हरियाणा विधानसभा की  सदस्य संख्या घटकर हुई 87, बहुमत के लिए 44 विधायक आवश्यक

भाजपा के 40 एवं हलोपा के गोपाल कांडा और एक निर्दलीय नयन पाल रावत को मिलाकर सरकार के पास कुल  42

हालांकि स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता  केवल मत बराबर होने की परिस्थिति में डाल सकते हैं  निर्णायक वोट 

4 जून को करनाल वि.स. उपचुनाव नतीजे  के साथ-साथ  लोकसभा चुनाव लड़ रहे 5 मौजूदा विधायकों के चुनाव परिणाम तक रानजीतिक संशय कायम  — एडवोकेट हेमंत कुमार  

चंडीगढ़ –  शनिवार 25 मई को 18 वी लोकसभा आम चुनाव  के छठे चरण में हरियाणा में सभी 10 लोकसभा सीटो पर हुए मतदान के दिन मौजूदा 14वी हरियाणा विधानसभा में गुरुग्राम जिले की बादशाहपुर वि.स. सीट से निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद के  आकस्मिक निधन से प्रदेश की अढ़ाई माह पुरानी नायब सैनी सरकार के सदन में बहुमत  पर एक बार पुन: सवाल उठ गया है.  

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट और विधायी एवं संवैधानिक मामलों के जानकार हेमंत कुमार (9416887788) ने बताया कि निर्दलीय विधायक दौलताबाद के निधन से 25 मई से 

मौजूदा  हरियाणा विधानसभा की सदस्य संख्या एक और घटकर 87 हो गयी है. 

कुल 90 सदस्यी हरियाणा विधानसभा की सदस्य संख्या बीती 13 मार्च को सर्वप्रथम एक घटकर 89 हो गयी थी जब पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मुख्यमंत्री पद से हटने के अगले ही दिन करनाल वि.स. सीट के विधायक पद से त्यागपत्र दे दिया था जिसे विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) ज्ञान चन्द गुप्ता ने उसी दिन से स्वीकार कर लिया  उसके डेढ़ माह बाद 30 अप्रैल को स्पीकर ने  सिरसा जिले की रानियां सीट से  निर्दलीय विधायक रहे  रणजीत चौटाला,जो हालांकि  आज भी  मौजूदा  नायब सैनी  सरकार में  बिजली एवं जेल मंत्री  हैं, का  24 मार्च की पिछली तारीख से  विधायक पद से इस्तीफ़ा स्वीकार  कर दिया चूँकि 24 मार्च को रणजीत भाजपा में शामिल हो गये थे. बहरहाल, इससे सदन की संख्या एक और घटकर 88 हो गयी थी.18वी लोकसभा आम चुनाव में मनोहर लाल करनाल लोकसभा सीट और रणजीत सिंह हिसार लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार है.

बहरहाल, अब 25 मई निर्दलीय राकेश दौलताबाद के निधन के बाद वर्तमान हरियाणा विधानसभा की सदस्य संख्या 88 से एक और घटकर 87 हो गयी थी जिससे सदन में बहुमत का आंकड़ा 45 से घटकर आज की तारीख में 44 हो गया है. 

हेमंत ने बताया कि अढाई माह पूर्व 12 मार्च को जब मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सैनी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया, तब उस सरकार को भाजपा के तत्कालीन 41 विधायकों (स्पीकर को मिलाकर), छ: निर्दलीय और एक हलोपा (हरियाणा लोकहित पार्टी) के विधायक गोपाल कांडा अर्थात कुल 48 विधायकों का समर्थन हासिल था. सर्वप्रथम मनोहर लाल और फिर रणजीत सिंह के त्यागपत्र के बाद और इसी माह के आरम्भ में भाजपा सरकार को  समर्थन कर रहे तीन निर्दलीय विधायकों — करनाल की नीलोखेड़ी  से धर्म पाल गोंदर, कैथल की पुण्डरी  से रणधीर सिंह गोलन और चरखी दादरी जिले की दादरी  से सोमबीर सांगवान ने मौजूदा सरकार से समर्थन वापिस लेने के ऐलान  के बाद (हालांकि कुछ तकनीकी कारणों  से  फिलहाल राज्यपाल और स्पीकर  को इस बारे  में आधिकारिक तौर पर सूचित किया जाना  लंबित है) नायब सैनी सरकार को समर्थ कर रहे विधायकों की संख्या घटकर 43 हो गयी थी जिसके बाद  कांग्रेस एवं जजपा  द्वारा  दावा किया गया  हरियाणा की भाजपा सरकार अल्पमत में आ गई है और प्रदेश में तत्काल राष्ट्रपति शासन लागू कर तुरन्त ताज़ा विधानसभा चुनाव करवाए जाने चाहिए. अब 25 मई को सरकार को समर्थन कर रहे 2 निर्दलीय विधायकों में से एक दौलताबाद के निधन के बाद अब सरकार के पास कुल 42 विधायकों का ही समर्थन बचा है. 

