क्या अपना संगठन बनाएंगे?

क्या ब्राह्मणों को अपनी ओर आकर्षित कर पाएंगे?

क्या पार्टी में अनुशासन बना पाएंगे?

जिन भाजपा कार्यकर्ताओं ने लोकसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में कार्य नहीं किया, उन्हें सजा दे पाएंगे?

क्या जनता से संपर्क बनाने की हिम्मत जुटा पाएंगे?

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। जबसे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ को प्रधान पद से हटा नायब सैनी को प्रदेश प्रधान की जिम्मेदारी दी, तबसे ही भाजपा संगठन एक हो नहीं पाया। अभी संगठन को संभालने की तैयारी में नायब लगे ही थे लेकिन उनकी पर्ची मुख्यमंत्री की आ गई। उनके पास मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों के पद आ गए। ऐसे में संगठन के साथ न्याय तो नहीं हो पा रहा था। उसी को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल और वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सैनी के चहेते मोहन लाल बडोली को प्रदेश प्रधान की जिम्मेदारी दे दी गई। अब विधानसभा चुनाव में थोड़ा ही समय है, जबकि संगठन बनाने की प्रक्रिया में भी दो से तीन माह लग जाते हैं। तो बड़ा सवाल भाजपा कार्यकर्ताओं में चर्चा का विषय बना हुआ है कि क्या मोहन लाल बडोली अपना संगठन बनाएंगे? या पूर्व संगठन से ही कार्य चलाएंगे।

चुनाव के समय यूं तो पूरे देश में लेकिन हरियाणा में विशेष रूप से जातीय समीकरण बनाए जाते हैं तो उनको देखते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिस प्रकार हमारे सांसद अरविंद शर्मा चुनाव हार गए थे, इससे पार्टी को लगा कि ब्राह्मण हमसे दूर जा रहा है और इसी को देखते हुए प्रदेश अध्यक्ष की पर्ची मोहन लाल बडोली (कौशिक) को दी गई।

अब बड़ा प्रश्न यह है कि मोहन लाल बडोली का विगत ऐसा रहा है कि ब्राह्मण उन्हें अपना पैरोकार मान लें? कुछ भाजपाई ब्राह्मण एकत्र थे तो उनका कहना था कि वह क्या ब्राह्मणों का भला करेगा, जो अपने नाम के साथ अपना गोत्र लगाने की बजाय अपने गांव का नाम लगाता है। क्या उसे मोहन लाल कौशिक लिखने में शर्म आती थी? और फिर आज तक उन्होंने ब्राह्मणों के पक्ष में कोई कार्य किया है या उन पर कोई ध्यान दिया है? तो ब्राह्मण किस भरोसे पर उनके साथ आएंगे? जबकि दूसरे स्थापित ब्राह्मण नेता को भाजपा ने उपेक्षित कर रखा है। अब तक जो भी उनके ब्यान आए हैं, उनमें पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल, मुख्यमंत्री नायब सैनी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कसीदे पढऩे के अतिरिक्त कांग्रेस को गालियां देने के ही आए हैं। अब ऐसे में उत्सुकता रहेगी कि क्या ब्राह्मण भाजपा से जुड़ पाएगा?

वर्तमान में भाजपा पार्टी के कार्यकर्ताओं में अनुशासन की कमी आई है, जिसका प्रमाण यह है कि अभी चुनाव की घोषणा भी नहीं हुई है लेकिन हर विधानसभा क्षेत्र में कहीं एक, कहीं दो तो कहीं चार व्यक्तियों ने चुनावी कार्यालय खोल लिए हैं तो प्रश्न यही उठ रहा है कि क्या यह अनुशासन का उल्लंघन नहीं? लेकिन इसके उत्तर में एक भाजपाई ने बताया कि सर्वप्रथम यह कार्य मुख्यमंत्री के चहेते पूर्व ओएसडी जवाहर यादव ने किया था। उनकी देखन-देख अन्य भी करने लग गए, क्योंकि भाजपाईयों को विश्वास है कि नायब सैनी या मोहन लाल बडोली इतनी हिम्मत नहीं दिखा सकते कि जवाहर यादव पर कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही करें। खैर, जो भी है चर्चाएं हैं। उत्सुकता यही रहेगी कि चुनाव के समय तक क्या भाजपा में फिर अनुशासन आ जाएगा? या अनुशासनहीनता बढ़ती जाएगी?

अब एक और बड़ा प्रश्न है कि लोकसभा चुनाव के पश्चात भाजपा संगठन की ओर से ही कहा गया था कि 5 या 8 जिला अध्यक्षों को बदला जाएगा, जिसने लोकसभा में पार्टी के विरूद्ध कार्य किया, उन्हें अनुशासनहीनता के लिए दंडित किया जाएगा। दूर की क्यों बात करें, खुद मोहन लाल बडोली ने अपनी हार के बाद आरोप लगाए थे कि वहीं की विधायिका और अन्य भाजपाईयों ने उन्हें हराने के लिए कार्य किया है। इसी प्रकार ऊर्जा मंत्री चौ. रणजीत सिंह ने भी पार्टी के शीर्ष नेताओं को अपनी हार के लिए जिम्मेदार बताया था। बड़ा यक्ष प्रश्न है कि अब तो मोहन लाल बडोली खुद पार्टी के अध्यक्ष हैं, क्या उन लोगों पर कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही करेंगे? या अपने सरपरस्तों पूर्व मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री की सलाहों में उन सब बातों को भूल जाएंगे?

मैं स्वयं अपना उदाहरण देता हूं। जबसे वह बने हैं, तबसे मैं इनसे संपर्क साधने का निरंतर प्रयास कर रहा हूं। कई बार तो दिन में 15-20 बार भी फोन किए हैं। कभी-कभी इनका पीए फोन उठाता है और कह देता है कि मैं 15 मिनट बाद आपसे बात कराता हूं लेकिन कोई बात अब तक तो संभव हुई नहीं। शायद बात हो जाती तो मैंने जो ऊपर लिखा है, उसमें माननीय प्रदेश अध्यक्ष बडोली जी का भी वर्जन होता। अत: बड़ा सवाल यह है कि जब वह पत्रकारों से ही कटे रहेंगे तो जनता की बात कैसे सुनेंगे? क्योंकि पत्रकार कोई अपने निजी स्वार्थ के लिए तो बात करता नहीं है, जनता की बात ही उनसे पूछता है। अत: यह कहा जा सकता है कि अब चुनाव में बहुत थोड़ा समय रह गया है। अत: कार्यकर्ताओं की मीटिंग और अपने उच्च अधिकारियों की बातें सुनने से ही उन्हें समय नहीं मिल पाएगा। एक प्रश्न और भाजपा कार्यकर्ता करते हैं कि जो अपने गृह क्षेत्र की जनता को ही अपनी बात नहीं समझा सका, वह प्रदेश की जनता को क्या समझाएगा?

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