मौका लगते ही एक के बाद एक कांटा निकालते गए हुड्डा, क्या हाई कमान बेबस?

एक के बाद एक अनेक विरोधी बाहर, ओर भी जाने को तैयार 

दीपेंद्र व शैलजा ने किया प्रत्याशियों का ऐलान

हुड्डा ने टिकटार्थियों का खड़ा किया हुजूम 

टिकट वितरण के बाद हो सकती है हरियाणा में बड़ी बगावत

ऋषि प्रकाश कौशिक 

हरियाणा में कांग्रेस का मतलब भूपेंद्र सिंह हुड्डा है। लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों के चयन से लेकर उन्हें चुनाव लड़वाने तक, कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने जिस तरह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फ्री हैंड दिया, उस देखकर तो यही लग रहा है। एक साथ कई मोर्चों पर राजनीति करने वाले हुड्डा कांग्रेस हाईकमान के इस भरोसे पर खरे भी उतरे। नौ लोकसभा सीटों में से पांच पर कांग्रेस चुनाव जीती और इनमें कुमारी सैलजा को छोड़कर बाकी चार सांसद हुड्डा खेमे के हैं। हुड्डा पर कांग्रेस हाईकमान का भरोसा सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहा। हरियाणा में बनाई गई दो कमेटियों में हुड्डा समर्थकों का बोलबाला है। हरियाणा में अब से 2 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। राज्य में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं।

हरियाणा वह राज्य जहां कांग्रेस को मिले जमकर वोट

उत्तर भारत में कांग्रेस शासित राज्यों में हरियाणा ऐसा प्रदेश है, जहां कांग्रेस को सबसे अधिक वोट मिले। लोकसभा चुनाव में मिली इस जीत के बाद अब यह तय माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में भी हुड्डा को फ्री हैंड दिया जा सकता है। यहां सवाल यह है कि क्या भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस की बजाय खुद को मजबूत कर रहे हैं। या कांग्रेसी शीर्ष नेतृत्व की मजबूरी है उनको ढ़ोना। अभी हाल ही में जब उन्होंने यह कहा कि यह उनका आखिरी चुनाव है तब राहुल गांधी ने उनके समक्ष तंज किया था कि राजा अमरिंदर सिंह भी पंजाब में ऐसा ही रहते थे। वर्तमान में राहुल गांधी की राजनीति को देखकर ऐसा नहीं लगता की हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का एकक्षत्र साम्राज्य होगा? राज्यसभा चुनाव को लेकर भी भुपेंद्र हुड्डा की भूमिका पर उंगलियां उठाई जा रही है। कुमारी शैलजा तथा रणदीप सुरजेवाला की यात्राओं को लेकर लोगों का कुछ ऐसा ही ख्याल है। 

वैसे हरियाणा के कांग्रेसियों को लेकर नित्य नए संशय से खड़े हो रहे हैं। कुमारी शैली जाने नारनौंद में डाक्टर अजय चौधरी को प्रत्याशी घोषित किया। पर इससे पहले उम्मीदवार घोषित करने में दीपेंद्र सिंह हुड्डा आगे रहे। उन्होंने लोकसभा चुनाव जीते जाने के बाद बेरी की एक जनसभा में डॉक्टर रघुवीर कादियान को उम्मीदवार घोषित किया था। यह दोनों घोषणाएं शीर्ष नेतृत्व की अवहेलना है या वर्चस्व की होड़?

हुड्डा विरोधी खेमे के नेताओं को कांग्रेस हाईकमान का हुड्डा के प्रति यह रुख बिल्कुल भी पसंद नहीं है। इसलिए हुड्डा के विरुद्ध लगातार लामबंदियां होती रही और हुड्डा अपने विरुद्ध बुने गए चक्रव्यूह को बड़ी आसानी से भेदने में कामयाब होते रहे। हुड्डा को जब भी मौका मिला, उन्होंने या तो अपने विरोधियों को कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया या फिर कांग्रेस में उन्हें किनारे लगा दिया। 

एसआरके ग्रुप टूट गया है

किरण चौधरी की भाजपा में एंट्री के बाद अब हुड्डा के विरुद्ध बनाए गए एसआरके गुट भी टूट गया है। इस गुट में अब एस यानी सैलजा और आर यानी रणदीप सुरजेवाला रह गए हैं तथा के यानी किरण इस गुट से आउट हो गई, जबकि बीरेंद्र सिंह यदि इस गुट में जुड़ते हैं तो उसका नया नाम एसआरबी जरूर हो सकता है। रणदीप सुरजेवाला ने भी रविवार को अपनी यात्राएं शुरू करके नया संदेश देने की कोशिश की है। इससे पूर्व कुमारी शैलजा ने अपनी यात्रा निकाली हुई है।

