बिना कानूनी मान्यता के प्रदेश के  मुख्यमंत्री द्वारा एच.एस.एस.सी. चेयरमैन को शपथ  दिलाना अपने आप में अजीबोगरीब– एडवोकेट 

दिसम्बर, 2004 में चौटाला सरकार  ने  हालांकि   बनाया  एच.एस.एस.सी. कानून परन्तु    मार्च, 2005 में   हुड्डा सरकार ने सत्ता संभालते ही  कर दिया निरस्त 

आज तक हरियाणा सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा समय समय पर जारी अधिसूचनाओं से ही  चल रहा आयोग

चंडीगढ़ –  शनिवार 8 जून हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी द्वारा हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (एच.एस.एस.सी.) के नए चेयरमैन के तौर पर हिम्मत सिंह को पद और निष्ठा की शपथ दिलाई  गई  जिनकी नियुक्ति नोटिफिकेशन‌ शुक्रवार 7 जून को ही प्रदेश के मुख्य सचिव‌ द्वारा जारी‌ की गई थी.  उनकी नियुक्ति 3 वर्ष के लिए की गई है. हिम्मत  इससे  पूर्व प्रदेश के एडवोकेट  जनरल – ए.जी.  (महाधिवक्ता)  कार्यालय  में   बतौर एडिशनल एडवोकेट जनरल के तौर पर तैनात  थे. 

हालांकि हिम्मत का नाम  एच.एस.एस.सी. के नए चेयरमैन के हेतू  गत अप्रैल महीने में ही फाइनल कर दिया गया था परंतु  16  मार्च से देश भर में 18 वीं लोकसभा आम चुनाव के दृष्टिगत आदर्श आचार संहिता लागू  होने के फलस्वरूप  तब उनकी नियुक्ति‌ नहीं हो सकी  हालांकि प्रदेश सरकार ने चुनाव आयोग से इस बारे अनुमति भी मांगी थी.

चूँकि हिम्मत सिंह रोड़ वर्ग से   हैं इसलिए गत अप्रैल माह में चेयरमैन के तौर पर घोषित उनकी प्रस्तावित नियुक्ति  को राजनैतिक लाभ  के तौर पर भी देखा गया  चूँकि  करनाल ज़िले में रोड़ समाज के लोग (मतदाता) अधिक संख्या में है और करनाल से पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल लोकसभा सांसद का चुनाव लड़ रहे थे. जबकि प्रदेश के  मुख्यमंत्री नायब सैनी स्वयं भी करनाल विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ रहे थे. दोनों ही चुनाव‌ में  विजयी हुए हैं.

बहरहाल, इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि मौजूदा लागू व्यवस्था अनुसार एच.एस.एस.सी. में चेयरमैन  को मिलाकर कुल सात सदस्य हो सकते हैं जिनका चयन तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाता है जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री, प्रदेश के मुख्य सचिव और प्रदेश के विधि परामर्शी (एल.आर. ) अर्थात विधि एवं विधायी विभाग के प्रधान सचिव  तीनो सदस्य होते है. 

यहाँ यह भी ध्यान करने योग्य है कि क्या उपरोक्त तीन सदस्यीय कमेटी ने केवल एच.एस.एस.सी. चेयरमैन के तौर पर हिम्मत सिंह‌ का चयन किया या आयोग में अधिकतम छः अन्य सदस्यों का भी. जहाँ तक  आयोग में ताजा तौर पर केवल चेयरमैन की नियुक्ति करने का विषय है, इस पर‌ हेमंत का कहना है कि चेयरमैन और अधिकतम‌ 6 अन्य सदस्यों की नियुक्ति से ही  आयोग का विधिवत गठन‌ होता है, अकेला चेयरमैन आयोग द्वारा विभिन्न सरकारी पदों के लिए पूर्ण की गई चयन प्रक्रिया उपरांत घोषित परिणाम ( रिजल्ट) पर‌ हस्ताक्षर  नहीं कर सकता है बल्कि उस पर आयोग के सभी सदस्यों के  हस्ताक्षर भी अनिवार्य  हैं. 

हेमंत ने आगे बताया कि ऐसा सुनने और पढ़ने में भले ही  आश्चर्यजनक प्रतीत हो परन्तु सत्य यही है कि प्रदेश में  आज तक लाखों  सरकारी कर्मचारियों (राजकीय विभागों के अतिरिक्त प्रदेश  के  सरकारी  बोर्डों, निगमों आदि हेतु  भी ) के लिए चयन करने वाले हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग —  एच.एस.एस.सी. (पूर्व नाम अधीनस्थ सेवाएं चयन बोर्ड –एस.एस.एस.बी.) को वर्तमान तौर पर  कानूनी दर्जा ही प्राप्त नहीं है और यह आयोग  प्रदेश  के मुख्यमंत्री के सीधे अधीन आने वाले  जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ( सामान्य प्रशासन) विभाग  (मानव संसाधन- एच.आर. शाखा )  के एक अधीनस्थ कार्यालय के तौर पर काम  कर रहा है.  इसका संचालन  54  वर्षो पूर्व जनवरी, 1970 को  तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा   जारी एक गजट नोटिफिकेशन से,  जिसमें आज तक समय समय पर सम्बंधित राज्य सरकारों द्वारा  मनमर्जी से सैंकड़ों बदलाव किये जाते रहे हैं, से ही किया जा रहा है. 

