीटें देने पर विचार चल रहा है। जाट भाजपा से नाराज बताए जाते हैं।

गैर जाट की राजनीति हवा

इसकी एक बड़ी वजह यह है कि भाजपा ने जाट नेतृत्व से सत्ता छीनते हुए पिछले 10 सालों में गैर जाट की राजनीति को ज्यादा हवा दी है। हालांकि भाजपा सरकार में जाट मंत्रियों की प्रभावी भूमिका रही और उसने जाटों को टिकट भी दिए, लेकिन जाट मुख्यमंत्री नहीं होने का दर्द उन्हें लगातार परेशान कर रहा है।

जाट मतदाता कांग्रेस की तरफ न मुड़ें, इसलिए भाजपा ने एक रणनीति के तहत जयन्त चौधरी को साथ मिलाकर चुनावी रण में नये समीकरणों का खाका बुना है।

गठजोड़ को लेकर धर्मेंद्र प्रधान के आवास पर चर्चा

हजपा की निगाह अंबाला व पंचकूला जिले की पांच से छह सीटों के साथ कुछ ब्राह्मण बाहुल्य सीटों पर है। भाजपा दो से तीन सीटें दे सकती है। मुख्य विवाद अंबाला शहर विधानसभा सीट को लेकर हो सकता है, जहां से भाजपा विधायक असीम गोयल राज्य सरकार में मंत्री हैं। भाजपा असीम और विनोद शर्मा के गिले-शिकवे दूर करवाकर बीच का रास्ता निकाल सकती है।

इस संभावित गठजोड़ को लेकर बुधवार रात केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के निवास पर चर्चा हुई है और वीरवार को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के आवास पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में इन समीकरणों पर आगे बढ़ने की सहमति दी जा चुकी है। अब सीटों के बंटवारे पर फैसला व गठबंधन की विधिवत घोषणा होनी बाकी है।

बीजेपी में होनी है टिकट की घोषणा

हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटों के लिए एक अक्टूबर को मतदान होना है। गुरुवार को टिकट फाइनल करने के लिए बीजेपी सेंट्रल इलेक्शन कमेटी की बैठक बुलाई गई थी। कहा जा रहा है कि इस बैठक में 50 से ज्यादा सीटों पर सहमति बन गई है। जल्द ही इसकी सूची प्रकाशित की जा सकती है।

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