प्रदेश में पिछले 10 साल से कांग्रेस का आज तक संगठन नहीं बन पाया है, लेकिन बिना संगठन के भी हुड्डा ने चुनाव लड़े और हाईकमान को उसके नतीजे दिए। बिना संगठन के विधानसभा चुनाव में कितनी सफलता मिलेगी कि यह अभी देखना बाकी है। वैसे संगठन न बनने से आम कार्यकर्ता मायूस है। राजनीतिक विश्लेषकों क्या का यह भी कहना है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भय है कि यदि संगठन की घोषणा कर दी गई तो उनके आदमी उनसे छिटक ना जाए।

10 वर्षों में अनेक बड़े नेताओं ने छोड़ी कांग्रेस

अलबत्ता, जो लोग भूपेंद्र सिंह हुड्डा का विरोध कर रहे थे, वह एक-एक कर पार्टी से जरूर बाहर होते चले गए। हरियाणा में पिछले 10 वर्षों के दौर पर नजर मारी जाए तो कांग्रेस के अनेक बड़े नेता पार्टी को छोड़कर जा चुके हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में शुरू हुआ यह सिलसिला आजतक जारी है। अब जैसे ही टिकट वितरण की घोषणा होगी तो कांग्रेस में बड़ी बगावत होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। हर सीट पर एक दर्जन से अधिक टिकटार्थी देखने को मिल रहे हैं। स्वाभाविक है की टिकट तो किसी एक ही को मिलनी है। बाकी दावेदार टिकट ने मिलने पर कांग्रेस को कितना मजबूत करेंगे यह एक खुला सवाल है। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जानबूझकर भीड़ इकट्ठा करके कांग्रेस को मजबूत करने की बजाय खुद को मजबूत किया है।

कांग्रेस के सीएम पद के प्रबल दावेदार कौन?

सबसे पहले हुड्डा के भाई एवं राजनीतिक विरोधी चौधरी बीरेंद्र सिंह ने बगावत का झंडा उठाया था। दक्षिण हरियाणा के वरिष्ठ नेता राव इंद्रजीत ने सबसे पहले कांग्रेस को अलविदा बोला, जिसके बाद बीरेंद्र सिंह भाजपाई हुए। राव इंद्रजीत और बीरेंद्र सिंह दोनो ही कांग्रेस में सीएम पद के प्रबल दावेदार थे। 

इसी दौरान भिवानी के सांसद धर्मबीर, सोनीपत के पूर्व सांसद रमेश कौशिक तथा करनाल के पूर्व सांसद डॉ. अरविंद शर्मा कांग्रेस को अलविदा कह गए। पूर्व महिला प्रदेश अध्यक्ष सुमेत्रा चौहान ने कांग्रेस छोड़ दी।

हालांकि तीनों भाजपा में जाकर सांसद बने। कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए अशोक तंवर की हुड्डा खेमे के आगे एक नहीं चली। तंवर ने जैसे-तैसे अपना कार्यकाल तो पूरा किया लेकिन बढ़ते तनाव व दबाव के चलते उन्होंने भी कांग्रेस को छोडने में ही भलाई समझी। किरण चौधरी व उनकी बेटी श्रुति चौधरी ने भी हुड्डा से परेशान होकर भाजपा की सदस्यता ले ली। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई भाजपा के रंग में रंगकर कांग्रेस छोड़ चुके हैं। भाजपा में अशोक तंवर व किरण चौधरी का राजनीतिक करियर अभी भी  डांवाडोल है। उन्हें कोई बड़ी जिम्मेवारी नहीं दी गई है।

वर्ष 2005 में हुड्डा सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाने वाले विनोद शर्मा भी इस समय भाजपा के साथ है। दक्षिण हरियाणा में कांग्रेस का प्रतिष्ठित व नामी चेहरा रहे अवतार सिंह भड़ाना भाजपा में आ चुके हैं। किरण चौधरी कांग्रेस की ऐसी दसवीं नेता हैं, जो अब भाजपा में शामिल हुई हैं।

श्रुति चौधरी ने कांग्रेस को बताया स्‍वार्थी

श्रुति चौधरी ने भी अपने इस्‍तीफे में हरियाणा कांग्रेस पर दुर्व्‍यवहार करने के आरोप लगाते हुए त्‍यागपत्र दिया। श्रुति ने कहा कि हरियाणा में कांग्रेस पार्टी स्‍वार्थी हो गई है और मैं अपने हितों से समझौता नहीं कर सकती। इसलिए अब मेरे लिए आगे बढ़ने का समय है ताकि मैं अपने लोगों के हितों को बनाए रख सकूं।