6 वर्ष पूर्व 2018 में हेमंत ने  हरियाणा सरकार  को  नोटिस भेजकर एस.एस.एस.बी.  संबंधी हरियाणा सरकार द्वारा  जारी  अधिसूचनाओं‌ में भारत के संविधान के अनुच्छेद 309 का उल्लेख किए जाने पर कानूनी प्रश्न चिन्ह उठाया  था हालांकि आज तक इस सम्बन्ध में  उन्हें प्रदेश  सरकार से कोई  जवाब प्राप्त नहीं हुआ है.      

इस सम्बन्ध में हेमंत ने  बताया कि संविधान के उक्त अनुच्छेद 309  में केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के  सरकारी कर्मचारियों की भर्ती एवं सेवा सम्बन्धी अधिनियम एवं नियम बनाने का प्रावधान है एवं किसी भी प्रकार से भी इस अनुच्छेद के तहत सरकारी कर्मचारियों के लिए  कोई  चयन एजेंसी अर्थात बोर्ड या आयोग गठित नहीं किया जा सकता है.  केंद्र सरकार द्वारा भी अपने कर्मचारी चयन आयोग (स्टाफ सिलेक्शन कमीशन ) जिसे पहले अधीनस्थ सेवाएं आयोग (सबोर्डिनेट सर्विसेज कमीशन ) कहा जाता था का सर्वप्रथम  गठन इंदिरा गाँधी सरकार दौरान नवंबर 1975 में भारत सरकार के कार्मिक विभाग के  रेसोलुशन  द्वारा किया गया था. इसके बाद मई, 1999 में वाजपेयी सरकार द्वारा कर्मचारी चयन आयोग  का  पुनर्गठन भी  कार्मिक मंत्रालय के नए रेसोलुशन द्वारा किया गया अर्थात दोनों बार इसके गठन में संविधान के अनुच्छेद 309 का प्रयोग एवं उल्लेख कहीं नहीं किया गया जिससे स्पष्ट होता है कि हरियाणा द्वारा उक्त प्रावधान में हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग का गठन कानूनी तौर एवं संवैधानिक दृष्टि से  उचित नहीं है. हालांकि जहाँ तक हरियाणा लोक सेवा आयोग (एच.पी.एस.सी.) का विषय है,  तो  उसके लिए संविधान के अनुच्छेद 315 में स्पष्ट उल्लेख मौजूद  है.

एडवोकेट ने  आगे   बताया कि साढ़े  19 वर्ष पूर्व  दिसंबर,2004 में हरियाणा कि तत्कालीन चौटाला सरकार ने प्रदेश  विधानसभा मार्फ़त   हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग अधिनियम, 2004 बनवा एच.एस.एस.सी. को वैधानिक (कानूनी )  मान्यता प्रदान की थी परन्तु तीन माह बाद ही  मार्च, 2005 में  जब भूपेंद्र  हुड्डा  प्रदेश के मुख्यमंत्री बने,  तो उन्होंने नई  विधानसभा के पहले ही सत्र  में  हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (निरसन ) विधेयक, 2005 सदन से पारित करवाकर  आयोग को मिला कानूनी दर्जा समाप्त करवा दिया था. हालांकि इसके लिए  दोनों सरकारों (मुख्यमंत्रियों ) की अपनी अपनी मजबूरी थी. चौटाला चाहते थे कि वर्ष  2005 विधानसभा आम चुनावो के बाद  अगर उनके  हाथ से  सत्ता चली गयी, तो इसके बावजूद   उनके द्वारा नियुक्त  आयोग के चेयरमैन और सदस्य अपने अपने  पद पर कायम रह सकें  जबकि हुड्डा जब मुख्यमंत्री बने तो वह चौटाला सरकार द्वारा नियुक्त आयोग के  चेयरमैन और सदस्य हटाकर  अपनी मनमर्जी के चेयरमैन और सदस्य नियुक्त करना चाहते थे. 

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री  मनोहर लाल खट्टर  के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने अपने साढ़े नौ वर्षो के लम्बे कार्यकाल में भी हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के लिए विधानसभा मार्फ़त ताज़ा कानून नहीं बनवाया. 

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