भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन 2014 और 2019 में गुरुग्राम जिले की चारों सीटों में से एक सीट भी कांग्रेस नहीं जीत पाई। इसके कारण पर हमने अनेक लोगों से बात की, जिनसे कुछ निकलकर सामने आईं। प्रस्तुत करते हैं, आप देखिए इनमें कितनी सच्चाई है।

2009 के चुनाव में गुरुग्राम में कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार धर्मबीर गाबा थे, जबकि सुखबीर कटारिया निर्दलीय लड़े थे। परिणाम सुखबीर कटारिया के पक्ष में आया। इस पर पंजाबी हलके में चर्चा चली कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अंदरखाने सुखबीर कटारिया की मदद की है। बादशाहपुर से राव धर्मपाल विजयी हुए थे, सोहना से चौ. धर्मबीर जीते थे और पटौदी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार भूपेंद्र चौधरी थे लेकिन यहां से इनेलो के गंगाराम विजयी हुए थे। इसके पीछे कारण यह बताया गया था कि राव इंद्रजीत सिंह ने गंगाराम की मदद की है।

2009 के चुनाव के बाद गुरुग्राम का परिदृश्य बदलता चला गया। पंजाबी वर्ग कांग्रेस से छिटक गया और रही-सही कमी 2014 में तब पूरी हो गई जब राव इंद्रजीत सिंह भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मनमुटाव के कारण कांग्रेस छोड़ भाजपा में गए तो अहीर समुदाय भी हुड्डा साहब से रुष्ट हो गया और उसी के परिणाम 2014 और 2019 में सामने आए।

2014 की बात अगर छोड़ भी दें, क्योंकि उसका कारण कहीं मोदी लहर को भी माना जा सकता है लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कैप्टन अजय ने गुरुग्राम से लगभग 42000 हजार वोट प्राप्त किए थे, जबकि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार चौ. सुखबीर कटारिया थे। चौ. सुखबीर कटारिया 2014 में भी उम्मीदवार थे जब उमेश अग्रवाल रिकॉर्ड मतों से जीते थे लेकिन उसे तो मोदी लहर कहकर अपनी हार का पल्ला झाड़ लिया था लेकिन 2019 में जब कांग्रेस का उम्मीदवार पहले दो स्थानों पर भी नहीं रहा और लोकसभा उम्मीदवार से लगभग आधे वोट आए तो यह स्पष्ट हो गया कि यहां की जनता में कांग्रेस के प्रति नहीं अपितु भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रति नफरत है।

आज भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस के कॉर्डिनेटर्स की बैठक बुलाई, इसमें हरियाणा मांगे हिसाब की चर्चा की और दावा किया कि अगली सरकार हम पूर्ण बहुमत से बनाएंगे। इस पर गुरुग्राम के अनेक कांग्रेसियों का भी कहना है कि यह हुड्डा साहब की बैठक थी, कांग्रेस की नहीं। कुछ नेता जो कुमारी शैलजा के साथ जुड़े हैं, उन्हें इस बैठक का ज्ञान भी नहीं था। ऐसे में जब कांग्रेस एक तो पहले ही गुरुग्राम जिले में बैकफुट पर है और बैकफुट पर तभी है जब कमजोर है और कमजोर होने पर भी टुकड़ों में बंटी है। ऐसे में यह बात गले उतरती नहीं कि चाहे कितना ही जनता भाजपा से खफा हो, फिर भी हुड्डा साहब का उम्मीदवार विजयी प्राप्त करेगा।

अब इससे आगे की सुनो, जो कांग्रेसी हुड्डा साहब के साथ हैं, उनमें भी आपस में मेल नहीं है। फिर भी एक-दूसरे को कमजोर करने की चेष्टा में लगे हैं, ऐसा उनकी कार्यशैली से आभास होता है और उससे बड़ी बात, यह सबकुछ शायद हुड्डा साहब जानते हैं, तभी आज यह कार्यक्रम अचानक किया और इसमें चुनिंदा पत्रकारों को ही बुलाया गया। जो पत्रकार उनसे स्वतंत्र रूप से सवाल पूछे ऐसे पत्रकारों से भी दूरी बनाकर रखी है। यक्ष प्रश्न क्या कांग्रेस गुरुग्राम में अपना खाता खोल पाएगी?

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