आखिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी क्यों नही चाहते कि राहूल रोहतक लोकसभा में रैली करेगें

युवाओं का पसंद नही आ रहा कांग्रेस का चुनावी घोषणा पत्र, धरातल पर संभव नही है काग्रेस का घोषणा पत्र

ऋषिप्रकाश कौशिक/ भारत सारथी

मात्र दो सप्ताह के बाद ही मतदान के तारीख होने से चुनाव प्रचार अब अपने पूरे तापमान पर है। लोकसभा चुनाव में सभी ने अपने अपने स्तर पर बागड़ोर संभाली हुई है। प्रदेश की सबसे चर्चा में रहने वाली हॉट सीट है रोहतक। इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का जहां राजनैतिक भविष्य दांव पर लगा है तो भाजपा भी विधान सभा में तीसरी बार का सपना पूरा करने के लिए रोहतक जीतना चाह रही है। ऐसे में चुनाव में कड़े मुकाबले की संभावना से इंकार नही किया जा सकता है।

भाजपा की शहरों में पहले ही अच्छी पकड़ और मनोहर की बिना पर्ची खर्ची जहां गांव में जहां अरविंद शर्मा को मजबूती दे रही है वहीं दीपेंद्र खुद के कामों पर अपने लिये वोट की अपील कर रहे है। कड़े मुकाबले में फंसे इस सीट पर अब निर्णायक भूमिका कांग्रेस और भाजपा हाईकमान के नेताओं की रैलियों पर रहने वाले है। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी ने रोहतक में पांच साल पहले आज के दिन यानि 10 मई को आयोजित रैली में जिस प्रकार जीत का माहौल बना गये थे बता दे कि उससे पहले अरविंद शर्मा का चुनाव काफी पीछे चल रहा था। पिछले चुनाव में जहां अरविंद शर्मा एक दम नये खिलाड़ी थे रोहतक में और उनका स्थानीय कार्यकर्ताओं में कुछ खास मेल मिलाप नही था लेकिन अब अरविंद शर्मा यहां पिछले पांच साल से काम कर रहे है और मोदी के सहारे ही चुनाव लड़ रहे है वहीं बाढ़सा एम्स, 152 डी, महम हांसी रेलवे लाईन, राम मंदिर, धारा 370 जैसे मुद्दो को तो बता ही रहे साथ में प्रदेश सरकार की नीतियों का बखान कर रहे है।

वहीं दीपेंद्र हुड्डा अपने कार्यकाल के शासन की बात तो कर रहे है लेकिन आगामी भविष्य की योजना बताने से कतरा रहे है। कांग्रेस प्रत्याशी दीपेंद्र हुड्डा भले ही सोशल मीडिया पर काफी बढ़त बना रहे है लेकिन वे यहां भी भाजपा की आईटी सैल और भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा ट्रोल किये जा रहे है। भाजपा आईटी सैल द्वारा उनका मनोहर लाल खट्टर के विरोध में दिये गये बयान को शहरी मतदाता विशेषकर पंजाबी मतदाताओं को भेजा जा रहा है। वहीं अब दीपेंद्र हुड्डा का कांग्रेस के घोषणा पत्र पर कम बात करना भी चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि घोषणा पत्र में जहां राहूल की सोच के अनुसार जहां जातिगत जनगणना की बात का बार बार दोहरा कर उनको हक देने की बात की है। कांग्रेस के घोषणा पत्र पर बात न करने के कारण को राजनैतिक लोग यही मान रहे है कि ओबीसी समाज एकतरफा नायब सिंह सैनी के मुख्यमंत्री बनने से भाजपा की ओर जाता दिखाई देता है और दीपेंद्र हुड्डा की राजनीति अब जाट वोटरों के इर्द-गिर्द घुमती दिखाई देती है तो ऐसे में राहूल गांधी की रैली वो लोकसभा में करवाकर किसी प्रकार की आफत मोल लेना नही चाहते।

कांग्रेस का घोषणा पत्र का जिक्र हरियाणा से बाहर भले ही हो लेकिन हरियाणा की राजनीति से कांग्रेस का घोषणा पत्र बाहर हो चुका है। हरियाणा में लोकसभा चुनाव का कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी बनता जा रहा है। हरियाणा की राजनीति जागरूकता के बारे में स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है देश में सबसे ज्यादा जागरूक मतदाता हरियाणा प्रदेश का है। प्रदेश का मतदाता लोक लुभावनी घोषणाओं पर कभी विश्वास नही करता क्योंकि 2016 के जाट आरक्षण के बाद भी रोहतक जाटलैंड में भाजपा का ब्राह्मण प्रत्याशी जितना लोगों की जागरूकता का ही परिणाम कहा जा सकता है। कांग्रेस के घोषणा पत्र को हरियाणा के पढ़े लिखे युवाओं ने सिरे से नकार दिया है साथ ही युवाओं का कहना है कि राहूल गांधी ने देश की अर्थव्यस्था को समझे बिना ही घोषणा पत्र जारी कर दिया। कांग्रेस के घोषणा पत्र पर युवाओं का कहना है कि महालक्ष्मी जैसी योजनाएं किसी भी आधार पर संभव ही नही है। एमएसपी गांरटी जैसी योजनाओं के लिए देश के पूरे सिस्टम को बदलाव की जरूरत है ऐसे में इन घोषणाओं का क्या फायदा है। सार यही है कि कांग्रेस का घोषणा पत्र हरियाणा कांग्रेस को कोई फायदा देने की अपेक्षा बाधा बन न जाये इसलिए कांग्रेस के नेता राहूल गांधी की रैलियों से भी परहेज कर रहे है और उनके घोषणा पत्र पर चर्चा करने से बच रहे है।

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