पंजाबी क्षेत्र में भी नहीं मिली जीत !

कांग्रेस कार्यकर्ताओ और समर्थको ने बताया कि स्थानीय नेता अच्छा प्रदर्शन कर सकते थे।

गुरुग्राम : हाल ही में देश के आम चुनाव सम्पन्न हुए। देश में एन डी ए की मिली जुली सरकार बन गयी। कांग्रेस पार्टी के पास बहुत मुद्दे थे, पर कांग्रेस उन मुद्दों को लोगो के बीच लाने और उन्हे समझाने में नाकाम रही। इस चुनाव में कई अहम सीट कांग्रेस हार गयी। जैसे गुरुग्राम लोकसभा की सीट। गुरुग्राम की जनता सांसद राव इंद्रजीत के कार्यो से खुश न थी,जनता ने बदलाव का मन बना लिया था पर फिर भी कांग्रेस आम जनता से वोट बटोरने में फेल हो गयी।

हुड्डा के चुनावी दौरे से भी गुरुग्राम में जाटो की सरकार के सन्देश से दूसरी जातियों ने बनाई कांग्रेस से दूरी।

चुनावी समय पर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने गुरुग्राम, पटौदी में रैली की। माहौल को कांग्रेस की तरफ करने और कांग्रेस में एक जुटता की बजाय, कांग्रेस में जाट समुदाय का माहौल बन गया, जिस से दूसरे समुदाय और जातियों जैसे ब्राह्मण, पंजाबी, बनिया, सैनी, दलित आदि के लोगो ने कांग्रेस से दूरी बनानी शुरू की, जिस की वजह से कांगेस को मुस्लिमो और जाटो के वोट तो मिले, पर दूसरी जातियों के वोट लेने में नाकाम रही। अगर हरियाणा में पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को जातीय आधार पर देखें तो बीजेपी को सबसे ज्‍यादा वोट गैर जाट समुदायों से मिला है। जाटों से म‍िले वोट का आंकड़ा सबसे कम (मुसलमानों के बाद) है। 2014 में जहां गैर जाट समुदाय ने बीजेपी को 48% वोट दिया था तो 2019 में यह बढ़कर 74% हो गया।

राजनीतिक दलों से मिले आंकड़ों के मुताबिक, हरियाणा में जाट समाज की आबादी 22% है। दलित समुदाय की आबादी 21%, ओबीसी की आबादी 30%, ब्राह्मण समुदाय की आबादी 8%, वैश्य 5%, पंजाबी 8%, राजपूत 3.5%, मुस्लिम 3.5% व शेष अन्य जातियों की आबादी है। जिस में कांग्रेस भूपेंद्र हुड्डा के पसंदीदा नेताओ को टिकट मिली। हा, कुमारी  सैलजा को एक टिकट सिरसा और जय प्रकाश को हिसार से टिकट मिली, जिस पर हुड्डा ने कोई रैली नही की और वे दोनों ही अच्छे मार्जिन से अपनी अपनी सीट से जीते। लोगो की माने तो कांग्रेस में कई जगह जाटो के अलावा दूसरी जातियों के नेताओ को कम एहमियत दी जाती है, यही कारण है कि गुरुग्राम से ज़मीनी तौर पर जुड़े कैप्टन अजय यादव की टिकट काट कर भूपेंद्र हुड्डा के करीबी राज बब्बर को दे दी। लोगो ने ये भी कहा कि अगर अजय यादव और राज बब्बर को देखे तो अजय यादव ज्यादा मजबूत स्थानीय नेता है। वे पिछले 6 बार के विधायक व हरियाणा सरकार मंत्री रहे है, उसके बाद उनका बेटा चिरंजीव राव रेवाड़ी से विधायक है। उनका अपना वोटबैंक है। वही अगर बात राज बब्बर की की जाए तो वे 2009 के आम चुनाव हारे, 2014 का चुनाव ग़ाज़ियाबाद से जनरल वीके सिंह से हारे, 2019 का चुनाव हारे और अब 2024 का भी चुनाव हारे। हा, 2009 का उपचुनाव जरूर जीते थे। और कांग्रेस उनपर इतनी मेहरबान है कि पहले राज बब्बर को अप का अध्यक्ष और उसके बाद उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद भी बनाया। पर उसका की फायदा चुनाव में नहीं मिल सका।

कुछ पंजाबी स्थानीय नेताओ ने भी चुनाव में सिर्फ फोटोशूट तक कार्य किया। और राज बब्बर और कांग्रेस पार्टी को गुमराह किया। लोगो ने देखते ही कहा कि ऐसा लग रहा था कि गुरुग्राम के नेता कांग्रेस के प्रचार का और अपना नाम चमकाने में ज्यादा लगे हुए थे। जैसे देखने को आया कि गोल्ड सूक, गुरुग्राम के मॉल में दुकानदारों के साथ अनूप सोनी को मिलवाया, जिस का कोई फायदा नही था। क्यों कि ज्यादतर वहा पर काम करने वाले गुरुग्राम के बाहर के थे। कुछ यही हाल डी एल एफ गैलैरिया मार्केट का, जहाँ शशि थरूर के साथ प्रचार किया। और एक बाइक रैली निकाली जो लेज़र वेल्ली गार्डन से प्रतीक बब्बर के साथ की। ये वो फ्लॉफ शो थे, जिन्होंने चुनावी माहौल में कांग्रेस का कीमती वक़्त खराब किया। जिस का खामियाज़ा कांग्रेस की जीती हुई सीट हार गयी।