बहरहाल, हेमंत का यह भी कहना है कि आगामी 4 जून को जब न  केवल करनाल विधानसभा सीट के उपचुनाव का नतीजा आएगा जिसमें मुख्यमंत्री नायब सैनी भाजपा उम्मीदवार हैं और अगर वह चुनाव जीतकर विधायक बनते हैं, तो सदन में भाजपा के विधायकों की संख्या बढ़कर फिर से  41 हो जायेगी बल्कि  चूँकि  मौजूदा विधानसभा  के पांच विधायक – कांग्रेस से वरुण मुलाना और राव दान सिंह, भाजपा से मोहनलाल बडोली, इनेलो से अभय चौटाला और जजपा से नैना सिंह चौटाला भी लोकसभा सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं और अगर इनमें से एक या दो या अधिक जीतकर सांसद बनते हैं तो उन्हें निर्धारित समय में विधायक का पद छोड़ना होगा जिसके बाद  विधानसभा के वर्तमान अंकगणित में और  बदलाव हो सकता है एवं इस कारण तब तक राजनीतिक संशय बना रहेगा. 

इसी बीच हेमंत ने आज पुनः बताया कि बेशक 87 सदस्यी मौजूदा हरियाणा  विधानसभा में  नायब सैनी सरकार को वर्तमान में समर्थन कर रहे कुल 42 विधायकों का आंकड़ा प्रथम द्रष्टया अल्पमत प्रतीत हो  परन्तु क्या वह वास्तव में यह  अल्पमत है, वह सदन में मतदान के दौरान ही साबित  हो सकता है क्योंकि सदन में विश्वास प्रस्ताव अथवा विपक्षी द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव  दौरान हुई वोटिंग में  पार्टी व्हिप जारी होने बावजूद एवं  दल -बदल विरोधी कानून में सदन की सदस्यता से अयोग्यता का खतरा होने बावजूद विपक्षी दल के विधायक न केवल सदन से  अनुपस्थित रह सकते हैं बल्कि अपनी पार्टी के विरूद्ध  क्रॉस वोटिंग भी कर सकते है. पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा कुछ दिन पूर्व  बयान दिया गया था कि जजपा और कांग्रेस के कुछ विधायक उनके संपर्क में है. हाल ही में जजपा के दो विधायक – जोगीराम सिहाग और राम निवास के विरूद्ध उन्ही की पार्टी जजपा ने ही स्पीकर के समक्ष दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत याचिका दायर की क्योंकि वह लोकसभा आम चुनाव में  भाजपा उम्मीदवार का समर्थन कर रहे थे.

 हेमंत ने एक और रोचक जानकारी देते हुए बताया कि मौजूदा हरियाणा विधानसभा में बेशक भाजपा के 40 सदस्य (विधायक ) हैं परन्तु  संवैधानिक रूप से   प्राथमिक तौर पर  39 भाजपा  विधायक ही नायब सैनी सरकार के पक्ष में (अगर विश्वास प्रस्ताव  हो ) और विरोध में ( अगर अविश्वास प्रस्ताव हो ) ही वोट कर सकते हैं क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 189 (1) के अनुसार विधानसभा स्पीकर केवल  सदन में किसी प्रस्ताव पर मत बराबर होने की परिस्थिति में ही  अपना निर्णायक मत (कास्टिंग वोट ) दे सकता है. इसी प्रकार अगर  मुख्यमंत्री नायब सैनी 4 जून को  करनाल वि.स. उपचुनाव जीतकर   भाजपा विधायक बनते हैं, तब भी सदन में भाजपा की तकनीकी  संख्या 41 नहीं बल्कि  40 ही मानी जायेगी.  

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