कांग्रेस हाईकमान भी बेबस

2016 में राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के 14 विधायकों ने गलत तरीके से वोटिंग की थी। विधायकों की इस गलती का खामियाजा कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार को भुगतना पड़ा था। इस मामले में हुड्डा निशाने पर आए थे, क्योंकि गलती करने वाले अधिकांश विधायक उन्हीं के करीबी थे।

शुरुआत में कांग्रेस हाईकमान ने इस पर जांच करने और कठोर कार्रवाई की बात कही थी, लेकिन बाद में मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

दूसरा मामला 2019 के लोकसभा चुनाव बाद देखने को मिला। गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में कांग्रेस के 23 नेताओं ने पार्टी हाईकमान खासकर राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस जी-23 में हुड्डा भी शामिल थे।

हुड्डा का दबाव काम आया और पार्टी ने उन्हें हरियाणा में फ्री-हैंड दे दिया। इसके बाद से ही हरियाणा में हुड्डा काफी प्रभावी हैं।

तीसरा मामला इसी साल देखने को मिला है। प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया ने चुनाव से पहले संगठन को नए सिरे से बनाने की बात कही थी, जिसके बाद कई जगहों पर विवाद हो गया। यह विवाद हुड्डा और अन्य गुटों के बीच हुआ। विवाद इतना बढ़ा कि बाबरिया को अपने कार्यक्रम रद्द करने पड़े। इस घटना के बाद बाबरिया ने संगठन तैयार करने की जहमत नहीं उठाई।

कांग्रेस हाईकमान भी इन्वॉल्व

माना जाता है कि राज्य में कांग्रेस हाईकमान के लेवल पर भी लोग बंटे हुए हैं। राहुल गांधी का जिन नेताओं पर हाथ होता है उसे हुड्डा टार्गेट करते रहे हैं। अशोक तंवर का किस्सा मशहूर है राज्य में। यही कारण है हुड्डा को राहुल बिल्कुल पसंद नहीं करते। पर राज्य के लोग और कांग्रेसी मानते हैं कि हुड्डा पर राबर्ट वाड्रा और प्रियंका गांधी का हाथ है। राजनीतिक विश्वेषक कहते हैं कि हरियाणा में लोग ऐसा ही समझते हैं। हमने लोकसभा चुनावों के दौरान देखा कि प्रियंका हो या राहुल रोड़ शो या रैली करने दोनों ही रोहतक नहीं पहुंचे। गौरतलब है कि रोहतक से भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र हुड्डा चुनाव लड़ रहे थे। प्रियंका गांधी ने सिरसा में शैलजा के लिए रोड़ शो किया पर दीपेंद्र के लिए टाइम नहीं निकाला। इसी तरह राहुल महेंद्रगढ़ और सोनीपत में गए पर दीपेंद्र के लिए समय नहीं निकाला। राहुल नाराज न हो जाएं शायद इसलिए प्रियंका रोहतक नहीं गईं होंगी। 

हरियाणा की बागडोर जिस तरह दीपक बावरिया और अजय माकन को सौंपी गई है उसको लेकर भी संशय है की चुनाव तक हुड्डा को जोड़ कर रखा जाए। इसी आशंका से भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी ग्रस्त हैं और वह अधिक से अधिक अपने उम्मीदवार उतारने के चक्कर में हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का तो यह भी कहना है कि वह चाहते हैं कि कांग्रेस के उम्मीदवार कब जीते निर्दलीय ज्यादा जीत के आए ताकि वह उनके बलबूते पर अपनी जरूरत का एहसास शीर्ष नेतृत्व को करवा सके। राज्यसभा सीट को लेकर भी उनके ऊपर उंगलियां उठ रही है।

बीरेंद्र सिंह की हो चुकी घर वापसी, हुड्डा की राह में रोड़ा बीरेंद्र सिंह – शैलजा व सुरजेवाला

चौधरी बीरेंद्र सिंह भाजपा में कामयाब पारी खेलने के बाद दोबारा कांग्रेस में आ चुके हैं। लोकसभा चुनाव में उनके पुत्र को टिकट नहीं दिया गया पर अब ऐसा आंकलन किया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में उनका बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। हुडा अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने में लगे हैं वहीं उनकी राह में चौधरी बीरेंद्र सिंह, कुमारी शैलजा व रणदीप सुरजेवाला सीएम की दावेदारी ठोंक रहे हैं। कांग्रेस का अतीत का इतिहास बताता है कि जिस नेता की लीडरशिप में चुनाव लड़ा जाता है बाद में उसको दरकिनार कर दिया जाता है। बंसीलाल भजनलाल इसके बड़े उदाहरण है। कुमारी शैलजा ने भी कहा है कि मुख्यमंत्री हाई कमान तय करेगा।

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