हर पद पर हुड्डा की मनमानी के चलते कांग्रेस एक बार फिर खा सकती है हिचकोला
ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरूग्राम – अक्सर कंपनियों में कुछ लोग ऐसे इन्ट्री करते है कि सबसे पहले वो कंपनी के मालिक को भरोसे में लेता है और धीरे धीरे सारी कंपनी की जिम्मेदारी लेनी शुरू कर देता है और साथ ही वो अपने समकक्षों को भी निपटाना शुरू कर देता है ताकि प्रमोशन में कोई उसका प्रतिद्वंद्वी ही न बचे। अपने प्रतिद्वंद्वियों को निपटाने के साथ साथ वो कंपनी में अपने भी कुछ साथी ऐसे रख लेता है ताकि विकट स्थिती में वो खुद उस संगठन को चला सके या खुद की कंपनी खोल ले। यह सब उन व्यवसायिक संस्थानों में अक्सर होता है जिसके मालिक अपने व्यवसाय के प्रति सजग नही रहते । अममुन कई बार ऐसा भी देखा गया कि उसके मातहत कर्मचारी ही उस कंपनी को ले उड़े या उसके बराबर में अपना झंडा फहरा बैठे। ऐसा ही कुछ कुछ कारनाम पूर्व मुख्यमत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस पार्टी के साथ कर दिखाया। मुख्यमंत्री बनने से पहले वे कांग्रेस पार्टी की ओर से सासंद बनते आ रहे थे। वो चौधरी भजनलाल के कारण मुख्यमंत्री की दौड़ में नही थे और किसी को भी पता नही था कि कांग्रेस उनको मुख्यमंत्री बनायेगी क्योंकि 2004 का विधान सभा चुनाव चौधरी भजनलाल की अगुवाई में लड़ा गया था। लेकिन भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा ने सबसे पहले कांग्रेस हाईकमान को साध कर ंभजनलाल को हटवा कर मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली। भजनलाल का कांग्रेस द्वारा इस प्रकार हाशिये पर ड़ालना और हुड्डा को सीएम बनाना ही कांग्रेस को पतन की ओर ले जाने की कहानी शुरू करता है।


भजनलाल के जाने और हुड्डा को कमान मिलते ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। उन्होंनें हाईकमान को तो खुश रखा लेकिन उन्होंनें इस बात को समझ लिया था कि अभी उनका काम बाकी है और वो काम बाकी था अपने समकक्ष नेताओं को खुड्डे लाईन लगाना और उनको कांगे्रस छोडऩे पर मजबूर कर देना। उन्होंंनें जिस प्रकार भजनलाल परिवार को बाहर करवाया अब उन्होंनें कांग्रेस से एक और बड़े परिवार को उसी स्थिती में पहुंचा दिया जिसका नाम है बंसीलाल परिवार। आज स्थिती ये है कि आज बंसीलाल परिवार से कोई सदस्य कांग्रेस का स्टार प्रचारक नही है।


इसके बाद आता है गांधी परिवार के सबसे नजदीकी अशोक तंवर का। अशोक तंवर के साथ जिस प्रकार भूपेंद्र सिंह हुड्डा समर्थकों द्वारा व्यवहार किया वो किसी से नही छिपा था। समर्थकों द्वारा अशोक तंवर की पिटाई भी की गई थी जिससे आहत होकर वो भी कांग्रेस से अलविदा हो चुके है। कांग्रेस के बड़े नेता और अहीरवाल क्षेत्र में राव इंद्रजीत को भी हुड्डा ने इसलिए बाहर का रास्ता दिखलाया ताकि वो भी सीएम कुर्सी की तरफ बढ़ न जाये।

राव इंद्रजीत के बाद प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम स्थापित कर चुके निर्दलिय सांसद अरविंद शर्मा जो कांग्रेस से सांसद बने थे उनको भी हुड्डा की कारगुजारियों के चलते कांग्रेस को अलविदा कहना पड़ा था। छोटूराम के नातिन और बांगर वाले चौधरी बिरेंद्र सिंह अब भले ही वो कांग्रेस में आ चुके है लेकिन वो भी पिछले दस साल से भाजपा में ही थे और अब उनका भी टिकट कटवा कर उनको भी हुड्डा ने एक कोने में ड़ालने का काम किया हुआ।

हिसार से सांसद रहे नवीन जिंदल ऐसे नेता रहे जिनका हिसार और कुरूक्षेत्र दोनों लोकसभा सीट पर काफी प्रभाव है लेकिन हुड्डा ने अपने कद का प्रयोग करते हुए जिंदल परिवार को भी कांग्रेस से बेदखल कर दिया। ब्राह्मण नेता और उद्यौग पति विनोद शर्मा भी हुड्डा की मनमानियों के शिकार होने के कारण कांग्रेस से बाहर है। प्रदेश लोकसभा चुनाव में दस सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों में से छह उम्मीदवार तो ऐसे है जो कांग्रेसी रहे है और जिनकी जीत भी लगभग लगभग तय मानी जा रही है। कांग्रेस छोडक़र जा चुके इन नेताओं के अलग भी कांग्रेस में ऐसे नेता है जिनका हुड्डा की कारगुजारियों के चलते कांग्रेस में दम घुटता नजर आ रहा है। कांग्रेस में दमघुटे नेताओं में कुछ लोकसभा की दौड़ में है तो कुछ विधायक है और कुछ टिकटार्थी और इन सबका दमघोटने वाले शख्स एक ही जिनका नाम है पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा।
सच कहे तो हुड्डा ने हरियाणा में अपना वर्चस्व कायम करने यानि की अपने नाम की लहर बनाने की एवज में कांग्रेस को राजनैतिक भंवर में फंसा कर पार्टी पर कहर ढ़हाने का काम किया है क्योंकि यदि कांग्रेस के पास इन पुराने नेताओं का साथ होता तो अनुमान खुद ही लगाये कि जो कांग्रेस आज प्रदेश मे एक भी सीट नही जीत रही क्या वो सभी दस सीटों पर जीत का परचम नही लहराती।