लोगो ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा कांग्रेस गारंटी कार्ड और मैनिफेस्टो बाँटने चाहिए थे, देखने को आया की कुछ स्थानीय नेता फेविकोल की तरह चिपके हर मंच पर राज बब्बर और उनके परिवार वालो के साथ सिर्फ फोटो शूट और मीडिया को कवरेज देते ही नज़र आये।

गुरुग्राम लोकसभा चुनाव हारने के बाद नेताओ, कार्येकर्ताओ, समर्थको और आम लोगो की अलग अलग प्रतिक्रियाएँ आना शुरू हो गयी है।

सूत्रों की माने तो आम जनता ने बदलाव का मन बना लिया था, पर ज्यादातर कांग्रेस नेता आम जनता को मिले ही नही। कांग्रेस का चुनावी मेनिफ़ेस्टो आम जनता तक नही पहुंचा। कांग्रेस गारंटी कार्ड भी उमीदवार के नॉमिनेशन भरने के कई दिन बाद गुरुग्राम ऑफिस में उपलब्ध हुआ जो आम जनता तक बहुत कम पहुंचा।

डोर टू डोर की बात करे तो इका दुका जगह पर कुछ स्थानीय नेताओ ने डोर टु डोर किया, जिनको कॉंग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओ ने कोई सहायता नहीं की। मुन्यादि के लिए भी शहर में वाहन दिखे ही नहीं।

कार्येकर्ताओ के मुताबिक बाहरी होने के कारण अहीर वोट बहुत कम पड़ी। वही बात अगर पंजाबी वोट की हो तो राज बब्बर का जादू नही चला। बरसों से कांग्रेस पार्टी की जो अपनी पंजाबी वोट थी, वही पड़ी। चुनावी रेलियॉ में स्थानीय नेताओ को दरकिनार किया गया। जिस का खमियाज़ा चुनाव में वोट नही मिली।

आम जनता की माने तो सुखबीर कटारिया के अलावा गुरुग्राम के किसी और नेता के पास अपना जनाधार नही है, तो वे वोट कहा से बटोरते। जनता ने बताया कि कांग्रेस को कांग्रेसी पंजाबी वरिष्ठ नेता स्वर्गीय धर्मबीर गाबा जैसे नेता की जरूरत है। इस चुनाव में राज बब्बर को पंजाबी नेता के तोर पर कांग्रेस ने उतारा, रैलियों में भी कुछ असर हुआ, पर पंजाबी वोटरो ने राज बब्बर को नकार दिया, यही कारण है कि पंजाबी इलाको में कांग्रेस को पंजाबी वोट नही मिला।

आम जनता और कुछ कार्यकर्ताओ ने बताया कि कांग्रेस इस बार जीत सकती थी, अगर वे कैप्टन अजय यादव को टिकट देती। कैप्टन अजय यादव ने 2019 में अच्छा प्रदर्शन किया था। और पांच साल में उन्होंने काफी मेहनत की। आम जनता के सुख दुःख के भागीदार बने। जब मोदी की हवा चल रही थी, वे ही एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने रेवाड़ी की विधायक सीट कांग्रेस की झोली में डाली थी। साथ ही उनकी कांग्रेस के कार्यकर्ताओ के साथ गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र और अहीरवाल में अच्छी पकड़ है। कई स्थानीय मुद्दों पर आम जनता की आवाज बनते रहे है। उनको न टिकट देकर कांग्रेस को हार मिली।

वही कई कार्यकर्ताओ ने बताया कि हार का कारण कुछ हद तक आम आदमी पार्टी से गठबंधन भी है। जिसकी वजह से कांग्रेस की वोट बीजेपी को गयी। आम जनता नशे और भ्रष्टाचार के खिलाफ है। कांग्रेस पार्टी ने ही सबसे पहले अरविंद केजरीवाल सरकार के शराब नीति का विरोध किया और मांग की कि जाँच हो। अगर आज कांग्रेस आम आदमी पार्टी के साथ न होती तो उसको वोटो का नुकसान न होता। क्यों कि साथ होने के कारण जनता में गलत संदेश गया। और जो वोट नशे और भ्रष्टाचार के विरोध में पड़ने थे, वह सब कांग्रेस को नही मिले।

कई स्थानीय नेताओ से बात से पता चला कि ज्यादातर रैलियों में मंच संचालन कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी को देना महंगा पड़ा। जिस जिस रैली में आम आदमी पार्टी ने मंच संचालन किया, उन क्षेत्रों में आने वाले बूथों पर कांग्रेस को सबसे कम वोट मिली। इस लिए अगर आगे आने वाले चुनाव जीतने है तो कांग्रेस को अपनी रणनीति को सुधारना होगा।

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