वानप्रस्थ संस्था ने धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया विश्व पर्यावरण दिवस “पर्यावरण बचाने के लिए पौधारोपण अतिआवश्यक” – प्रो: कुलबीर सिंह बांगड़वा डा: जे. के . डाँग, महासचिव…… वानप्रस्थ सीनियर सिटिज़न क्लब, हिसार, 6 जून – वानप्रस्थ सीनियर सिटिज़न क्लब में विश्व पर्यावरण दिवस बड़े उत्साह से मनाया गया ।कार्यक्रम का शुभारंभ क्लब प्रांगण में प्कंपोस्ट पिट ( खाद का गड्ढा) तैयार करके किया गया । सदस्यों ने सूखे पत्ते एवं हरी सब्ज़ियां के अवशेष डाल कर किया ताकि क्लब के पार्क की खाद की आपूर्ति के लिए जैविक खाद तैयार की जा सके। सदस्यों ने इस अवसर पर गमलों में विभिन्न प्रकार के पौधे भी लगाए। पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया । मंच संचालन करते हुए डा: सुनीता शिओकंद ने कहा कि विश्व पर्यावरण दिवस विश्व में जागरुकता के लिए एवं व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयास को प्रेरित करने के लिए अति महत्वपूर्ण है । उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर लगभग 40 प्रतिशत भूमि क्षरण हो चुकी है ।भूमि क्षरण एक गंभीर समस्या है जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है । उन्होने कहा अत्याधिक खेती, संस्थानों का अनुचित प्रयोग एवं प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में कमी आ रही है । पर्यावरण दिवस की शुरुआत का निर्णय संयुक्त राष्ट्र महासंघ द्वारा 1972 में स्टाकहोम में आयोजित सम्मेलन में लिया गया था। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर डा: कुलवीर सिंह बाँगड़वा का स्वागत करते हुए क्लब के महासचिव डॉ जे . के . डाँग ने कहा कि विश्व पर्यावरण दिवस भारत सहित अनेक देशों में 5 जून को मनाया जाता है ।पर्यावरण के मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ाने सकारात्मक पर्यावरण प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है ।संगोष्ठी में बोलते हुए डॉ बाँगड़वा ने कहा कि इस वर्ष का थीम भूमि पुनर्स्थापन , मरुस्थलीकरण सूखा सहनशीलता पर केंद्रित है। डा : बाँगड़वा ने एक पुरानी प्रसिद्ध फ़िल्म “ आमदनी अठन्नी ख़र्चा रुपैया “ को याद करते हुए कहा कि प्रकृति जो एक वर्ष में उत्पन्न करती है , उसे हम सात मास में ख़त्म कर देते हैं ।प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है परंतु हम इसका दोहन करने के बजाय हम इसका शोषण कर रहे हैं । उन्होने वर्तमान में संसाधनों के शोषण की तुलना अठारहवीं शताब्दी में जोधपुर के खजडेली गाँव में खेजड़ी वृक्षों को बचाने के लिए 363- पुरुष, महिलाओं और बच्चों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया था , से की । उन्होंने भारत में हरित क्रांति के परिणामों की चर्चा करते हुए कहा कि अब “सदा हरित क्रांति “ की आवश्यकता है ।उन्होंने भूमि पुनर्स्थापन , मरुस्थलीकरण और सूखा सहनशीलता की अवधारणा को व्यवहारिक उदाहरणों से दिया । उन्होंने कहा कि इसमें हम कैसे योगदान कर सकते हैं , पर विस्तारपूर्वक चर्चा की । उन्होने कृषि वानिकी , सामाजिक वानिकी और वृक्षारोपण पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जलवायु , स्थान और मिट्टी की संरचना और बनावट के अनुसार पौधे लगाने चाहिए । उन्होंने कहा कि वर्षा ऋतु में वनमहोत्सव मे पौधारौपन अभियान के लिए क्लब का पूरा सहयोग करेंगे। इस अवसर पर क्लब की जानी -,मानी कवियत्री श्रीमती राज गर्ग ने पर्यावरण पर एक भावुक स्वरचित कविता के माध्यम से अपने विचार रखे।कविता के बोल कुछ इस प्रकार थे- “मेरे घर के बाहर एक घना छायादार पेड़ था,फल भी बहुत मीठे थे,कइ परिंदे उस पर गुज़र बसर करते थे।ना जाने किसकी नज़र लगी,या जहरीली हो गई हवाएंबिना मौसम आया पतझड़, बाहर देखा,बदहवास हुए पक्षी इधर उधर भाग रहे थे…..” दूरदर्शन हिसार के भूतपूर्व निदेशक श्री अजीत सिंह ने पौधारोपण पर कवि श्री शिव कुमार बटालवी की पंजाबी कविता सुनाकर खूब वाह वाह लूटी। कविता के बोल देखिए :- ” कुझ रुख ( पौधे) मैनू पुत लगदे ने,कुझ रुख लगदेमांवां।कुझ रुख नूहां धीयां लगदे ,कुझ रुख वाँगभरावां ।कुझ रुख मेरे बाबे वाकणपत्तर टावां टावां।कुझ रुख मेरी दादी वरगे,चूरी पावन कावां। कुझ रुख यारां वरगे लगदे,चूमा ते गल लावां।इक मेरी महबूबा वाकण,मिठा अते दुखावां।कुझ रुख मेरा दिल करदा ऐ,मोढे चुक खिडावां ।कुझ रुख मेरा दिल करदा ऐ,चूमा ते मर जांवां।कुझ रुख जद वी रल के झुमन,तेज़ वगन जद वावां ( हवा)सावी बोली सभ रुखां दी,दिल करदा लिख जावां।मेरा वी एह दिल करदा एरुख दी जूने आवां।जे तुसीं मेरा गीत है सुनना,मैं रुखां विच गावां ।रुख तां मेरी मां वरगे ने,जिऊं रुखां दीयांछांवां” इस कविता के माध्यम से कवि ने पौधों को अपने बच्चों से भी अधिक प्यारा दिखाया है। इस संगोष्ठी मे श्री अजीत सिंह, डा: ए. एल . खुराना ,डा: एस . एस गहलावत , श्रीमती सुनीता महतानी एवं श्रमती इंद्रा संगवान सहित कई अन्य सदस्यों ने भी अपने विचार रखे । संगोष्ठी के समापन पर क्लब की उपप्रधान डा: सुनीता शिओकंद ने डा : बाँगड़वा का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह व्याखान आज के संदर्भ में अति व्यावहारिक है और किसान और हम सब इस को अपने जलवायु और आवशकतायों के अनुरूप अपना कर पर्यावरण के शोषण को बचा सकते हैं। इस संगोष्ठी में लगभग 40 सदस्यों ने भाग लिया । Post navigation एकतरफा राजनीति का दौर खत्म …….. चुनाव के मैदान में प्रतिस्पर्धा लौटेगी, संसदीय परंपराओं का बढ़ेगा सम्मान कंगना को थप्पड़, खूनी दौर का संकेत …….